समागम : मृदुला गर्ग | ‘Samagam’ By : Mridula Garg

You are currently viewing समागम : मृदुला गर्ग | ‘Samagam’ By : Mridula Garg

समागम कहानी संग्रह मृदुला जी के दो लेखों सहित आठ कहानियों का संग्रह है | इस संग्रह की कहानियाँ आठ वर्षों के लंबे अन्तराल में लिखी गई हैं | समागम कहानी संग्रह का कथ्य विविध विषयों से भरा पड़ा है | इन कहानियों में कहीं माँ बेटे के बीच के कटु-मधुर सम्बन्ध हैं तो कहीं पति-पत्नी के स्वाभिमान की वजह से बर्बाद होता वैवाहिक जीवन | इस संग्रह की कहानियों में अकेलापन, सूनी गोद, औरतों की वयसंधि की मानसिकता आदि का वर्णन मिलता है |

कहानी संग्रह का नामसमागम (Samagam)
लेखक (Author)मृदुला गर्ग (Mridula Garg)
भाषा (Language)हिन्दी (Hindi)
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication)1996

समागम कहानी संग्रह की कथा-वस्तु

मीरा नाची

इस कहानी संग्रह की पहली कहानी मीरा नाची एक किशोर वय की लड़की की कहानी है जो स्वच्छन्द रहना चाहती है | किन्तु माँ की फटकार तथा कटु वचन उसकी स्वच्छन्दता में बाधक बनते हैं | यह लड़की अर्थात ‘मीरा’ एक दिन छत पर कपड़े सुखाते समय एक लड़के को पतंग की डोर थामें एक मोर की तरह नाचते हुए देख स्वयं भी उस स्वच्छंदता की कल्पना में पागल सी हो जाती है | उस लड़के को पतंग उड़ाता देख उसे भी पतंग उड़ाने की इच्छा होती है किन्तु माँ के डॉट की याद आते ही ठिठक कर रहे जाती है | मीरा के पिता ने दूसरी स्त्री के लिए उसकी माँ को घर से निकाल दिया था | उसकी माँ निरन्तर क्रोधित तथा दुखी रहती थी और उनके गुस्से का शिकार हमेशा ‘मीरा’ ही बनती थी | एक दिन माँ के मन्दिर चले जाने पर मीरा घर का सारा काम भूल पतंग उड़ाने का मन बनाती है | उसी समय माँ छत पर आ जाती हैं और ‘मीरा’ को पीटती हैं, किन्तु बेटी के पैर में मोच आयी है जानकर कुछ नहीं कहती | वह भी माँ की सहानुभूति पाने के लिए माँ को सारा काम अकेले ही करना पड़ेगा ऐसा मीठे स्वर में दुःख व्यक्त करती है | इससे माँ पिघल जाती है | मीरा का मन आत्मविभोर हो नाचने लगता है |

बर्फ बनी बारिस

बर्फ बनी बारिस कहानी में बिन्नी और अमर के जीवन में वैवाहिक सम्बन्धों के ठंडेपन से उपजे द्वन्द्व को चित्रित किया गया है | बिन्नी स्कूल में टीचर है | बिन्नी और अमर की तीन संतानें हैं- सुरेश, रमेश और विजय अमर अमरीका जाकर बसा है | स्कोलरशिप पाने पर अमरीका गए सुरेश और रमेश ने ही पापा-मम्मी को बुलाया था | अमर बिन्नी को लिए बिना ही अमरीका चला जाता है | पति-पत्नी में अहंकार की भावना होने से दोनों के सम्बन्ध बर्फ के समान बन जाते हैं | अमर बिन्नी को अमरीका ले जाना चाहता है किन्तु वह खुलकर बिन्नी से इस विषय में कुछ कह नहीं पाता | बिन्नी और अमर एक दूसरे से बहुत कुछ कहना चाहते हैं परन्तु उनका अहम् उन्हें पहल करने से रोकता है | भारतीयता के मोह तले बर्फ समान हुई बिन्नी विदेश नहीं जाना चाहती | अन्त में अमर की •बीमारी की खबर सुनकर बिन्नी तुरन्त अमेरिका जाने के लिए तैयार हो जाती है. मन में यह आश लिए कि सब साथ लौट सकेंगे |

