शहर के नाम : मृदुला गर्ग | ‘Shahar ke naam’ By : Mridula Garg

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शहर के नाम कहानी संग्रह में स्त्री जीवन के दर्द, संघर्ष, पीड़ा, विद्रोह, संत्रास और स्वतंत्रता की तड़प का यथार्थ चित्रण किया गया है। इस कहानी संग्रह में कुल ग्यारह कहानियाँ संग्रहित हैं जो इस प्रकार हैं।

कहानी संग्रह का नामशहर के नाम (Shahar ke naam)
लेखक (Author)मृदुला गर्ग (Mridula Garg)
भाषा (Language)हिन्दी (Hindi)
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication)1990

शहर के नाम कहानी संग्रह की कथा-वस्तु

तीन किलो की छोरी

तीन किलो की छोरी कहानी में गरीबी, छुआछूत, विषमता आदि समस्याओं को दर्शाया गया है। साथ ही बेटे और बेटी के बीच फर्क करने की निम्न मानसिकता का भी वर्णन हुआ है। ‘शारदा बेन’ सौ रुपये महीने पर बनकर जाति की ग्राम सेविका के रूप में नौकरी कर प्रसन्न हैं। उसी के बल पर वह अपने बेटे को पढ़ाती हैं। वह बेटी-बेटे में कोई फर्क नहीं करती। शारदा बेन लल्ली बेन की जचगी कराके बेटी का वजन जानकर बहुत प्रसन्न होती हैं। इस गरीब गाँव में तीन किलो की छोरी पैदा हो, यह उनके लिए खुशी एवं गर्व की बात थी। किन्तु लल्ली की सास लल्ली की तीसरी छोरी पैदा होने पर क्रोधि त हो उसे ताने भी कसती है। पति भी लल्ली से कोई सहानुभूति नहीं रखता। वहीं दूसरी ओर गरीब ‘नन्नी बेन’ बेटे को जन्म देती हैं, किन्तु उनकी गरीबी का कहर उसके बेटे पर टूटता है और वह भूख से तड़पकर मर जाता है।

करार

करार कहानी भारतीय गांवों के प्रति अपनत्व और आकर्षण रखने वाली अमरीका से आई चैरी और भारत में जन्मी में’ की कहानी है। इस कहानी के माध्यम से यह बताने का प्रयत्न किया गया है कि किस प्रकार कुछ भारतीय लोग आधुनिकता का ढोंग करते हुए भारतीय भूमि को पेड़ पौधों से रहित कर बड़े-बड़े मकानों का निर्माण कर स्वयं को आधुनिकता की दौड़ का हिस्सा मान बैठे हैं। चैरी अमरीका से यूनिसेफ की ओर से पारस्परिक जनसंचय व्यवस्था पर प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए भारत आयी हुई है। मैं’ की मुलाफात चैरी से थार रेगिस्तान के पर्यावरण और पानी की खेती पर हुए सेमिनार में होती है। चैरी ने गांव के बारे में जो सुन रखा था उसका प्रत्यक्ष अनुभव करना चाहती थी। चैरी और मैं घूमते-घूमते खेजड़ी वृक्ष के नीचे पहुँचते हैं जहाँ बापू जी के मन्दिर में दोनों का आदर सत्कार होता है। चैरी मन्दिर के बाहर आकर असंख्य खेजड़ी के वृक्ष न काटे जाने के विषय में पूछती है। उसे बताया जाता है कि यहाँ ओरण के पेड़ नहीं काटे जाते, जो काटता है वह चकरघिन्नी खाकर गिर जाता है।

