हिंदी के युवा साहित्यकारों में मनीषा कुलश्रेष्ठ एक कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में विशेष स्थान रखती हैं। मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियां अपने विषय वैविध्य के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध हुई हैं। कठपुतलियाँ कहानी संग्रह की कहानियों ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई है | इस संग्रह में कुल नव कहानीयां संग्रहित हैं। जिनमें मानव जीवन के उतार-चढ़ाव, आशा-निराशा, सुख-दुख एवं द्वंद्व आदि का चित्रण किया गया है।
कठपुतलियाँ
इस संग्रह की पहली कहानी ‘कठपुतलियाँ’ में पति-पत्नी के जीवन में उत्पन्न होने वाले सु:ख दुःख, संत्रास तथा पीड़ा का चित्रण किया है। दहेज के कारण गरीब माँ बाप अपनी बेटी का विवाह अक्सर उनकी इच्छा के बिना ही कर हैं, तेरह वर्षीय सुगना का विवाह तीस वर्षीय विधुर कठपुतली वाले रामकिसन के साथ होता है। बेमेल विवाह के कारण सुगना की सभी इच्छाओं का अंत हो जाता है और वह अपनी तुलना उस कठपुतली से करती है जिसके जीवन के संचालन की डोर किसी अन्य के हाथ में रहता है। सुगना पति की प्रत्येक इच्छा पूरी करने की कोशिश में अपनी सभी इच्छाएँ अपने तक ही सीमित रखती है। पति के साथ होने की अवस्था के बारे में वह सोचती है-
रात किस मुहाने पर जाकर उफ़न पड़ी थी वह कि रामकिसन कुंठित हो गया-पहले देह जब शांत नदी-सी पड़ी रहती थी तो वह मिलों तैर जाता था। अब जब वह नैसर्गिक आकांक्षाओं से भरपूर नदी में बदल जाती है और इन्ही आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु प्रसन्न-प्रच्छन्न क्षमताओं से परिपूर्ण हो कर बहती है-प्रबल-प्रगल्भ, तो रामकिसन के लिए मुश्किल हो जाता है इस उफनती नदी को बाँहों में भरकर तैरना। उसने खुद को काठ कर लिया। अब रामकिसन चाहे जैसे नचाए। वह जब तृप्ति कीडकार लेता . . . . तो वह जूठन के इधर-उधर गिरे टुकड़े समेट-भूखी ही उठ जाती ।
मनीषा कुलश्रेष्ठ- कठपुतलियाँ, कठपुतलियाँ, १०,११
प्रेम कामना
वैचारिक भेद, देह सुख की लालसा, अपनत्व की आश अकेलेपन का दर्द तथा एक शिष्या का अपने गुरु के प्रति श्रद्धा ,एवं प्रेम आदि का चित्रण ‘प्रेम कामना’ कहानी में हुआ है । इस कहानी के नायक महेश्वर पंत बीवी की मृत्यु के बाद बहू बेटे के होते हुए भी अकेलेपन में जीवन गुजारते हैं क्योंकि वे उनसे अलग रहते हैं। अकेलेपन का दर्द उनके सम्पूर्ण जीवन में व्याप्त है । ऐसे में वे वर्षो बाद उनसे मिलने आई अपनी शिष्या अणिमा के प्रति आकर्षित होते हैं। अणिमा कॉलेज के दिनों से ही अपने गुरु को अपना आदर्श मानती थी, और मन ही मन उनसे प्रेम करने लगी थी। वर्षों बाद उनसे मिलने पर उसके मन की अतृप्त प्रेम भावनाओं की अभिव्यक्ति निम्न रूप में हुई है –
कितना वक्त बीत चला था.. इस कामना को दफन करके भूल गयी थी वो। यह कामना एक स्वस्थ सबल कामना थी, जिसे चुपचाप गला घोंटकर दफना दिया था उसने बरसों पहले।आज वही प्रेम-कामना अवचेतन के स्मृति गलियारों में भटक-भटककर चेतन की राह पा गयी थी। और लापककर इस एक पल में समा गयी थी।”
मनीषा कुलश्रेष्ठ – कठपुतलियाँ, प्रेम-कामना, २५
