मैत्रेयी पुष्पा का जीवन परिचय | Maitraiyi Pushpa Biography in hindi

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मैत्रेयी पुष्पा का जन्म 30 नवम्बर 1944 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ जिले के सिर्कुरा नामक गाँव में हुआ था | उनके पिता का नाम हीरालाल और माता का नाम कस्तूरी था | गरीब ब्राहमण परिवार में जन्मी मैत्रेयी पुष्पा का बाल जीवन काफी कठिनाइयों से भरा हुआ था | विबाहपूर्व उनके नाम ‘पुष्पा हीरालाल पाण्डेय’ था | घर में माँ उन्हें ‘पुष्पा’ नाम से पुकारती किन्तु पिता उन्हें ‘मैत्रेयी’ नाम से | सो उन्होंने अपना साहित्यिक नाम ‘मैत्रेयी पुष्पा‘ रखना उचित समझा |

लेखक का नाममैत्रेयी पुष्पा
लेखक का मूल नामपुष्पा हीरालाल पाण्डेय
जन्म तिथि30 नवम्बर 1944
पिता का नामहीरालाल मेवाराम पाण्डेय
माता का नामकस्तूरी हीरालाल पाण्डेय
पति का नामडॉ. रमेशचंद्र शर्मा
पुत्री का नामनम्रता, मोहिता और सुजाता
दादाजी का नाम मेवाराम पाण्डेय

मैत्रेयी पुष्पा का पारिवारिक जीवन

माता

वर्ष 1944 के काल में जब भारतीय समाज पुत्री की तुलना में पुत्र को कुछ ज्यादा ही महत्त्व देता था, उनकी माता कस्तूरी अपेक्षाकृत एक जागरूक और आधुनिक विचारों वाली महिला थीं | उन्हें पुत्री के जन्म पर अपर हर्ष की अनुभूति हुयी | मैत्रेयी पुष्पा के जन्म को एक रस्म की तरह मानते हुए उन्होंने उनके लालन-पालन में कोई भी कमी नहीं आने दी | मैत्रेयी पुष्पा अपनी माँ से बेहद प्रभावित रही हैं | अपनी आत्मकथा ‘कस्तूरी कुंडल बसै’ में उन्होंने अपनी माँ के विषय में काफी चर्चा की है | उनकी माँ कस्तूरी एक स्वाभिमानी महिला थीं | प्रेम, संयम, उत्साही स्वभाव वाली कस्तूरी का मैत्रेयी पुष्पा के प्रति विशेष प्रेम तो था ही, उनका भी मैत्रेयी पुष्पा के जीवन पर गहरा असर था | जुझारू स्वभाव की अकाल विधवा कस्तूरी ने शिक्षा को अपना ध्येय बनाया और एक प्रशिक्षित ग्रामसेविका के रूप में कार्यरत हुयीं | बेटी का पढ़-लिखकर स्वावलंबी बनना उनका मुख्य ध्येय था, सो वे उन्हें सदैव अपने से दूर ही रखा करतीं थी | गाँव की खेरापतिन दादी से उनका लगाव था जिनके साथ सुनी कई कहानियों और गाये लोकगीतों की मिली विरासत ने उनके लेखकीय जीवन में अहं भूमिका निभाई |

पिता

मैत्रेयी पुष्पा के पिता का नाम हीरालाल था | वे जब मात्र अट्ठारह महीने की थी तभी उनके पिता का मोतिझला की बीमारी के चलते देहावसान हो गया | उनके पिता श्री हीरालाल स्वाभिमानी और जीवन मूल्यों को विशेष महत्त्व देने वाले इन्सान थे | अड़तालीस बीघे के एकलौते वारिस हीरालाल का मुख्य व्यवसाय कृषि था | उस समय जमीदारी की प्रथा थी | गाँव का जमीदार अंग्रेजो के लिए लगान वसूलता और साथ-साथ बेगारी भी करवाते | उनके पिता इसका विरोध करते थे | जमींदार उनको न तो कभी झुका पाया और न ही गिरफ्तार करवा पाया |

मैत्रेयी पुष्पा का बालपन काफी कठिनाइयों में बीता | पिता की मृत्यु और माता के स्वालंबन बोध के चलते उनका बालपन दोनों के स्नेह से वंचित रहा | किन्तु उनके अपाहिज ददाजी मेवाराम ने उनके लाड़-प्यार में तनिक भी कमी नहीं आने दी | उन्हीं के सहयोग के चलते उनकी माँ पढ़-लिख सकीं और ग्रामसेविका की नौकरी हासिल की |