चैरी का मानना है कि अंधविश्वास नियति और धर्म आदि से ऊपर उठकर यदि इन वृक्षों को छांटे जाते तो वह और भी घने होते। चैरी अंधविश्वास का ब्यौरा सुन रात भर सो नहीं पाती। वह अपनी तुलना शाखा व पत्ते विहीन पेड़ से करती है। सुबह उठने पर वह और मैं खेजड़ी का हरा-भरा वृक्ष देखकर आश्चर्य चकित होती हैं। चैरी अपनी पानी की लुटिया खेजड़ी में डाल देती है और इसे वह बापू जी के साथ का करार है कहती है तथा अपने देश न लौटने का निर्णय लेती है। इस कहानी में एक ओर तो प्रकृति से प्रेम करने वाले लोगों की कहानी कही गयी है और दूसरी ओर प्रकृति का नाश करने वाले भौतिक सुखों के लिए लालायित अमानवीय लोगों पर करारा व्यंग्य किया गया है।

अक्स

अक्स कहानी की नायिका ‘मैं’ की आँखों में नीली आँख वाला एक यूरोपियन आदमी बस गया है। मैं इस आदमी से मनोमन प्यार करने लगती है। उसके बिना वह अपने को अकेला समझती है। उसकी तलाश में वह यूरोप जाना चाहती है ताकि उस हरी आँख वाले व्यक्ति को ढूंढ सके। ऐसा नहीं है कि हिन्दुस्तान में उसे लड़कों के रिस्ते नहीं आते, किन्तु मैं उनकी आँखों में यूरोपियन युवक के समान हरी आँख और वही मुस्कुराहट तलाशती रहती है। इस तलाश में वह पेरिस जाती है। किन्तु वहाँ उसे वह हरी आँख वाला आदमी नहीं मिलता। एक दिन सहसा उसे खिड़की से बाहर देखने पर हिलता पेंड दिखायी देता है, उसमें से झांकती दो हरी आँखें वे मशाल की तरह चमक उठीं जिसे मैं ने अपनी आँखों में कैद कर लिया और आँखें मूँद लीं। आँखे खोलने पर वह पाती है कि उसकी आँखें भी हरी हो गयी हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि कहानी में भारतीय युवती की प्रेम-भावना की सूक्ष्म अभिव्यक्ति हुई है।

अनाड़ी

अनाड़ी कहानी के केन्द्र में बाहर वर्षीय सुवर्णा और उसकी मालकिन है। उन्हीं के तकरारपूर्ण सम्बन्धों की यह कहानी है। सुवर्णा अपनी मालकिन से अपनी सारी जिद पूरी करवाती है। मालकिन को डर था कि अगर सुवर्णा की जिद को पूरा नहीं करूंगी तो वह काम छोड़कर चली जायेगी। इस भय से मालकिन सुवर्णा की मांग पर उसे बिस्कुट, नेलपोलिस आदि सबकुछ देती रहती है। किन्तु एक दिन जब सुवर्णा सोफे पर बैठी बिस्कुट खाती हुई बदन हिलाकर गाना गा रही थी तभी मालकिन आकर उसे फटकारती है और घसीटती हुई बाहर निकाल देती है। सुवर्णा कहती है- “कल से नई आऊँगी काम पर सुवर्णा यह धमकी मालकिन को देती है, जवाब में मालकिन भी सुवर्णा को काम पर न आने को कह दरवाजा बन्द कर लेती है। अनाड़ी सुवर्णा यह समझ न सकी कि कोई कितना भी आलसी क्यों न हो, वह कभी भी अपने से नीची व्यक्ति को अपनी बराबरी करते हुए बर्दास्त नहीं कर सकता।