रंग-रूप-रस-गंध
‘रंग-रूप-रस-गंध’ कहानी में एक बाल विधवा के जीवन में उत्पन्न विपदाओं अपनों द्वारा मिली यातनाएं तथा अकेलेपन आदि का चित्रण किया गया है। दस वर्ष की उम्र में जया का विवाह हो जाता है और पंद्रह की होते होते वह विधवा हो जाती है, और यहीं से उसके जीवन में विपदाओं की मानों बाढ़ आ जाती है।
“पांच साल ससुराल में जस-तस काटे, आधे पेट, सास की लातें-ससुर की गालियाँ खाते और रात में देवर-जेठ का आये दिन का वही घिनौना आग्रह सुनते-सुनते।“
मनीषा कुलश्रेष्ठ -कठपुतलियाँ, रंग-रूप-रस-गंध, ४१
अंततः बेसहारा बनी जया माई वृन्दावन चली जाती है | वहां भी अनेकों कस्ट सहती है | यहाँ तक एक पण्डे द्वारा उसका बलात्कार किया जाता है | एक युवक बेनु माधव का उसके जीवन में प्रवेश उसके जीवन को खुशहाल बनाये उसके पहले ही उस युवक की हत्या कर दी जाती है | और जया माई को उस युवक की स्मृतियाँ निरंतर आहत करती रही हैं |
भगोड़ा
‘भगोड़ा’ कहानी तीन ऐसे युवकों की कहानी है जो एयरफोर्स में भर्ती होते हैं किन्तु वहां मन न लगने पर तीनों गैर कानूनी तरीके से भागने का फैसला करते हैं | कहानी का नायक प्रशांत इन्ही में से एक था | एयरफोर्स से भागकर वह एक प्राइवेट फ्लाइंग क्लब से जुड़कर छोटे जहाज उड़ाना सिखाता है | दिव्या भी विमान सिखने के लिए उसी क्लब में आती है | प्रशांत उसे सेन्या जैसा छोटा विमान चलाना सिखाता है | जहाँ दोनों एक दुसरे से इतने करीब आ जाते हैं की प्रशांत अपनी छोड़ी हुयी एयरफोर्स की नौकरी के बारे में बता देता है | और दिव्या ये बात अपने रिटायर्ड सेनाधिपति पिता से बता देती है | और अंततः प्रशांत को जेल हो जाती है | जेल में रहते हुए प्रशांत के आतंरिक संवेदनाओं के ज्वार का प्रकटीकरण इस प्रकार हुआ है –
“बाहर वह दृश्य-दर बदलते माहौल को घूँट-घूट पीता है मगर अपने भीतर-ही-भीतर वह जीवन की नदी के किनारे पसरे कटते कगारों-सा ख़ामोशी से नस्ट होता रहता है | अपनी आत्मा से उलझता है और भीतर-ही-भीतर लहू लुहान होता हुआ कराहता है | चेहरे से उदासी टपकती है टप-टप . . . . . जिसे वह मुस्कुरा कर पोंछने का प्रयास करता है |”
मनीषा कुलश्रेष्ठ – कठपुतलियाँ, भगोड़ा,५५
परिभ्रान्ति
‘परिभ्रान्ति’ कहानी में वृद्धावस्था में एकाकीपन, मानसिक द्वंद्व, मृत्यु का आभास आदि का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया गया है | जीवन के आखरी पड़ाव पर पहुचे एक वृद्ध के जीवन में आये अचानक के बदलाव उसे न केवल अपने बल्कि अपनों की नजरों में गिरा देता है | एक मानसिक बीमारी के कारण वह दूसरी स्त्री के प्रति आकर्षित होता है, उसकी इच्छाएं और भावनाएं आवेषित हो उसे विवेकहीन बनाते हैं और अपने ही बच्चों की नज़रों में स्वयं को गिरा हुआ मानकर एक दिन वह घर छोड़ देता है |
अवक्षेप
‘अवक्षेप’ कहानी में गर्ल्स हॉस्टल के जीवन एवं आदिवासी हॉस्टल में होने वाले दुराचार, शोषण आदि का चित्रण किया गया है | आदिवाशी छात्रालय में किस प्रकार छोटी-छोटी लड़कियों के साथ दुराचार किया जाता है और अगर कोई लड़की इसके खिलाफ आवाज़ उठाने को कोशिस करती है तो उसे मार दिया जाता है | इस कहानी में उन लड़कियों और उनकी त्रासपूर्ण जीवन के प्रति मानवीय संवेदना व्यक्त की गयी है |
