मनोहर श्याम जोशी का जन्म 9 अगस्त 1933 को राजस्थान के अजमेर नामक शहर में एक कुमाऊँ परिवार में हुआ था | उनका परिवार मध्यवर्गीय किन्तु साहित्य एवं कला प्रेमी परिवार था | बचपन में ही उनके पिता तथा बड़े भाई का देहावसान होने के कारण उनका बचपन काफी कष्टों में बीता | पिता की असमय मृत्यु के कारण काफी कम उम्र में ही उन पर पारिवारिक दायित्व आन पड़ा | वे अंतर्मुखी तथा संघर्षशील प्रवृत्ति के व्यक्ति थे |
लेखक का नाम | मनोहर श्याम जोशी |
जन्म तिथि | 9 अगस्त 1933 |
मृत्यु | 30 मार्च 2006 |
पत्नी का नाम | डॉ० श्रीमती भगवती जोशी |
पिता का नाम | प्रेमवल्लभ जोशी |
माता का नाम | रुक्मिणी देवी |
पुत्र | अनुपम, अनुराग और आशीष |
मनोहर श्याम जोशी का पारिवारिक जीवन
मनोहर श्याम जोशी के पिता का नाम श्री प्रेमवल्लभ जोशी था | वे तत्कालीन महान शिक्षाविद् होने के साथ-साथ एक संगीत प्रेमी भी थे | श्री प्रेमवल्लभ जोशी ने विज्ञान से स्नातक तथा इतिहास से एम.ए. किया था | वे अजमेर के राजकीय महाविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर पद पर आसीन थे | इस पद से त्यागपत्र देने के उपरांत वे राजस्थान के राजकीय उच्च निदेशालय में प्रथम भारतीय प्रधानाध्यापक के सम्मानजनक पद पर आसीन हुए | अपने सहपाठी सहपाठी डॉ. गोरखप्रसाद के साथ मिलकर उन्होंने हिन्दी भाषा में विज्ञान सम्बन्धी पुस्तकें भी लिखीं |
प्रेमवल्लभ जोशी की ललित कलाओं में भी अच्छी पकड़ थी | उन्होंने पश्चिमी चित्रकला के तुलनात्मक अध्ययन की दिशा में भी कार्य किया था | मनोहर श्याम जोशी अपने पिता के विषय में लिखते हैं –
“शिक्षाविद होने के साथ-साथ मेरे पिता कला और संगीत के मर्मज्ञ भी थे | भारतीय संगीत सम्मेलनों के आयोजनों और लखनऊ में मैरिस कालेज की स्थापना से सम्बद्ध रहे | संगीत के विषय में उन्होंने बहुत से लेख लिखे और किताबें भी जो दुर्भाग्यवश प्रकाशित नहीं हो सकीं |”
मनोहर श्याम जोशी की माता का नाम ‘रुक्मिणी देवी ‘ था | वे एक कुलीन कुमाऊँनी ब्राह्मण परिवार की कन्या थीं | साहित्यानुराग उन्हें उनके ननिहाल से प्राप्त हुआ था | उनके मामाजी पेशे से डिप्टी कलेक्टर थे | वे ब्रजभाषा, अंग्रेजी, संस्कृत, फारसी, हिन्दी-बंगला के विद्वान थे तथा उनका नाम हिन्दी साहित्य के इतिहास में बंगला से हिन्दी में सर्वप्रथम अनुवाद करने वालों लोगों में गिना जाता रहा है | वे जीवन पर्यन्त फारसी से ब्रजभाषा में अनुवाद तथा ब्रजभाषा में कविताएँ लिखने में लगे रहे |
जोशी जी के अनुसार उनकी माता में किसी भी व्यक्ति का हुबहू नक़ल करने की अद्भुत प्रतिभा थी | वे आवाज बदलकर किसी की भी नक़ल उतार सकती थीं | माता का यह गुण उनके बच्चों में भी आ गया | अतः कहा जा सकता है की नक़ल करने और किस्सागोई की प्रतिभा जोशी जी को उनके परिवार से ही विरासत में मिली | दिसम्बर 1973 में उनकी माताजी का निधन हुआ था |
जोशी जी के बड़े भाई का नाम दुर्गादत्त जोशी था | उनके भाई का भी उन पर खासा प्रभाव रहा है | उनकी बहन का नाम भगवती है | भगवती ‘छाया’ नाम से कहानियाँ लिखा करती थी | मनोहर श्याम जोशी के चाचाजी भी शौकिया कविता और कहानी लिखा करते थे |