चकरघिन्नी

चकरघिन्नी एक आदर्श पत्नी और माँ बनने की कामना करने वाली ‘विनीता की कहानी है। उसकी माँ डॉक्टर होने से सुबह जल्दी अस्पताल चली जाती है। वह अपनी बेटी विनीता को पति के पास छोड़ जाती है। विनीता के पापा जो घर पर ही बच्चों का अस्पताल चलाते हैं, वह अस्पताल के साथ-साथ विनीता को भी संभालते हैं। इससे बचपन से ही विनीता अपनी माँ को आदर्श पत्नी और आदर्श माँ नहीं मानती। हालांकि उसके माँ बाप का दाम्पत्य जीवन सुखमय था। उसके पिता उसकी माँ से सन्तुष्ट थे, फिर भी विनीता स्वयं आदर्श माँ और आदर्श पत्नी बनने के लिए माँ-बाप के सपनों का गला घोंट डॉक्टरी की पढ़ाई न करके बी.ए. करने के पश्चात् विवाह करने का निर्णय लेती है। उसका विवाह बैंक के मैनेजर अनिल गोयल से हो जाता है। वह पूरी तरह से समर्पित हो आदर्श माँ व आदर्श पत्नी बनने का प्रयास करती है, किन्तु उसके बच्चे उसे नौकरी करने वाली स्त्रियों से तुलना कर नौकरी करने के लिए कहते हैं। उसका पति भी ऐसी ही इच्छा रखता है। वह मजबूरन नौकरी के लिए तैयार हो जाती है। वर्तमान युग में नौकरी करते हुए माँ और पत्नी की भूमिका निभा रही स्त्री को ही आदर्श माँ और आदर्श पत्नी माना जाता है।

बाहरी जन

बाहरी जन कहानी परिवार में नारी की निम्न स्थिति को दर्शाती है। स्त्री चाहे कितने भी बड़े मुकाम पर पहुँच जाये, चाहे कितने ही बड़े घर की स्वामिनी बन जाये फिर भी उसे पुरुष के निर्णयों, इच्छाओं पर ही जीना पड़ता है। कहानी नायिका नंदिनी’ का विवाह उच्च कुल और सभ्य परिवार में होता है। वह अपने सास-ससुर की इकलौती बहू है उसका पति देश की प्रगति की योजना को अंजाम देने के लिए लघु उद्योग स्थापित करने विदेश जाता है। ब्याह के सात साल होने पर भी नंदिनी माँ नहीं बन पाती। उसके सास-ससुर पोते का मुँह देखने के लिए तरसते रहते हैं। इस घर में नंदिनी और उसकी सास को स्वयं कोई निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। यहाँ तक की नंदिनी के ससुर राजेश्वर का मानना है कि अगर उनकी बहन न होती तो पत्नी सरिता बौडम की बौडम ही रह जाती। दोनों ही स्त्रियों तनाव से ग्रस्त हैं। डॉ तारा अग्रवाल के अनुसार इस कहानी के माध्यम से लेखिका ने यह कहने का प्रयास किया है कि भारतीय पुरुष प्रधान परिवार व्यवस्था में एक नारी की हैसियत और स्थिति उस बाहरी सदस्य या जन के समान होती है जिस प्रकार नौकर की।”

वह मैं ही थी

वह मैं ही थी कहानी की नायिका ‘उमा’ गर्भवती है वह बिहार के एक छोटे से कस्बे में रहती है जहाँ सीमेन्ट के उड़ते कणों से उसका दम घुटता है, किन्तु औरत होने के नाते उसकी नियति है कि वह वहीं रहे जहाँ उसका पति रहता है। उमा जिस घर में रहती है उसी घर में उससे पहले एक गर्भवती स्त्री ने इलाज के अभाव में पलंग पर बच्चे सहित दम तोड़ दिया था। उमा अपना बच्चा मायके में जने यह चाहते हुए भी नहीं जा पाती क्योंकि आधुनिक दिल्ली के अस्पताल का खर्चा देने में उसका पति सक्षम नहीं था। उमा उस पलंग पर बच्चा नहीं जनना चाहती जिस पर उससे पहले वाली स्त्री मरी थी। उसकी आँखों के सामने वह स्त्री बार-बार आ जाती है। वह उस स्त्री से मिन्नत करती है कि वह बच्ची को देखे, यह उसी की औलाद है। औरत ने बच्ची को देखा और उसकी आँखें करुणा से भर गयीं। उमा बच्ची की तरफ देखते-देखते दम तोड़ देती है। अपार करुणा से भरी उसकी आँखों को उसकी सास बन्द कर बच्ची को हाथ में उठा उसी पुराने पलंग पर लिटा देती है। मरकर भी उमा को यह संतोष था कि उसकी बच्ची जिन्दा है।

