उर्फ सैम : मृदुला गर्ग | ‘Urf Saim’ By : Mridula Garg

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उर्फ सैम कहानी संग्रह में विविध विषयों पर लिखी गई कुल बारह कहानियों को संग्रहित किया गया है |  इस कहानी संग्रह की कहानियों में प्रवासी भारतीयों के जीवन से लेकर वृद्धावस्था के कटु अनुभव, असफल वैवाहिक जीवन, एकाकीपन, दो पीढ़ियों के मध्य के खट्टे-मीठे सम्बन्ध आदि विषयों को छूने का प्रयास किया गया है | इस कहानी संग्रह की कहानियों में विषय की विविधता देखी जा सकती है | अगली सुबह नामक कहानी में जहाँ एक ओर सन् 1984 के दंगों की पृष्ठभूमि है वहीँ विनाशदूत नामक कहानी भोपाल के यूनियन कारबाईड कारखाने से रिसने वाली जहरीली गैस के कारण होने वाली भीषण क्षति और उसके प्रादुर्भाव को अपने कथानक में स्थान देती है |

कहानी संग्रह का नामउर्फ सैम (Urf Saim)
लेखक (Author)मृदुला गर्ग (Mridula Garg)
भाषा (Language)हिन्दी (Hindi)
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication)1982

उर्फ सैम कहानी संग्रह की कथा-वस्तु

उर्फ सैम

उर्फ सैम कहानी में भारत से विदेश जा बसे सावन प्रताप उर्फ रूम के माध्यम से विदेशों में बसे अनेकों भारतीयों की कहानी कही गई है | सावन प्रताप सिंह पढ़ाई के लिए अमेरिका जाता है और वहीं बस जाता है | बाद में वह मात्र विवाह के लिए भारत वापस आता है और विवाहोपरांत वापस अमेरिका लौट जाता है | सावन प्रताप कई वर्षों तक अमेरिका में रहने के बावजूद यहाँ की जीवन पद्धति समाजिक तौर तरीके आदि को पूर्ण सण अपना नहीं पता यहाँ के समाज में पूरी तरह घुल-मिल नहीं पाता | वह स्वयं को विदेशियों के बीच बौना महसूस करता है | इसी कारण सावन प्रताप अपने बुडापे का जीवना अमेरिका के किसी ओल्ड होम में बिताने की बजाय भारत वापस आकर अपने परिवार के बीच रहने की योजना बनाता है | अपनी इसी योजना के लिए वह भारत वापस आता है जहाँ उसे ज्ञात होता है कि उसके पिता जमीन और मकान उसके दोनों भाईयों के नाम करने का निर्णय ले चुके है | यह जानकर सैम बेहद दुखी होता है तथा अपने पिता से अनुनय करता है कि यह सम्पत्ति में लगे सार पैसे लौटा देगा | सावन प्रताप एक बार पुन अपनी जड़ों से जुड़ना चाहता है | इस कहानी में सावन प्रताप की मानसिक उथल-पुथल, बुढ़ाने में एकाकी जीवन की चिन्ता आदि का वर्णन किया गया है |

वितृष्णा

वितृष्णा कहानी दिनेश और शालिनी के असफल वैवाहिक जीवन की समस्या को लेकर लिखी गई है | इस असफलता का मूल कारण है निदेश की अतिकार्यव्यस्तता तथा पति-पत्नी के मध्य संवादहीनता का अभाव | इसके कारण दोनों के वैवाहिक जीवन में शुष्कता तथा ठंडापन आ गया है | दिनेश अपनी पत्नी शालिनी को पर्याप्त समय नहीं दे पाता है, अतः शालिनी अकेलेपन से ऊब जाती है | यह अक्सर चुप ही रहा करती है | अकेलेपन की शिकार शालिनी की मनोदशा में निरन्तर बदलाव आता जाता है, जिसे अपनी व्यस्तता के कारण दिनेश नहीं समझ पाता तथा दिनों-दिन बढ़ती जा रही शालिनी की चुप्पी की ओर ध्यान नहीं देता | धीरे-धीरे शालिनी को चुप्पी की आदत हो जाती है | वह स्वयं ही दिनेश से बातचीत करने से कतराती है |

