हिंदी साहित्य के जाने माने दलित लेखक कैलाशचंद चौहान रचित एवं 2013 में प्रकाशित भंवर उपन्यास में दलित लोगों के संघर्ष, उनकी सोच, स्त्री शिक्षा के प्रति उनका नजरिया, जाति के प्रति रूढ़ मानसिकता तथा सामाजिक एवं पारिवारिक मूल्यों मान्यताओं में जकड़ी नारी के संघर्ष की कथा कही गई है | दलितों का निम्न जाति का होना एक ऐसा रोग बन जाता है जिसकी टीस जीवन पर्यंत नहीं जाती है | भंवर उपन्यास उपन्यास में तीन पीढ़ियों की दलित स्त्रियों ने स्वयं के साथ हुए अन्याय, अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद किया है | इस उपन्यास की अधिकतर नारियां अपने ही परिवार ,समाज में किसी ना किसी रूप में शोषित , प्रताड़ित की जाती है और एक स्त्री होने के नाते कभी बेटी, कभी पत्नी तो कभी बहू का फर्ज निभाते -निभाते सम्बन्धों की भंवर में फंसती ही चली जाती हैं किंतु अंततः उस भंवरजाल से बहार निकल कर अपने साहस ,शिक्षा-दीक्षा और अपनी समझ का परिचय देती हैं |
उपन्यास का नाम (Novel Name) | भंवर (Bhanvar) |
लेखक (Author) | कैलाशचंद चौहान (Kailashchand Chauhan) |
भाषा (Language) | हिन्दी (Hindi) |
प्रकार (Type) | दलित विमर्श (Dalit Vimarsh) |
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication) | 2013 |
भंवर उपन्यास का पात्र सुधाकर पुष्पा के घर किराये के मकान में रहने के लिए आता है | सुधाकर अम्बाला से बैंक मैनेजर के पद पर प्रमोसन होने के कारण दिल्ली आता है | पुष्पा का लगाव सुधाकर के प्रति बढ़ता ही चला जाता है | पुष्पा सुधाकर में अपने उस बेटे की छवि देखती है जिसे बिन ब्याही गर्भवती होने के कारण त्याग देना पड़ा था | पुष्पा अपने नाना –नानी के घर रह कर पली-बढ़ी | उसकी माँ ने बहुत परिश्रम से उसे पढ़ाया था | उसके नाना तो पहले से ही चाहत थे कि पुष्पा पढ़े नहीं क्योंकि वे लोग जिस जाति व् समाज से थे, वहां लड़कियों का पढ़ना जरूरी नहीं माना जाता था | लेकिन पुष्पा की माँ उसे पढ़ाती है | पुष्पा बी.ए तक पढ़ती है |
पुष्पा को कॉलेज में ही हर्ष नामक युवक से प्रेम हो जाता है और पुष्पा गर्भवती हो जाती है | हर्ष उससे किसी भी किमत पर विवाह करना चाहता है लेकिन जब वह अपने घर पर विवाह की बात करता है तब उसके घर वाले स्पष्ट कह देता हैं कि उन्हें प्रेम विवाह से आपत्ति नहीं लेकिन लड़की हमारी जाति की होनी चाहिए | पुष्पा की जाति के बारे में जान कर हर्ष के पिता अपनी दकियानूसी सोच का प्रदर्शन करते हुए कहते हैं-
“तू मौजमस्त किसी के साथ भी कर ले ,तुझे पूरी छूट है | लेकिन तुझे शादी किसी ठाकुर लड़की से ही करनी होगी |”
कैलाशचंद चौहान : भंवर
हर्ष बार-बार अपने पिता को समझाता है कि वह पुष्पा से बहुत प्यार करता है लेकिन उसके पिता नहीं मानते और अपना निर्णय सुना दे हैं कि वे समाज के सामने अपनी नाक नहीं कटवा सकते | और अंततः पुष्पा का विवाह हर्ष से नही हो पाता | पुष्पा की माँ बेटी के बारे जान कर चिंता में डूब जाती है और अंततः बेटी को डॉक्टर के पास ले जाती है डॉक्टर देरी होने से गर्भपात नहीं करती किंतु बच्चा हो जाने के बाद किसी निशंतान को देने का सलाह देती है और ऐसा ही होता है |
आज भी हमारे समाज में लड़के लड़की को लेकर भेदभाव कम नहीं हुआ है जहाँ शिक्षा से कुछ लोगों के विचारों में परिवर्तन आ रहा है वहीं बहुत से ऐसे लोग हैं जो आज भी अपनी पुरानी मान्यताओं पर अड़े हुए रहते हैं | पुष्पा का विवाह लोकेश से हो जाता है | पुष्पा की देवरानी शांति को लगातार चार लडकियाँ पैदा होती है जिससे उसकी सास उसका जीना हराम कर देती है | सास शांति को गलियां देती है जब उसका बेटा कुंवरपाल अपनों द्वारा अपनी पत्नी शांति का पक्ष लेता है तब उसकी माँ उसे भी भलाबुरा कहती है