रेशम

रेशम कहानी नयी और पुरानी पीढ़ी के मध्य संघर्ष को व्यक्त करती है। कहानी के केन्द्रीय पात्र ‘बाऊजी’ बेहद कंजूस स्वभाव के हैं। उन्हें अपने बेटों की फिजूलखर्ची पर बेहद गुस्सा आता है। बेटे उनकी कही बातों को सुन अनसुनी करते हुए अपनी पसंद की वस्तुएँ अपने घर में लाते रहते हैं। उनका बेटा जब टीवी लाता है तब वे उसे बुद्ध बक्सा’ कहते हैं और स्वयं उसी बुद्धू बक्से के आगे ना जाने ही कितने घंटे बिताते थे। बच्चों पर तो उनका जोर नहीं चलता, किन्तु पत्नी हेमवती’ को हमेशा कम खर्च करने के लिए डाटते और हिसाब लेते रहते थे। यहाँ तक कि धीरे-धीरे उन्होंने हेमवती के हाथ में पैसा तक देना बंद कर दिया था। उनकी यह कंजूसी बहुओं को पसंद नहीं आती। उनकी बहू ‘प्रीति’ कहती हैं- “सारा कसूर आपका है, माताजी, पायदान बनेंगी तो पायदान बनायेगा आदमी”

‘हेमवती’ पति की कंजूसियत की वजह से सीधा-सादा जीवन बिताती है। किन्तु पति की मृत्यु के बाद उठावनी के दिन बहू द्वारा दी गयी रेशम की साड़ी पहन हेमवती अपने खुरदरे हाथ से उसे स्पर्श तक नहीं करना चाहती। हेमवती स्वयं आगे बढ़कर पति के शोक सभा के समापन की घोषणा करते हुए सबसे चाय पीकर ही जाने का आग्रह करती हैं। उसके इस निवेदन से लोग अचंभित तो होते हैं किन्तु हेमवती स्वयं में एक विशिष्ट आत्मविश्वास का अनुभव करती है, मानो आज ही स्वतंत्र हुई हो।

संगत

संगत कहानी में एक चित्रकार की सौन्दर्य कल्पनाओं, प्रेम में मृदुला गर्ग के कथा-साहित्य में वस्तु पक्ष समर्पण आदि का चित्रण हुआ है। चित्रकार अपनी कल्पनाओं को एक नारी चित्रकर्त्री का चित्र बना उसे मूर्तरूप प्रदान करना चाहता है। वह चित्रकार किसी भी प्रकार के बंधन में बंधकर नहीं जीना चाहता। वह स्वच्छन्द रहने के विचार से नौकरी करने से भी इन्कार कर देता है। चित्रकार बार-बार उस चित्रकार स्त्री के पास जाना चाहता है वह स्त्री इसे बहुत बड़ा कलाकार मानती है किन्तु यह कलाकार उस स्त्री को अपना सबकुछ मानता है। वह चाहता है कि वह स्त्री उसे पुरुष समझकर उसके पास आये और वह अपना सिर उसकी गोदी में रखकर चित्र बनाये। किन्तु वह स्त्री किसी और के इन्तजार में है, तब वह जान जाता है कि कला जीवन से अलग नहीं होती।