रिटायर होने के पश्चात् दिनेश के पास समय-ही-समय है और अब वह अपना सारा समय पत्नी शालिनी के साथ बिताना चाहता है, वह उससे बातें करना चाहता है, किन्तु अकेलेपन की आदि हो चुकी शालिनी अपना पत्नी धर्म निभाते हुए समय-समय पर भोजन आदि का इंतजाम बिना कमी या देरी से कर दिया करती है | लेकिन बिना कुछ बोले यंत्रचत जीवन जीती है | दिनेश लाख प्रयास करने पर भी शालिनी का साहचर्य हासिल नहीं कर पाता | शालिनी की खामोशी को देव निदेश दिन भर घर से बाहर ही रहता है | पति की गैर मौजूदगी में शालिनी अपनी बहन मंगला के साथ हँसी-मजाक कर लिया करती है, किन्तु दिनेश को देखते ही उसकी आँखों में वितृष्णा भर जाती है | वर्तमान समय में व्यवसाय लक्षी मानसिकता तथा विकास की दौड़ का व्यक्ति पर अतिरेक दबाय आदि के कारण दाम्पत्य सम्बन्धों में एक प्रकार का ठडापन तथा भावशून्यता देखी जा सकती है |

अगली सुबह

अगली सुबह कहानी में सन् 1984 में हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिक्खों द्वारा हुई हत्या के बाद देश में उत्पन्न हुए साम्प्रदायिक दगो का चित्रण किया गया है | कहानी का प्रमुख पात्र सरबजीत जिस समय अपने मित्र अजय के घर बैठा हुआ था तभी उसे यह पता चलता है कि शहर में हिन्दू और सिक्खों के बीच दंगा शुरू हो गया है | ऐसी अवस्था में उसका अपने घर वापस लौट पाना असंभव हो जाता है | अशोक की माँ सत्तो आटी किसी भी तरह से सरबजीत को बचाना चाहती हैं | दंगों की लबर सुनकर वह उसे स्टोर में ले जाकर बंद कर देती है | अशोक सरबजीत की रक्षा के लिए पुलिस से मदद सामने जाता है जिससे मामला और बिगड़ जाता है | अब सरबजीत को घर में रखना मुश्किल हो जाता है |

स्टोर में बन्द सरबजीत बाहर की आवाजें सुनकर घबरा जाता है | तभी सत्तो आंटी उसे केश काटने के लिए कहती हैं | सरबजीत केश काटकर अजय के कपड़े पहन अजय के साथ साइकिल पर निकलता है | तभी भीड़ सरबजीत के पीछे भागती है | वह चिल्लाकर कहती है सरदार घर में बंद है | दंगाई तुरंत उसके घर में घुस जाते हैं | सरबजीत को वहाँ न पाकर वे सत्तों आंटी के सर पर छड़ से प्रहार करते हैं | सरबजीत के केश सत्तो आंटी के खून से भीग जाते हैं |

उधार की हवा

उधार की हवा कहानी के प्रमुख पात्र बाऊ जी रिटायर होने के बाद भी बैठे नहीं रहना चाहते किसी के बंधन में रहकर जीना उन्हें पसंद नहीं है | रिटायर होने के बाद वे अपने मित्र राधेश्याम के साथ पार्टनरशिप में बजर जमीन खरीदते हैं | उसी बंजर जमीन पर लहलहाती फसल को देखकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता | जब-तब वे किसी-न-किसी बहाने खेत देखने चले जाते हैं | उनके बेटे मनीष और गिरीष जमीन को बेचकर दो तल्ले का मकान बनवाना चाहते हैं | मनीष बाऊजी को इस शर्त पर खेत में जाने देता है कि वह राधेश्याम को भी जमीन बेचने के लिए राजी कर लें | किन्तु खेत पहुँचकर बाऊजी तय करते हैं कि राधेश्याम अगर मर भी गया तो भी वह जमीन नहीं बेचेंगे | कहानी में बाऊजी की कर्मठता, निडरता और जमीन के प्रति उनके लगाव को अभिव्यक्त किया गया है |