छत पर दस्तक

छत पर दस्तक’ कहानी में विदेश में बसे अकेलेपन और एकाकी जीवन से भयभीत लोगों का वर्णन हुआ है | साथ ही इसमें अमरीका एवं भारतीय लोगों के रहन-सहन के तौर तरीकों, अमरीकनों की प्राइवेशी प्रियता, भारतीयों की शोर भरी जिन्दगी आदि की तुलना की गई है | नायिका नलिनी अपने पति के न रहने और स्वयं रिटायर होने के बाद केलिफोर्निया गये बेटे के पास रहने चली जाती है | अपने वैवाहिक जीवन में नलिनी को कभी भी प्राइवेशी नहीं मिली | वहीं बेटे के प्राइवेशी पसद होने के कारण साथ रहने के बावजूद कभी उसके कमरे तक में नहीं जा पाती | अकेले कमरे में पड़ी नलिनी को बेचैनी महसूस होती है | वह सो नहीं पाती | अकेलेपन से ऊब नलिनी उसके ऊपरी माले पर रहने वाले अकेले आदमी के पदचाप को पहचान कर बात चीत का बहाना बल्ले से ठक-ठक की आवाज करती है | उसके ठक-ठक की आवाज का प्रत्युत्तर पाकर दोनों में यह मूक संवाद नित्यकर्म बन जाता है | एक दिन उसके ठक-ठक की ध्वनि का प्रत्युत्तर न मिलने पर वह रोबर्ट पेन के घर पहुँच जाती है | दरवाजा न खुलने पर मदद के लिए अपार्टमेन्ट इमरजेन्सी को फोन करने पर पेन के फ्लैट का दरवाजा खुलता है | पेन बेहोश मिलता है | नलिनी रोबर्ट की देख-रेख के लिए पन्द्रह दिन और विदेश रहने का फैसला करती है | अन्त में वह महसूस करती है कि अकेलेपन का डर सिर्फ उसे ही नहीं अपितु रोबर्ट और उसके बेटे को भी है |

जेब

जेब कहानी नाटककार एवं निर्देशक के बीच के सम्बन्ध तथा उनके मध्य बिचौलिए किस प्रकार अपना फायदा उठाते हैं, उसका चित्रण है | इस कहानी के नायक सुरेश की आर्थिक स्थिति दयनीय है | वह हमेशा पैसों के इन्तजाम के लिए मारा-मारा फिरता है और स्वयं की तुलना जेब से करता है | गरीबी की आग में झुलसते सुरेश के प्रति पाठक एक बार जरूर सोचने पर मजबूर हो जाता है | इस कहानी के माध्यम से लेखिका ने झूठ और धोखेबाजी करके आमदनी एकत्र करने वाले लोगों का पर्दाफास किया है |

बाकी दावत

बाकी दावत कहानी में उच्च और निम्न वर्ग के दो परिवारों का चित्रण हुआ है | एक ओर जहाँ ऐसो आराम एवं वैभवशाली जीवन का आनंद ले रहे बीवीबाई, उनका पति और संतानें अमित तथा स्वाति हैं, वहीं दूसरी ओर गरीबी में दूसरों का उतरन और जूठन पहनने और खाने वाले बीवीबाई का वाहन चालक मणिराम, उसकी बीवी और बेटा दीपक और बेटी ललिता हैं जो बीबीबाई के रहमोकरम पर जीते हैं | बीबीबाई विलासी स्त्री है जो ऐसो आरामा की जिन्दगी बिताती है | उसका पति उसे अपने ठेके पास करवाने के लिए गैर मर्द के पास भेजता है | ऐसा करके भी वह रंगा सियार स्वयं को नामर्द महसूस नहीं करता | बीवीबाई के विशेष रहमोकरम से मणिराम के परिवार को किसी चीज की ज्यादा किल्लत नहीं होती थी | उसकी बेटी ताज होटल में नौकरी करती है और बेटा साहब की कंपनी में क्लर्क है | बीवीबाई के बच्चों के जन्मदिन पर मणिराम के घर पर भी उसके बच्चों का जन्मदिन हो ऐसी रौनक रहती है | एक दिन जब मणिराम की बेटी उसे अपने जन्मदिन का केक खिलाती है तब मणिराम बीवीबाई द्वारा ललिता के लिए भेंट में दिए गये सौ रुपये की नोट लेने में नामर्दगी का अहसास करता है |