विलोम

विलोम कहानी एक ऐसी युवती की कहानी है जो सोलह साल बाद दिल्ली से बम्बई आती है। बम्बई आते ही वह स्वयं को अजनबी महसूस करती है। वह पुरानी स्मृतियों में खो जाती है। गेटवे ऑफ इंडिया पहुँचकर उसे याद आता है कि यहीं वह अपने प्रेमी के साथ बैठकर अनेक शामें बिताया करती थी। नायिका को बम्बई की हर जगह केवल उसका प्रेमी ही दिखाई देता है। उसे याद आता है कि उसका प्रेमी बम्बई छोड़ बिहार के दुमका जिले के किसी गाँव में जाकर बंधुआ मजदूरों को हक दिलाने और उनकी समस्याओं को समझने के लिए काम करना चाहता था। नायिका अपने प्रेमी के साथ बिहार जाने के प्रस्ताव को ठुकराकर दिल्ली चली जाती है। नायिका को जब यह पता चलता है कि उसके प्रेमी के नाम के किसी व्यक्ति को पुलिस ने गिरफ्तार कर पाँच साल बाद रिहा करके देश छोड़ने के लिए मजबूर किया है तब वह सोचती है हम सभी अभिमन्यु के विलोम हैं। लोकल में जाते वक्त गरीबों और झुग्गी झोपड़ियों को आत्मसात करते हुए उसे अपने प्रेमी का चेहरा साफ उभर आता है।

शहर के नाम

शहर के नाम कहानी की नायिका मैं एक समाज सेविका की तरह गरीब लोगों की समस्याओं को दूर करने का प्रयास करती हुई उनसे अपनापन बॉटने में रुचि रखती है। किन्तु उसके बप्पा इस सबसे दूर रखने के लिए उसे आगे पढ़ाई करने के लिए अमरीका भेज देते हैं, जहाँ नायिका का मन नहीं लगता। वह किसी भी हाल में अपने देश लौटना चाहती है। लेकिन उसके बप्पा अपनी बेइज्जती होने दुहाई दे उसे रोकते रहते हैं। फिर भी नायिका अपने देश वापस लौटती है लेकिन नायिका को अब यह देश अपना नहीं लगता। अन्त में वह निश्चय करती है कि झूठी आजादी के मोहपाश में नहीं बधेगी।

शहर के नाम कहानी संग्रह के पात्र

शहर के नाम कहानी संग्रह के अनेकानेक पात्रों के माध्यम से उनके जीवन की पीड़ाओं, समस्याओं आदि का अंकन हुआ है। तीन किलो की छोरी कहानी की प्रमुख पात्र ‘शारदा बेन ग्राम सेविका के रूप में काम करती है तथा लड़की लड़के का भेद-भाव नहीं मानती। वे बड़ी ही सहृदय नारी है जो हमेशा दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहती हैं। ‘कराह’ कहानी के दो प्रमुख नारी पात्र चैरी’ और मैं है। अमरीकन चैरी भारतीय गांव, यहाँ की मेहमान नवाजी आदि से प्रभावित होती है। वह भारतीय संस्कृति के प्रति आदर रखती है। ‘अनाडी कहानी की प्रमुख पात्र सुवर्णा एक समृद्ध परिवार में नौकरानी का कार्य करती है। सुवर्णा मालकिन से जिद कर अपनी सारी बातें मनवाती है किन्तु एक दिन उसे सोफे पर बैठा देख मालकिन उसे घर से निकाल देती है। सुवर्णा के मन में विद्रोह है किन्तु उसकी गरीबी की विवशता उसके मन की इच्छाओं का दमन करने पर मजबूर करती हैं। इस प्रकार चकरघिन्नी कहानी की ‘विनीता’, ‘वह मैं ही थी की ‘उमा’ आदि प्रमुख नारी पात्र हैं।

शहर के नाम कहानी संग्रह के संवाद

इस कहानी संग्रह की कहानियों के पात्रों के संवाद उनकी मनः स्थिति को उद्घाटित करने में सहायक हैं। ‘रेशम’ कहानी के पात्रों के बीच के संवाद परिवार की नई एवं पुरानी पीढ़ी के तनाव एवं संघर्ष को बयान करते हैं। बाऊ जी पत्नी हेमवती को फिजूलखर्ची के लिए हमेशा कोसते रहते हैं जिसे हेमवती बिना कुछ कहे सह लेती। चकरघिन्नी कहानी की नायिका विनीता एक ओर तो अपनी नौकरीपेशा माँ को आदर्श माँ और पत्नी नहीं मानती। वहीं दूसरी ओर स्वयं पूर्ण गृहिणी ने बनकर भी संतुष्ट नहीं है। अंत में वह नौकरी का निर्णय लेते हुए कहती है-