बॉसफल

बॉसफल कहानी दादी और पोते के खट्टे-मीठे सम्बन्धों को लेकर लिखी गयी कहानी है | दादी अपने पोते अजय को बहुत प्यार करती है | साथ ही उसे डांट-फटकार भी लगाती है | पोते अजय द्वारा बार-बार अपमानित होकर भी वे रूठे अजय को खाने के लिए बुलाती है | अजय भी बूढ़ी दादी को खूब परेशान करता है, उनका मजाक उड़ाता है, मुँह तोड़ जवाब देता है और चादी को अंगूठा दिखाकर भाग जाता है | अजय की माँ अजय के बिगड़ने का दोष दादी पर डालती हैं |

नकार

नकार कहानी में आर्थिक विपन्नता में जीवन जी रहे एक चित्रकार की लाचारी उसकी निर्धनता आदि का चित्रण हुआ है | चित्रकार के लिए पैसा मामूली चीज है, उसके कला की पारखी महिला कलाकार हमेशा उसके चित्रों की प्रशंसा करती है | फलाकार बार-बार महिला से पैसे उधार मांगता है | यह उधार उधार ही रह जाता है | उस महिला की आय भी सीमित है, किन्तु वह चित्रकार को पैसे के लिए नकार नहीं पाती |

बीमार बेटे के इलाज के लिए कलाकार द्वारा महिला से पैसे मांगने पर उस समय पैसे न होने पर वह नकार देती है लेकिन कलाकार की नजर अपनी घड़ी अंगूठी और कंगन पर गड़ा देख कलाकार को दो सौ रुपये देने का वादा करती है | स्त्री का मानसिक द्वन्द्व हाँ ना के चक्कर में लगातार चलता रहता है |

बेनकाब

बेनकाब कहानी में भ्रष्टाचार, गरीबों का शोषण, नेताओं की खोखली राजनीति आदि का चित्रण किया गया है | गरीबों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वाला नायक ‘माधव निडर और विद्रोही प्रवृत्ति का है | माधव अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण अपनी माँ पर हुए अन्याय का प्रतिशोध लेता है और पुलिस इंस्पेक्टर ‘बेतवा की दिन दहाड़े हत्या कर आम इंसान से डाकू बन जाता है | माधव को मलाल है कि बेतवा एक ही बार में मर गया वह बेतवा को बार-बार मारना चाहता है | माधव सभ्यता का नकाब पहने लोगों की बेईमानी को बेनकाब करता है | माधव कायर होने से अपराधी होना ज्यादा बेहतर मानता है | वह गरीबों पर जुल्म नहीं करता और न ही उन पर शोषण करने वालों को माफ करता है |

नहीं

गरीबी की मार सह रहे निर्धन लोगों की लाचारी का चित्रण इस कहानी में किया गया है, साथ ही बाल मजदूरी करने को विवश बालकों के साथ उच्च वर्गीय लोगों द्वारा किए जाने वाले कटु व्यवहार पर भी व्यंग्य किया गया है | टुंडला स्टेशन पर कंपाकोला की बोतल थामे गाड़ी आने का इंतजार कर रहा ‘खेमू स्टेशन पर गाड़ी के रुकते ही डिब्बे के अंदर कूद पड़ा और ठंडा कोला की गुहार मचाते आगे बढ़ गया | उसी डिब्बे में दस-बारह आदमी तास पीट रहे थे | उन्होंने खेमू से पांच बोतलें खोलने को कहा | खेमू तीव्रता से बोतलें खोलकर देने लगा | बोतलें इकट्ठा करते समय उसने पाया कि एक बोतल कम है | वह पूरी तरह से घबरा गया | उसे पता है कि अगर एक भी बोतल या बोतल का पैसा कम पड़ा तो मालिक उसे बहुत पीटेगा और पैसा भी नहीं देगा | अतः खेमू डिब्बे में बैठे यात्रियों से बोतल और उसका पैसा लौटाने की मिन्नत करने लगा, किन्तु युवकों द्वारा अपने अपमान से वह पूरी तरह से तिलमिला उठा | आक्रोश के साथ उसने कहा-

“गरीब पर जुल्म मत करो, बाबू जी मैं कह रहा हूं पछताओगे | दे दो मेरी बोतल”