“ लुगाई के गुलाम इसका कसूर नहीं तो और किसका है ? वंश चलाने के लिए लड़का चाहिए या नहीं | चार-चार लड़कियों का बोझ तेरे सिर पर रख दिया इसने |”
कैलाशचंद चौहान : भंवर
भंवर उपन्यास में लड़के के जन्म की कामना हेतु एक स्त्री का दूसरी स्त्री पर दी जाने प्रताड़ना का चित्रण किया गया है | पुत्र संतान को जन्म देने वाली स्त्री को परिवार और समाज दोनों में सम्मान मिलता है | हालाँकि शांति और उसका पति लड़का लड़की में भेद नहीं मानते किंतु पारिवारिक व् सामाजिक मूल्य ,मान्यता के दबाव ,बिना भाई की लड़की का ब्याह होना मुश्किल हो जाता है उनके बच्चों के भात भरने आदि का रिवाज के कारण वे भी मजबूर हो जाते है | पुत्र संतान के लिए दोनों कितने ही व्रत और मनोतियां करते हैं | और शांति को पांचवी संतान के रूप में पुत्र पैदा होता है | किंतु जिस संतान के लिए शांति परिवार की यातनाये सहती है उसका वह पुत्र बादल अपनी पढाई भी पूरी नहीं करता | और उसकी पुत्री पूजा अधिकारी बनती है | शांति की सी स्थिति पुष्पा के घर काम करने वाली राधा की भी थी उसे भी अपने परिवार और पड़ोसियों से ताने सुनने पड़ते हैं एक दिन राधा पुष्पा से आपना दुःख बयां करती हुई कहती है –
“बताओ बीबी जी ,क्या लड़का- लड़की होना मेरे हाथ में है ? अगर मेरे हाथ में होता तो मैं इतनी लडकियाँ क्यों जन्म देती ?और क्यों सास-नंनद और पड़ोस की औरतों के इतने ताने सुनती ?”
कैलाशचंद चौहान : भंवर
शिक्षा किसी भी इन्सान की सबसे बड़ी ताकत होती है शांति और राधा जहाँ अशिक्षा के कारण लोगों के तानें सुन दुखी होती रहती हैं वही पढ़ी लिखी पुष्पा इसका प्रतिकार करती है सास द्वारा जब उसे निसंतान होने का ताना दिया जाता है तब वह कहती है-
“मेरे हाथ में हो तो एक नहीं ,बच्चों का ढेर लगा देती | पर बीबी, सब कुछ इंसान के हाथ में नहीं होता, दूसरी बात बीबी, बच्चा न होने के लिए केवल औरत जिम्मेदार मानने की बात छोड़ दो | गाँव की बेशक हूँ ,लेकिन पढ़ी –लिखी हूँ | सब समझती हूँ …”
कैलाशचंद चौहान : भंवर
शिक्षित और समझदार पुष्पा हर परिस्थिति का सामना बेहद साहस से करती है | पुष्पा एक अच्छी बहू की तरह ससुराल में रहने लगी | परिवार की सेवा में उसका समय बीतने लगा किंतु पढ़ी लिखी पुष्पा अन्दर ही अन्दर घुटने लगती है वह चाहती थी कि अपनी अकेली माँ का खर्च वह खुद उठाये | और एक दिन वह अपने पति से नौकरी की बात करती है लेकिन उसके पति घर वालों का बहाना कर मना कर देते हैं तब पुष्पाभी कह देती है कि जब चूल्हा बर्तन ही करवाना था तो किसी अनपढ़ को ब्याह कर लाते |
पुष्पा की माँ विमला पति द्वारा त्यागे जाने पर अपने मायके रह कर अपने दम पर पुष्पा को पालती है यहाँ तक कि वह बेटी के सुख के लिए खुद शादी भी नहीं करती | माँ के बीमार होने पर पुष्पा उन्हें अपने ससुराल लाती है किंतु उसकी सास पुष्पा की माँ अपने घर नहीं रखना चाहती है | पुष्पा के पति भी अपनी माँ की बात का ही समर्थन करते हैं किंतु पुष्पा माँ को अपने साथ ही रखना चाहती है | लेकिन जब उसके पति उसके साथ वह व्यवहार करने की धमकी देते हैं जो कभी पुष्पा के पिता ने उसकी माँ के साथ किया था तब उसका रोम रोम आक्रोस से भर जाता है और वह कहती है –