मनोहर श्याम जोशी जी का विवाह डॉ० श्रीमती भगवती जोशी से 6 फरवरी, 1966 में हुआ था | वे दिल्ली के लेडीज श्रीराम कालेज में हिन्दी की प्राध्यापिका थी | उनके अनुपम, अनुराग और आशीष तीन पुत्र हैं |
शिक्षा
मनोहर श्याम जोशी की प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर की एक सामान्य में पाठशाला हुयी थी | इसी विद्यालय में उन्होंने इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा ली तथा इस दौरान वे अपने चाचा श्री भोलादत्त जोशी के साथ रहते | जोशी जी की गणना उनके विद्यार्थी जीवन में मेधावी छात्रों में की जाती थी | उन्हें अंग्रेजी विषय से लगाव तो था ही, साथ ही उस विषय पर पकड़ भी अच्छी थी | अतः वे अपने प्रश्पत्रों के उत्तर इसी विषय में देते थे और हमेशा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते थे | हिंदी विषय में उनका हाथ कुछ तंग हुआ करता था अतः इस विषय में वे कभी पचास प्रतिसत का आंकड़ा पार नहीं कर पाए |
अध्ययन के अतिरिक्त विद्यालय के अन्य कार्यक्रमों में भी उनकी सहभागिता बढ़-चढ़कर रहती थी | ‘हिन्दी के विरुद्ध हिन्दुस्तानी’ विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता में विजयी होने पर उन्हें अज्ञेय कृत ‘शेखर एक जीवनी’ नामक पुस्तक पुरस्कार स्वरूप प्राप्त हुयी | इस पुस्तक की उपेक्षा करते हुए उन्होंने उसे जस के तस रख दिया | विज्ञानं में विशेष रुचि होने के कारण वे एक वैज्ञानिक बनना चाहते थे |
इण्टरमीडिएट परीक्षा के पश्चात् उच्च शिक्षा हेतु उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में सिविल इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया | इस दौरान उन्होंने मुंशी प्रेमचन्द की कहानी ‘सज्जनता का दण्ड’ पढ़ी जिससे प्रभावित होकर उन्हें इंजीनियरी का व्यवसाय ही अनैतिकता का प्रतीक लगने लगा और फिर उन्होंने इसे बीच में ही छोड़ दिया | उपरांत उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में बी०एस०सी० में प्रवेश लिया | इस दौरान वे कम्युनिस्टों के सम्पर्क आये | पारिवारिक किस्सागोई परम्परा के कारण वे लेखन कला की और अग्रसर हुए |
लेखन से जुड़ने तथा स्टूडेंट्स यूनियन के कार्यों मे सक्रिय भागीदारी के परिणामस्वरूप उनकी पढ़ाई पर प्रतिकूल असर पड़ा | लीडरी और स्ट्राइक के चक्कर में बी.एस.सी. में वे द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुए और शुक्ल मुक्ति तथा छात्रवृत्ति जैसी सुविधायें जाती रहीं | अतः वे एम.एस.सी. न कर सके किन्तु प्राइवेट रूप से उन्होंने अंग्रेजी विषय में एम.ए. किया |
लेखकीय जीवन
जोशी जी अपने चाचा भोलादत्त जोशी को अपना प्रथम गुरु मानते हैं | वे मानते हैं कि लेखन की सर्वप्रथम प्रेरणा तथा मार्गदर्शन उन्हें अपने चाचा से ही प्राप्त हुआ | चाचा के आमंत्रण पर चूँकि उन्हें श्मशान के मार्ग से होकर जान था, भयवश वे नहीं पहुँच सके और इसके कारण होने वाले उपहास के प्रत्युत्तर में दिए गए उनके तर्कों को सुनकर उनके चाचा ने उन्हें लिखने का सुझाव दिया | इस सन्दर्भ में उन्होंने एक लेख “डर से मैं क्यों डरता हूँ ?” लिखा | इस लेख में भाषाई त्रुटियों को सुधारने के साथ-साथ उन्होंने जोशी जी को भविष्य के लेखन के लिए प्रोत्साहित किया |