उर्फ सैम मृदुला गर्ग

इस शोरगुल से परेशान एक औरत खेमू को डांटती हुई डिब्बे से बाहर भागने के लिए कहती है, किन्तु खेमू वहाँ से नहीं हटता और बोतल बोतल कह चीखता रहा इन चीखों से परेशान औरत रेलवे को ऐसे यतीम बच्चों के डिब्बे में आने देने के लिए कोसती हुई खेमू को छ रुपये देकर फूटने के लिए कहती है किन्तु स्वाभिमानी खेमू उस औरत के सहानुभूति रहित चेहरे को देख पैसे लेने से मना कर देता है और निर्भीकता से चिल्लाते हुए कहता है-

“मेरी बोतल किसने चुरायी है? डेनी पड़ेगी मेरी बोतल लिये बिना नहीं जाऊंगा |”

उर्फ सैम मृदुला गर्ग

इस प्रकार इस कहानी में खेमू की गरीबी तथा उसके स्वाभिमानी व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है |

मिजाज

मिजाज कहानी में पुरुष द्वारा स्वयं को नारी से उच्च दिखाने तथा नारी की आत्मनिर्भरता से बौखलाये पुरुष के मिजाज और एक आत्मनिर्भर नारी के स्वतंत्र एवं निर्भीक मिजाज का अंकन इस कहानी में हुआ है | इस कहानी में मानस जब प्रथम बार श्वेता को देखता है तब उसके रूप सौन्दर्य से बहुत प्रभावित होता है लेकिन श्वेता के आगे वह स्वयं के व्यक्तित्व को बौना महसूस करने लगता है | विवाह के पूर्व ही आत्मनिर्भर श्वेता को वह स्वयं से नीचा दिखाने के इरादे के साथ उससे विवाह करता है और विवाह के बाद श्वेता की नौकरी छुड़वा देता है | भोली श्वेता मानस की इस चाल को समझ नहीं पाती और नौकरी छोड़ पूरी तरह गृहस्थी में लीन हो जाती है |

श्वेता की माँ को जब श्वेता के नौकरी छोड़ने की बात का पता चलता है. तब वह उसे समझाते हुए कहती है- पागल हो गयी क्या? नौकरी छोड़कर पूरी तरह इन पर निर्भर हो जायेगी | अस्तित्व मिट जायेगा तेरा | इस प्रकार मिजाज कहानी में पुरुष द्वारा एक स्त्री के आत्मनिर्भरता को कुचल देने की संकीर्ण मानसिकता का परिचय प्राप्त होता है |

जिजीविषा

जिजीविषा कहानी में मृत्यु शैय्या पर पड़े आदित्य भंडारी के मानसिक स्थिति का मनोवैज्ञानिक अंकन किया गया है | आदित्य भंडारी दिनों-दिन मौत की तरफ बढ़ रहा है | उसकी पत्नी दिन-रात उसकी सेवा में लगी रहती है जिससे वह खुश है | वह अपनी पत्नी के लिए जीवित रहना चाहता है वह जानता है उसकी पत्नी चाहती है कि उसका पति हर हाल में जीवित रहे क्योंकि विधवा होने पर उसे इस संसार में जीवित रहते हुए भी मृत्यु को गले लगाना पड़ेगा |

भंडारी अपनी पत्नी को नरेश के साथ देखकर और अपनी पत्नी द्वारा नरेश को जीजा न कहकर केवल नरेश पुकारना सुनकर वह बेचैन हो उठता है | दोनों को एक साथ देखकर वह मन ही मन पत्नी के व्यवहार को समझने की कोशिश करता है | अपनी पत्नी का नरेश के साथ बढ़ती नजदीकियों को देख वह समझ गया है कि न चाहते हुए भी उसे अपनी पत्नी के लिए जीना है |

चौथा प्राणी

चौथा प्राणी कहानी में अपने ही परिवार में रहते हुए एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे बीरेन नामक चौथे प्राणी के मनःस्थिति का चित्रण किया गया है | उपन्यास लेखिका ज्योति बम्बई से महामहिम बी.एन. सरकार से मिलने उनके घर आती है जहाँ महामहिम की बहन अचला अपने पति बीरेन और बेटी श्यामला के साथ पहले से ही मौजूद थी | ज्योति अचला और श्यामला से जल्द ही घुल-मिल जाती है किन्तु घर में मौजूद चौधे प्राणी के विषय में जानने की उत्सुकतावश वह उसका नाम पूछ बैठती है, किन्तु एकांतप्रिय गंभीर चौथा प्राणी कुछ नहीं कहता | उसकी बेटी पिता का नाम बीरेन बताती है | किन्तु ज्योति विश्वास नहीं कर पाती | वह उस चौथे प्राणी के मुख से उसका नाम जानना चाहती है |