बड़ा सेब काला सेब

बड़ा सेब काला सेब’ कहानी में लेखिका ने उस भ्रम को तोड़ने का प्रयास किया है जिसमें यह माना जाता है कि अमेरिका के नीग्रो असभ्य हैं और गोरे सभ्य हैं | काले मार-पीट, खूनखराबा करते हैं | कहानी की नायिका अर्थात मैं काम के सिलसिले में न्यूयोर्क पहुँचने पर अनुभव करती है कि यहाँ कोई भी गोरा उसकी सहायता नहीं करता | उसे अपने शहर में कहा गया था कि काले से सावधान रहना | यहाँ तो प्रत्येक स्थान पर उसकी मदद केवल काले ही करते हैं, चाहे वह चापाकुआ स्टेशन पर पहुँचना हो, चाहे मैनहेटन टैन्थ स्ट्रीट पर जाना हो या अपने देश वापस लौटते समय भी काला ही नायिका की सहायता करता है | कहीं किसी स्थान पर गोरे उसकी सहायता नहीं करते | इस कहानी में सभ्य दिखने वाले असभ्य गोरों पर व्यंग्य किया गया है |

बीच का मौसम  

बीच का मौसम’ कहानी में स्त्री त्रासद जीवन का यथार्थ चित्रण हुआ है | माया, क्षिप्रा, राजश्री और पम्मी की यह कहानी है | आत्मनिर्भरता की चाह में राजश्री बच्चों और पति के होते हुए भी दुकान खोलती है | क्षिप्रा माँ नहीं बन पाती जिसका दुख निरन्तर उसे सालता रहता है, और उसका पति अन्य स्त्रियों से शारीरिक सम्बन्ध बनाता है | पम्मी जो कि कुँवारी और अकेली है, वह निशा (कुतिया) से समलैंगिक सम्बन्ध बनाती है | माया पति से तलाक लेकर अलग रहती है | चारो सहेलियाँ अपने जीवन में आये इस त्रासद मौसम को बदलना चाहती हैं |

समागम

समागम माँ बेटी के संघर्षशील जीवन की कहानी है | इस कहानी की नायिका मैं बचपन में एक बूढ़े व्यक्ति को पैरों तले कुचले जाते हुए देखकर चीखने लगती है | अमला राजस्थान के घोरटे में खदानों के मजदूर यूनियन की ओर से लड़ रही थी, उसी समय उसकी हत्या कर दी जाती है | अमला की माँ ने अपनी बेटी को साहसी एवं जुझारू बनाया था |

समागम कहानी संग्रह के पात्र

समागम कहानी संग्रह में भिन्न-भिन्न प्रकार के पात्र है, जिनके सुखद, त्रासद तथा संघर्षमय जीवन का वर्णन किया गया है | इस संग्रह के कुछ पात्र जहाँ अति सुख सुविधापूर्ण जीवन यापन करते हैं, वहीं कुछ पात्र गरीबी तथा बेबसी में अपना जीवन गुजारते हैं | मीरा नाची’ कहानी की नायिका मीरा अपने माँ बाप की इकलौती संतान है, किन्तु हमेशा उसे अपनी माँ के गुस्से और गालियों का शिकार बनना पड़ता है | बर्फ बनी बारिश की नायिका बिन्नी के अस्तित्वगत चेतना को जीवित रखने की कहानी है | बिन्नी एक स्कूल में टीचर है, वह एक स्वाभिमानी स्त्री है, वह अमर के साथ अमरीका नहीं जाती | प्रथम बार अमर अमरीका जाते समय दिन्नी से पूछे बिना अकेले ही जाने का निर्णय लेता है | यह दुःख बिन्नी को सदैव सालता रहता है |