शिक्षा

मैत्रेयी पुष्पा की आरंभिक शिक्षा झाँसी के खिल्ली गाँव में हुयी | अपनी माँ की व्यस्तता के कारण उन्हें उनसे दूर रहकर, असुरक्षा के भाव के साथ शिक्षा ग्रहण करनी पड़ी | कन्या संस्कृत विद्यालय से उनकी शिक्षा आरम्भ हुयी | उसके उपरांत आगे की शिक्षा के लिए वे झाँसी के डी.वी. इन्टर कॉलेज आ गयीं | यहाँ परिवहन के समुचित साधन के अभाव में उन्हें हर रोज दस किलोमीटर का फासला साईकिल से तय करना पड़ता था | कॉलेज की शिक्षा के दौरान उन्होंने ‘दर्शन शास्त्र’ और ‘मनोविज्ञान’ से बी.ए. कु उपाधि हासिल की और फिर बाद में बुंदेलखंड झाँसी से हिंदी साहित्य से एम.ए. की डिग्री हासिल की |

दाम्पत्य जीवन

मैत्रेयी पुष्पा की माता वास्तव में उस समय की स्त्रीयों में एक अपवाद थीं | उन्होंने सत्रह वर्ष की आयु में पुत्री द्वारा प्रस्तावित शादी के प्रस्ताव का विरोध किया और वे शिक्षित होकर स्वतन्त्र जीवन जीने की पक्षधर थीं | यहाँ तक कि उन्होंने स्वयं के विवाह का भी विरोध किया था | अंततः पुत्री की इच्छा के सामने विवाह माँ कस्तूरी ने पुत्री की इच्छा का माँ रखा | चूँकि वे एक रूढ़िगत परम्पराओं और मान्यताओं की खिलाफत करती थीं सो उन्होंने दहेज़ के चलते आने वाले कई रिश्तों को ठुकरा दिया | अंततः उनकी ननद विद्या बीबी ने उनके लिए रिश्ता खोज निकाला |

मैत्रेयी पुष्पा का विवाह एक डॉक्टर से हुआ | उनके पति का नाम डॉ. रमेशचंद्र शर्मा है | हालाँकि मैत्रेयी पुष्पा को एक बड़ा परिवार पसंद था किन्तु विवाह के उपरांत भी वे पति के साथ अकेली ही रह गयी | सुस्वभावी पति के संस्कार उन पर इस कदर हावी हुए कि वे एक आदर्श गृहणी बन कर रह गयीं | उन्हें अपने डो पुत्रियों के जन्म के उपरांत सामान्यतः जैसा भारतीय परिवार में होता है, लोगो के तानों का शिकार होना पड़ा | लोगों के तानो के चलते उन्हें बेटियों का जन्म बेअर्थ लगने लगा और लोगों से नजरे चुराते हुए उन्होंने अपना सामाजिक दायरा बेहद संकुचित कर लिया | उनकी तीन पुत्रियाँ ‘नम्रता’, ‘मोहिता’ और ‘सुजाता’ प्रख्यात डॉक्टर्स हैं और अपने-अपने जीवन में बेहद खुश और सुखी भी |

मैत्रेयी पुष्पा का लेखकीय जीवन

मैत्रेयी पुष्पा की बेटियां बड़ी होने लगीं तो धीर-धीर गृहस्थी का भार भी कुछ हल्का होने लगा | मेडिकल की पढ़ाई करने वाली बड़ी बेटी ‘नम्रता’ ने ही सर्वप्रथम उन्हें लेखन के लिए प्रोत्साहित किया | छात्रावस्था के दौरान लेखन की की अपनी रूचि को टटोलते हुए और छपने के भय के बीच उन्होंने अपना लेखन कार्य आरम्भ किया | हिंदी कथा साहित्य में उनका आगमन 1990 में हुआ जब उनका उपन्यास ‘स्मृति दंश’ प्रकाशित हुआ |

मैत्रेयी पुष्पा की रचनाएँ

मैत्रेयी पुष्पा के रचनाकर्म में समाज के प्रति सजगता भलीभांति परिलक्षित होती है | उनकी रचनाओं में स्त्री, दलित के साथ अन्य उपेक्षितों का सरोकार भी दृष्टिगोचर होता है | लोक तथा ग्रामीण परिवेश उनकी रचनाओं में उभर कर सामने आता है | उनके लेखन पर किसी विशिष्ट विचारधारा का प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता है | उन्होंने उपन्यास, कहानियां, आत्मकथा तथा वैचारिक साहित्य आदि विधाओं में अपनी लेकह्नी चलायी है |

मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास

क्रमउपन्यास के नामप्रकाशन वर्ष
1स्मृतिदंश1990
2बेतवा बहती रही1993
3इदन्नमम1994
4चाक1997
5झूला नट1999
6अल्मा कबूतरी2000
7अगनपाखी2001
8विजन2002
9कहीं ईसुरी फाग2004
10त्रिय हठ2006
11गुनाह बेगुनाह2011
12फरिश्ते निकले2014

कहानी संग्रह

क्रमकहानी संग्रह के नामप्रकाशन वर्ष
1चिन्हार (12 कहानियां)1991
2ललमनियाँ (10 कहानियां)1996
3गोमा हँसती हैं (10 कहानियां)1998
4छांह (12 कहानियां)
5प्रतिनिधि कहानियां2006
6पियरी का सपना2009
7समग्र कहानियां

मैत्रेयी पुष्पा की आत्म कथा (दोभागों में )

क्रमनामप्रकाशन वर्ष
1कस्तूरी कुण्डल बसै2002
2गुड़िया भीतर गुड़िया2008

नाटक

क्रमनामप्रकाशन वर्ष
1मंदाक्रांता2006

स्त्री विमर्श सम्बन्धी रचनाएँ

क्रमनामप्रकाशन वर्ष
1खुली खिड़कियाँ2003
2सुनो मालिक सुनो2006
3चर्चा हमारा2009
4तब्दील निगाहें2012
5आवाज2012

अन्य रचनाएँ

  • संस्मरण : वह सफ़र था कि मुकाम था |
  • रिपोर्ताज : फाइटर की डायरी |
  • काव्य संग्रह : लकीरें |

पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख

  • कथा साहित्य में सती पूजा-लेख (हंस, फरवरी २००६)
  • लीक तोड़ने वाले लेखक बदनाम होने के लिए अभिशप्त हैं- अनुभूति (हंस सितम्बर २००५)
  • हादसे एक स्त्री का विस्फोटक जीवन-परख (हंस, फरवरी २००६)
  • स्त्री विरोध ने आग पैदा कर दी- (समयांनतर, जनवरी-फरवरी २००१)
  • कथा में जीवन जीवन में कथा-पुस्तक चर्चा (आजकल अगस्त २००५)
  • आधुनिक विमर्श एवं साहित्य की मूल्यवत्ता का प्रश्न, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ५८ वां अधिवेशन, गुवाहाटी, ६ मार्च २००६
  • साहित्य परिषद की सभापति मैत्रेयी पुष्पा का अभिभाषण (राष्ट्रभाषा, मई २००६)
  • छुटकारा स्वतंत्र कहानी- ‘हंस’ १९९९ के अगस्त के अंक में छपी।

मैत्रेयी पुष्पा की उपलब्धियाँ (सम्मान)

  • हिन्दी अकादमी द्वारा वर्ष 1991 में साहित्य कृति सम्मान |
  • ‘फैसला’ कहानी के लिए वर्ष 1993 में कथा पुरस्कार |
  • शाश्वती बैंगलोर द्वारा 1995 में उपन्यास ‘इदन्नमम्’ को नजनागुड्डू तिरूमालम्बा पुरस्कार |
  • मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् द्वारा 1996 में ‘वीर सिंह जू देव पुरस्कार‘ |
  • हिन्दी अकादमी द्वारा 1998 में साहित्यकार सम्मान |
  • वर्ष 2000 में इदन्नमम् के लिए कथाक्रम सम्मान |
  • मंगल प्रसाद पारितोषिक वर्ष 2006 में प्राप्त हुआ |
  • वर्ष 2009 में सुधाकृति सम्मान से सम्मानित |
  • वनमाली सम्मान 2011 मे प्राप्त हुआ |
  • आगरा यूनिवर्सिटी गौरव श्री अवार्ड वर्ष 2011 में प्राप्त हुआ |
  • उ०प्र० साहित्य संस्थान द्वारा ‘बेतवा बहती रही’ को ‘प्रेमचन्द सम्मान’ से वर्ष 1995 में नवाजा गया |
  • सार्क लिटरेरी अवार्ड 2001 में , सरोजिनी नायडू सम्मान 2003 में और महात्मा गाधी सम्मान 2012 में प्राप्त हुए |
  • ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ (पंचायत राज) का अवार्ड तथा अन्य कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया |
  • ‘फैसला’ कहानी पर ‘वसुमती की चिट्ठी’ नामक टेलीफिल्म का निर्माण किया गया |

Dr. Anu Pandey

Assistant Professor (Hindi) Phd (Hindi), GSET, MEd., MPhil. 4 Books as Author, 1 as Editor, More than 30 Research papers published.

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