एक सुबह परिवार के सभी सदस्य खंडाला जाने की तैयारी करते हैं | महामहिम के कहने पर ज्योति भी तैयार हो जाती है | जाते समय वह चौथे प्राणी को ढूढती है किन्तु चौथा प्राणी वहां जाने से मना कर देता है | ज्योति भी घर पर ही रुक जाती है | अन्य सदस्य खंडाला चले जाते हैं | ज्योति जिज्ञासावश चौथे प्राणी का नाम जानने के लिए उसके बन्द दरवाजे के पास खड़ी होकर उसका नाम पूछती है | चौथा प्राणी दरवाजा खोलकर अपना नाम बीरेन बताकर वापस दरवाजा बंद कर लेता है | बाहर फैले गहरे सन्नाटे के बीच ज्योति वहीं खड़ी रह जाती है |

विनाशदूत

भोपाल के यूनियन कारबाईड कारखाने से रिसने वाली जहरीली गैस के कारण तीन हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी | इसी सत्य और भयानक हादसे को लेकर विनाशदूत कहानी लिखी गई है | लेखिका ने मेघ और कवि के आपसी संवाद के माध्यम से भोपाल गैस कांड के भयानक हादसे का वर्णन किया गया है | मेघ कवि का संदेश ले जाने से इनकार कर देता है, इस पर कवि मेघ को फटकार लगाता है | कवि मेघ को बताता है कि उसका संदेश न पहुँचाने पर धरती पर कुछ नहीं बचेगा और उसकी भावनाओं का गला घुट जायेगा | कवि की बात सुन मेघ का गुस्सा बढ़ जाता है | मेघ कवियों के वास्तविक कर्म को याद दिलाते हुए कहता है-

“क्यों अब भी महसूस नहीं कर पा रहे उस अथाह शून्य को, जो तुम्हारे चारो तरफ फैल रहा है? कितना भयानक है यह शून्य | चीख-पुकार नहीं, शोर-गुल नहीं, बस वे आवज खांसी के दौरों का मूकप और लाशें | जहर के प्रकोप से बच नहीं पाया कोई जीवाणु अपने को त्रिकालदर्शी मानने वाला कवि वास्तविकता जानकर आहत हो उठता है |”

उर्फ सैम मृदुला गर्ग

इस प्रकार कहानी में कवियों के वास्तविक कर्म की ओर संकेत किया गया है |

उर्फ सैम कहानी संग्रह के पात्र

उर्फ सैम कहानी संग्रह की विविध कहानियों में भिन्न-भिन्न मनोवृत्ति रखने वाले पात्रों की और उनकी अनेक समस्याओं जैसे एकाकीपन, असफल वैवाहिक जीवन, वृद्धावस्था, निर्धनता आदि का चित्रण हुआ है | उर्फ सैम कहानी का सावन प्रताप पढ़ाई के लिए अमेरिका जाकर वहीं का बस जाता है | विदेशी सभ्यता से प्रभावित वह उन्हीं की तरह बोल-चाल एवं व्यवहार, वेश-भूषा आदि को सभ्य समझता है | वृद्धावस्था में अकेलेपन से निजाद पाने के लिए वह भारत में मकान बनवाना चाहता है |

दाम्पत्य सम्बन्धों की उदासीनता इस संग्रह के अनेक कहानियों के पात्रों में देखी जा सकती है | जैसे वितृष्णा कहानी की नायिका शालिनी दिनेश की पत्नी है | उन दोनों के मध्य कोई संवाद नहीं हो पाता | इसका कारण है दिनेश की अतिव्यस्तता रिटायर होने पर दिनेश अपना पूरा समय शालिनी को देना चाहता है, किन्तु शालिनी उससे मुँह मोड़ लेती है |