प्रगतिशील लेखक संघ से प्रभावित होकर उन्होंने अपने लेखकीय जीवन का आरम्भ कहानियों के माध्यम से किया | अपनी पहली दो कहानियों को फाड़ कर फेंकने उपरांत तीसरी कहानी ‘मैडिरा-मैरून’ को वे मूर्त रूप देने में सफल रहे | भगवतीचरण वर्मा, यशपाल और नागरजी के समक्ष लेखक संघ की बैठक में अपनी इस कहानी का उन्होंने वचन किया जिससे नगर जी बहुत प्रभावित हुए और उन्हें गले लगा लिया | जोशी जी ने नगर जी को विधिवत अपना गुरु बना लिया | जोशी जी मानते हैं की नागर जी की शिष्यता का उन पर बहुत गहरा प्रभाव रहा है |
जोशी जी ने ‘जनसत्ता’ के परिशिष्ट के लिये विज्ञान खेलकूद, साहित्य, कला, रंगमंच, सिनेमा आदि विषयों पर लिखना आरम्भ किया | इसके लिए उन्हें मात्र पाँच रुपये कॉलम की दर से मेहनताना दिया जाता था | बाद में वात्सायनजी के कहने पर वे हिन्दी समाचार कक्ष में नौकरी करने लगे जिस दौरान उन्हें ढाई सौ रुपये माहवार मिलता था | उनकी पहली कहानी ‘धुआँ’ बम्बई से प्रकाशित होने वाले मासिक ‘सरगम‘ और ‘सुदर्शन’ में प्रकाशित हुयीथी | उनकी एक अन्य कहानी गणेशजी ‘हंस’ में छपी | बाद में भगवती चरण वर्मा की पत्रिका ‘उत्तरा’ में भी उनकी दो कहानियाँ छपीं |
केन्द्रीय सूचना सेवा में वे बम्बई के फिल्म प्रभाग में पटकथा एवं भाष्यलेखक के रूप में नियुक्त हुए | यहाँ पहुचने के उपरांत ही उनके दिमाग में फिल्मी दुनिया को लेकर विशेष रूचि जागृत हुयी | इस दौरान उन्होंने फ़िल्मी पटकथाओं और टिप्पणियों पर भी लेखन कार्य किया | जोशी जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देकर ‘नव पत्रकारिता‘ की नींव रखी | उन्हें पत्रकारिता के लिए कम किन्तु व्यावसायिकता के लिए अधिक जाना जाता है | अज्ञेय की शिष्य मण्डली में शामिल होने के पश्चात् अपने को कविता लेखन की ओर प्रवृत्त किया किन्तु एक कवि के रूप में अपनी रचनाओं को लेकर वे हमेशा शंकाशील ही बने रहे |
मनोहर श्याम जोशी की रचनाएँ
उपन्यास
क्रम | उपन्यास के नाम | प्रकाशन वर्ष |
---|---|---|
1 | उत्तराधिकारिणी (रूपांतरित उपन्यास) | 1976 |
2 | कुरु कुरु स्वाहा | 1980 |
3 | कसप | 1982 |
4 | ट-टा प्रोफेसर | 1995 |
5 | हरिया हरक्यूलीज की हैरानी | 1996 |
6 | हमजाद | 1998 |
7 | कयाप (लघु उपन्यास) | 2000 |
कहानी संग्रह
क्रम | कहानी संग्रह के नाम | प्रकाशन वर्ष |
---|---|---|
1 | एक दुर्लभ व्यक्तित्व | 1975 |
2 | व्यंग्य रचनाएँ | 1982 |
3 | उस देश का यारों क्या कहना | 1997 |
साक्षात्कार
मनोहर श्याम जोशी जी की भेंट वार्ता ‘बातों बातों में’ नाम से वर्ष 1983 में प्रकाशित हुयी थी |
मनोहर श्याम जोशी की अन्य रचनाएँ
पटकथा लेखन – एक परिचय
वर्ष 2000 में प्रकाशित अपनी इस कृति में जोशी जी ने औसत हिंदी के जानकार लोगों के लिए पटकथा लेखन के उपयोगी तरीकों के विषय में कई महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की हैं |
21वीं सदी