“दिखा दी न अपनी औकात | लेकिन इतना समझ लो,मैं उस जमाने की औरत नहीं हूँ जिस ज़माने में माँ थी | माँ को हक़ लेना नहीं आया | लेकिन मै अपना हक़ सीधी अंगुली से ना मिले तो टेढ़ी अंगुली से लेना जनती हूँ | दूसरी बात, मैं पूरी जिंदगी माँ की तरह अकेले भी नहीं बिताउंगी | मैं तुम्हें छोड़ने के बाद दूसरी शादी करना भी जानती हूँ, और अपना हक़ लेना भी | ’’
कैलाशचंद चौहान : भंवर
इस तरह पुष्पा पति या परिवार के किसी भी गलत व्यवहार को मूक बन सहने के बजाय उसका प्रतिकार करती है | इसी तरह पुष्पा की माँ भी एक स्वाभिमानी नारी थी पति द्वारा दूसरी स्त्री से विवाह किये जाने पर वह इसका विरोध करती है तब सास ससुर अपने बेटे को कुछ ना कहकर उसे ही समझाते हैं कि तू भी इसी घर में रह पर विमला ससुराल में एक पल भी रहाना अपना अपमान समझती है –
केवल पेट भरने से जीवन नहीं चलता बापू | पेट तो मैं अपने पियर में भर लूंगी | हाथ पैर हैं मेरे, कमा के खा लूंगी |लेकिन सौत के रहते हुए यहाँ नहीं रहूंगी | वो रहे या मैं | एक मियान में दो तलवार संभव नहीं |”
कैलाशचंद चौहान : भंवर
अपने स्वाभिमान औरसाहस के बल पर ही विमला अपने पियर में रह कर भी अपने बल पर अपना और बेटी का पेट पालती है |
जातिगत भेदभाव हमारे समाज की बहुत गंभीर समस्या है जिसे भंवर उपन्यास में भली भांति उजागर किया गया है | इस भेदभाव का शिकार ना जाने कितने ही लोगों को बनना पड़ता है निम्न जाति होने के कारण कितने ही सम्पन्न दलितों को उच्च जाति के लोगों के बीच रहने के लिए अपनी मूल जाति छुपानी पड़ती है | यही भूल पुष्पा के पति लोकेश भी करते हैं | लोकेश अपने गाँव से दूर शहर में अपना खुद का काम शुरू करते हैं जिससे उन्हें बहुत फायदा होता है और वे एक पोस कोलोनी में अपना मकान बनवाते हैं और सबको अपनी जाति दुग्गल बताते हैं जाति का भेद खुलने के भय से वे कभी भी अपने परिवार वालों को अपने घर नहीं बुलाते ना ही अपनी पत्नी को उनसे मिलने देना चाहते हैं इसपर उनकी पत्नी कहती है –
“हम यहां दुग्गल बने हुए हैं | बहुत तरक्की की है हमने पैसे में | कोई सपने में भी नहीं सोच सकता हम अछूत माने जाने वाली जाति से होंगे | तुम्हारा भाई सफाई कर्मचारी होगा |”
कैलाशचंद चौहान : भंवर
लोकेश वर्षों तक तो अपनी जाति छुपाकर रहता है और इस धोखे में जीता है कि कभी भी उसकी मूल जाति का पता किसी को नहीं चल पायेगा लेकिन वास्तविकता तो लाख छुपाने पर भी एक ना एक दिन प्रगट हो ही जाती है | लोकेश की गोद ली हुई बेटी के विवाह के समय यह समस्या बड़ी ही गंभीर रूप में सामने आती है | लोकेश की बेटी सुधाकर से प्रेम करती है किंतु जब विवाह की बात आती है तब सुधाकर की माँ जाति के बारे में जान कर विवाह से इंकार कर देती है तब लोकेश को एहसास होता है और वह पुष्पा से जातिगत भेद भाव के दर्द को अपनी पत्नी पुष्पा से कहता है –
“आज मुझे अनुभव हो रहा है कि जाति भारत का सबसे बड़ा सत्य है ,जो मरने तक पीछा नहीं छोड़ती | बच्चों की शादी के समय यह और अधिक भयंकर रूप में सामने आती है |”
कैलाशचंद चौहान : भंवर
जिस पैसे और पोजीशन के बल पर लोकेश वर्षों तक अपनी जाति छुपकर रहता है वह पैसा या पोजीशन भी उसे उसके दलित जाति से छुटकारा नहीं दिलाता और आख़िरकार एक दिन हकीकत सबके सामने आ ही जाती है और तब सिवाय पछताने के लोकेश के पास कुछ नही बचता |
इस प्रकार भंवर उपन्यास में जहाँ एक ओर दलित समाज में फैली स्त्रियों के प्रति निम्न सोच, अशिक्षा का दुस्प्रभाव ,लिंग आधारित भेदभाव , सवर्ण समाज की उच्चवर्गीय मानसिकता के साथ ही दलित होने का अभिशाप आदि का चित्रण किया गया है वहीं दूसरी ओर शिक्षा प्राप्त दलितों के आत्मविश्वास ,साहस आदि का भी चित्रण किया गया है |