जिजीविषा कहानी का नायक आदित्य भंडारी अपनी पत्नी के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित पुरुष है, अतः लाईलाज बीमारी और अपनी पत्नी का अन्य पुरुष के साथ बढ़ती नजदीकियों के बारे में जानते हुए भी वह मात्र अपनी पत्नी के लिए जीना चाहता है | इसी तरह मिजाज कहानी में श्वेता की माँ आत्मनिर्भर नारी है | स्वयं नौकरी करके अपना जीवन यापन करती है |

नहीं कहानी का नायक खेमू एक निडर और साहसी बालक है | रेल के डिब्बे में अपनी कंम्पाकोला की बोतल न मिलने पर पहले तो रिरियाता है किन्तु अपना मजाक होता देख आक्रोश में भर यात्रियों को खरी-खोटी सुनाता है | उर्फ सैम कहानी संग्रह में पात्रों की विविध समस्याएँ, उनकी मनःस्थिति आदि का चित्रण हुआ है |

उर्फ सैम कहानी संग्रह के पात्र-संवाद

उर्फ सैम कहानी संग्रह में संग्रहित कहानियों में पात्रों के आपसी वार्तालाप उनके गुण दोषों एवं उनके जीवन के तनाव को उद्घाटित करते हैं | पति की अतिव्यस्तता से किस प्रकार एक पत्नी एकाकी जीवन बिताती है और मौन को आत्मसात कर लेती है, इसका चित्रण वितृष्णा’ नामक कहानी में हुआ है | दिनेश अपनी पत्नी की इस संवादहीनता से दुःखी हो मन-ही-मन विचार करता है –

“बीस साल पहले तुम्हें इतना कुछ कहना था, उसका क्या हुआ? तब मेरे पास वक्त नहीं था | अब है | अब जो कुछ कहना है, हमें एक-दूसरे से ही कहना है | इस तरह चुप्पी साधे रहने से जिन्दगी कैसे चलेगी |”

उर्फ सैम मृदुला गर्ग

यहाँ दिनेश की मनःस्थिति का अंकन हुआ है |

उर्फ सैम कहानी संग्रह का परिवेश

इस संग्रह की कहानियों में आधुनिक परिवेश का अंकन करते हुए नई पुरानी पीढ़ी का संघर्ष, पारिवारिक बिखराव, भ्रष्टाचार, अकेलापन और निर्धनता आदि का चित्रण किया गया है | दो पीढ़ियों के बीच का संघर्ष उधार की हवा’, बॉसफल आदि कहानियों में हुआ है | धन का अभाव किस प्रकार व्यक्ति को विवश बना देता है, उसका चित्रण नहीं और नकार कहानी में हुआ है |

उर्फ सैम कहानी संग्रह की भाषा और शैली

इस संग्रह की कहानियों में पात्रानुकूल प्रसंगानुकूल भाषा के साथ-साथ कहावतों और मुहावरों का प्रयोग किया गया है | प्रसंगानुकूल भाषा का चित्रण अगली सुबह कहानी में सत्तो आटी द्वारा सांप्रदायिक दगाई भीड़ को देख उनके आक्रोश की अभिव्यक्ति इस प्रकार हुई है-

“शरम करो, राक्षसों, शरम करो | उसने चिल्लाकर कहा,

“यही धरम है तुम्हारा इसी बूते पर हिन्दू कहते हो अपने आप को?”

उर्फ सैम मृदुला गर्ग

इसके साथ ही इस संग्रह की कहानियों में अनेक मुहावरों और कहावतों का प्रयोग हुआ है | जैसे साठे का पाठा होना, फुग्गामार रोना, लाखों में खेलना आदि | साथ ही इसमें वर्णनात्मक, आत्मकथात्मक आदि शैलियों का प्रयोग हुआ है |

‘जिजीविषा’ कहानी में आत्मकथात्मक शैली, मिजाज कहानी में पूर्वदीप्ति शैली, विनाशदूत’ कहानी में वार्तालाप शैली आदि का प्रयोग हुआ है | इस प्रकार उर्फ सैम कहानी संग्रह की कहानियों का कथ्य जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण एवं गंभीर है उसमें उठाई गई समस्याएँ  |


Dr. Anu Pandey

Assistant Professor (Hindi) Phd (Hindi), GSET, MEd., MPhil. 4 Books as Author, 1 as Editor, More than 30 Research papers published.

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