कुरजाँ
अन्धविश्वास और रूढ़ियाँ किस प्रकार एक अच्छे भले इंसान को शैतान मान उनके जीवन को बर्बाद कर देता है इसका चित्रण ‘कुरजाँ’ कहानी में हुआ है | कुरजा जिस गाँव में रहती है वहां के लोग उसे डायन मानकर गाँव से बहार निकल देते हैं | वह अपने बेटे समेत गाँव के बाहर वीराने में झोपड़ी बनाकर रहती है | इस गाँव में हेडमास्टर के रूप में आये मास्टरजी से अपने बच्चे के दाखिले की बात करती है | मास्टर का नौकर उन्हें कुरजाँ से दूर रहने के लिए कहता है | उसके हिसाब से कुरजाँ की नजर जिस पर पड़ती है, वह बर्बाद हो जाते है | इस प्रकार एक गरीब, बेसहारा औरात के प्रति गाँव वालों के अमानवीय व्यहार का चित्रण किया गया है |
बिगडैल बच्चे
वर्तमान समय में अधिकतर लोगों का युवा पीढ़ी को लेकर यही विचार रहते है की वे अपने उत्तरदायित्व के प्रति सदा ही निराश रहते हैं | किन्तु ‘बिगडैल बच्चे’ कहानी में यह बताया गया है कि किस प्रकार युवा पीढ़ी एक अपरिचित व्यक्ति की सहायता कर उसकी जान तक बचा लेते हैं |
लेखिका जिस ट्रेन से सफ़र करती है उसी ट्रेन में उसकी सामने वाली सीट पर बैठे तीन बच्चे अपने में ही मशगूल रहते हैं | उन्हें देखकर यही अनुमान लगाया जाता है की ये बच्चे किस तरह स्वछंद, अनुशासनहीन और पूरी तरह से बिगड़े हुए हैं | जब लेखिका मिठाई लेने स्टेशन पर उतरती है तब ट्रेन के अचानक चल देती है | वह जल्दबाजी में चढ़ने के प्रयास में अपने संतुलन खो देती है और बुरी तरह गिर जाती है | तब वे ही बच्चे इनकी सहायता करते हैं | यहाँ तक की अपनी ट्रेन तक छोड़ देते हैं | इस बारे में लेखिका द्वारा पूछे जाने पर लड़की कहती है-
“हमको हमारा मम्मी बोला इंसान का सेवा ही यीशू का सेवा है | आप बताओं न, आपकी जगह हम होते तो आप नहीं रूकते क्या हमारे लिए ?”
मनीषा कुलश्रेष्ठ – कठपुतलियाँ, बिगडैल बच्चे, १२६
स्वांग
‘स्वांग’ कहानी में वेश बदलकर लोगों का मनोरंजन करने वाले बहुरूपिये के जीवन की व्यथा का बेहद मार्मिक चित्रण किया गया है | कहानी के नायक गफ्फार खां वेश बदलकर दूसरों का मनोरंजन करते हैं | तीज के दिन लगे मेले में बहुरूपिये का वेश धारण कर वे खूब सारी बख्शीश पाते हैं | बख्शीश देने वालों का धन्यवाद करते हुए वे अपनी मरती हुयी कला और सरकार द्वारा न के बराबर दिए जाने वाले पेंशन के बारे में बताते हुए कहते हैं-
“खमा घणी हुजूर, आप लोगां री दया सूं ई म्हारी कला जीवित है, दस साल पैले ‘राष्ट्रपति सम्मान’ देवा रे बाद, कोई चिड़ि रो पूत पुछवा कोनी आयो के गफूरिया थूं जीवतो है की मरी ग्यो | आज के मैंगाई रे जमाना में तीन सौ रूपिया महिना री पिंशन सूं कांई व्है ?”
मनीषा कुलश्रेष्ठ – कठपुतलियाँ, स्वांग, १३२
अपने समय में गफ्फूर खां राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त करते हैं | जिस कला ने उन्हें इतना बड़ा सम्मान दिलाया था, उसे पूछने वाल कोई नहीं है | न ही उनके कैंसर के इलाज के लिए सरकार द्वारा कोई सहायता ही मिलती है | पैसठ की उम्र में भी वे अपनी कला को जीवित रखते हैं |