“माँ आप मुझे रिसेप्शनिस्ट रख लीजिए सुबह की शिफ्ट के लिए।” मैं अमित को कैसे भी मना लूँगी, प्लीज।”

“तुम!…”

शहर के नाम  मृदुला गर्ग

इसी प्रकार बाहरी जन कहानी में परिवार में स्त्री की स्थिति कितनी दयनीय एवं पुरुष के मुकाबले कितनी निम्न है, इसका पता राजेश्वर, सरिता और नंदिनी के मध्य हुए संवाद से चलता है। नंदिनी जब अपना चेकअप कराने डॉक्टर के पास जाती है तब उससे ससुर पूछते हैं कि किसने उस बेवकूफ डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी तब नन्दिनी कहती है-

“इन्होंने”, नन्दिनी ने सास की तरफ इशारा कर दिया।

“तो ये कौन ऊँचे घराने की हैं। मेरी बहन थी तो तौर तरीका सीख गयी वरना वही रहतीं, बौडम की बौडम “

शहर के नाम  मृदुला गर्ग

उपर्युक्त संवाद से यह जाना जा सकता है कि वर्तमान समय में भी नारियों की स्थिति कितनी दयनीय है।

शहर के नाम कहानी संग्रह का परिवेश

शहर के नाम कहानी संग्रह में भारत की प्रकृति, यहाँ के आचार विचार, रीति-रिवाज के साथ-साथ विदेशी संस्कृति आदि का उद्घाटन हुआ है। तीन किलो की छोरी कहानी में ग्रामीण वातावरण एवं उसी के अनुरूप लोगों के विचारों का उद्घाटन हुआ है। करार कहानी में प्राकृतिक वातावरण का सुंदर अंकन किया गया है- “वह कैर, वह झरबेली, वह बबूल, वह रोहेड़ा और वह खेजड़ी। रेगिस्तान का कल्पतरू चौड़ा फैला पेड़, पर घना नहीं। सूरज की रोशनी नीचे उगी घास को सहलाने छन आये। तभी न पेड़ के नीचे घास थी।

इसी के साथ इस कहानी में अंधविश्वास, ग्रामीण लोगों के रहन-सहन और मेहमानों के आदर-सत्कार के रिवाज आदि का चित्रण हुआ है। शहर के नाम’ कहानी में बाप बेटी के सम्बन्ध तनावपूर्ण हैं। साथ ही इस कहानी में अमरीका की जीवनशैली आदि का वर्णन हुआ है।

भाषा एवं शैली

पात्रों के अनुकूल भाषा का प्रयोग मृदुला गर्ग ने अपनी कहानियों में किया है। अनाड़ी कहानी की सुवर्णा की भाषा में मराठी शब्दों की भरमार है जैसे- पाव नको, माफिक, चांगला आदि। शहर के नाम कहानी संग्रह में अनेक शैलियों का प्रयोग हुआ है। आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग अक्स कहानी में हुआ है-

“मैंने खुद को समझा रखा था कि वह मुझे असाधारण इसलिए लगता था क्योंकि वह आम हिन्दुस्तानी आदमी से बिल्कुल अलग था।”

शहर के नाम  मृदुला गर्ग

इस प्रकार ‘शहर के नाम’ कहानी संग्रह की अधिकतर कहानी में सामाजिक समस्याओं को वर्णित किया गया है। इसके पात्र उनकी पीड़ा, उनकी समस्याएँ सबकुछ इसी समाज में रहने वाले लोगों की हैं प्रत्येक व्यक्ति का अपने शहर से लगाव रहता है उसी में जीता है और उसी में विलीन हो जाता है।


Dr. Anu Pandey

Assistant Professor (Hindi) Phd (Hindi), GSET, MEd., MPhil. 4 Books as Author, 1 as Editor, More than 30 Research papers published.

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