वर्ष 2001 में प्रकाशित जोशी जी की यह रचना उनके विभिन्न लेखों का संग्रह है | इन लेखों में विभिन्न विषयों जैसे पूंजीवाद, मुक्तमंडी, ग्लोबलाइजेशन तथा पीढ़ी आदि पर चर्चा समाहित है |
सम्पादकीय लेख
मनोहर श्याम जोशी ने ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ तथा ‘विकेंद्र रिव्यु’ का काफी लम्बे समय तक संपादन का कार्य किया है | अपनी पत्रकारिता के इस काल में किये गए उनके कई आधुनिक प्रयोग विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं | ‘धर्मयुग’ जैसे आदि कई पत्रों में भी उनके लेख छपते रहे हैं | प्रिंट मीडिया उनका पसंदीदा क्षेत्र रहा है | उन्होंने कई यात्रा वृतान्त भी लिखे हैं जो आज भी अप्रकाशित हैं |
धारावाहिक (दूर दर्शन)
‘हमलोग’, ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’, ‘बुनियाद’, ‘हमराही’, ‘कक्का जी कहीन’, ‘जमीन आसमान’, ‘गाथा’ आदि धरावाहिकों की रचनाएँ करके जोशी जी ने विशेष ख्याति अर्जित की |
फिल्म लेखन
जोशी जी ने ‘भ्रष्टाचार’, ‘अप्पू राजा’ जैसी फिल्मो के संवाद लिखे | साथ ही उन्होंने अपने केन्द्रीय सुचना विभाग के कार्यकाल के दौरान लगभग 250 से अधिक फ़िल्मी पटकथाओं और टिप्पणियों पर भी लेखन किया | उन्होंने ‘पापा कहते हैं’ तथा ‘हे राम’ का भी लेखन किया |
मनोहर श्याम जोशी की उपलब्धियाँ (सम्मान)
- पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान के लिए सन् 1974 में ‘मातुश्री’ पुरस्कार से सम्मानित किये गए |
- हिन्दी साहित्य अकादमी, दिल्ली का ‘साहित्य सम्मान’ वर्ष 1980 में मनोहर श्याम जोशी जी को दिया गया |
- मनोहर श्याम जोशी जी को वर्ष 1984 में ‘चेकोस्लोवाकिया’ ‘एग्रोफिल्म फेस्टीवल‘ पुरस्कार प्राप्त हुआ |
- उन्हें ‘अट्टहास शिखर’ सम्मान वर्ष 1990 में मिला |
- 1 सितम्बर, 1991 को उन्हें ‘सभा पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया |
- चकल्लस पुरस्कार वर्ष 1992 में प्राप्त हुआ |
- वर्ष 1993 में जोशी जी को ‘शारदा सम्मान’ प्राप्त हुआ |
- वर्ष 1993-94 का ‘शरद जोशी सम्मान’ जो मध्यप्रदेश सर्कार द्वारा दिया जाता है, प्राप्त हुआ |
- सन 1996 में उन्हें टी०वी० के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए ‘ओनिडा पिनेकल एवार्ड’ तथा ‘टेपा व्यंग्य’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया |
- उनके उपन्यास ‘कसप’ के लिए वर्ष 1994 में उन्हें मध्य प्रदेश शासन का पुरस्कार दिया गया |
- कहानी संग्रह एक दुर्लभ व्यक्तित्व पर हिन्दी साहित्य संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कृत किया गया |
- उनके दूरदर्शन धारावाहिक ‘बुनियाद‘ और ‘हमराही’ के लिए ‘कासलीवाल’ और ‘अपट्रान’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया |
- धारावाहिक ‘हमराही’ के लिए न्यूयार्क में ‘डे टाइमएमी’ और ‘सोप ओपेरा डाइजेस्ट’ की ओर से पुरस्कृत किया गया |
- ‘हमराही’ और ‘हमलोग’ इन दोनों धारावाहिकों पर अमेरिका में ‘रॉकफेलर फाउण्डेशन’ के सहयोग से विशेष शोधकार्य किया गया|
- मनोहर श्याम जोशी जी को विभिन्न प्रतिष्ठित सरकारी हिन्दी परामर्श संगठनों की सदस्यता भी दी गयी |