छत पर दस्तक कहानी की नायिका नलिनी अकेलेपन की शिकार है | पति विवेक की मृत्यु के पश्चात् वह और भी अकेली हो जाती है | बेटे के अमेरिका बुलाये जाने पर वह अमेरिका जाती है | वहाँ भी वही अकेलापन उसे घेर लेता है क्योंकि बेटा प्राइवेशी पसन्द है | समागम कहानी में दो प्रमुख पात्र है, अमला और उसकी माँ पेशे से वकील अमला एक जुझारू लड़की है | वह भीड़ से दूर रहती है | स्वभाव से मिलनसार, साहसी, निडर एवं स्वाभिमानी अमला की घोर्ट में यूनियन को और से केस लड़ते समय हत्या कर दी जाती है | अमला की माँ बड़ी साहसी और लीक से हटकर चलने वाली स्त्री है | इस कहानी संग्रह के अन्य पात्रों में ‘जेब’ कहानी का ‘मैं, बाकी दावत का मणिराम तथा बीबीबाई बीच का मौसम से पम्नी माया, राजश्री आदि पात्र है |

समागम कहानी संग्रह के संवाद

समागम कहानी के पात्रों के मध्य हुए बात-चीत के माध्यम से उनके जीवन की अनेक झांकिया दृष्टिगत हुई है | बर्फ बनी बारिश कहानी में बिन्नी और अमर के बीच हुए संवाद से दोनों के जीवन में आये अकेलेपन का पता चलता है | इस अकेलेपन की पीड़ा दोनों में है | अमर जब अमेरिका से लौटता है तब एक रात वह बिन्नी से उसके अकेले रहने के विषय में पूछता है –

थकी-मादी बिस्तर पर लेटी थी तो अमर ने पूछा था, तुम्हें अकेला नहीं लगता?

“अकेला कौन नहीं है दुनिया में उसने कहा था |

‘तुम्हारे पास फिर भी विजय है.’ अमर कह गया था |

‘आप विजय को ले जाना चाहते हैं?” ‘हां’

समागम  – मृदुला गर्ग

इसी प्रकार छत पर दस्तक कहानी में अमरीका गई नलिनी बेटे के होते भी अकेलापन महसूस करती है | रात में जब उसके घर के छत से किसी मर्द के पदचाप की आवाज सुनायी देती है तब वह अपना अकेलापन दूर करने एवं उस व्यक्ति को जानने की चाह से छत पर बल्ले से ठक-ठक के द्वारा रोबर्ट से बात-चीत करती है और इस प्रकार दोनों अपने एकाकी जीवन को कुछ कम करने की कोशिश करते हैं | एक उदाहरण –

“अच्छी हो?”

“हां, तुम?”

“कल नींद अच्छी आई |” “सच, सो गए थे?”

“हां, तुम?”

“बाद में ….”

“थपकी दूं कल जैसी?

“हां कल जैसी थपकी |छत पर थपकियाँ देने लगी और… देते

देते सो गई |”

समागम  – मृदुला गर्ग

इसी प्रकार बीच का मौसम कहानी में क्षिप्रा और राजश्री के मध्य हुए संवाद से उनके जीवन में पसरे खालीपन का पता चलता है | उदाहरणार्थ-

“क्षिप्रा… हम सब अकेले हैं… इस गिलास की तरह |”

“यह अकेला नहीं खाली है.” राजश्री ने कहा…. “हम खाली भी हैं… अकेले भी.” क्षिप्रा ने कहा और दूसरी बोतल खोलने लगी |”

समागम  – मृदुला गर्ग

समागम कहानी संग्रह का परिवेश

‘समागम कहानी संग्रह की अनेक कहानियों में वातावरण का सुन्दर चित्रण किया गया है | मीरा नाची कहानी के प्रारंभ में ही बारिश की सुन्दरता दृष्टिगत होती है | उदाहरण-

“धारोधार बारिश के बाद धूप निकली थी | चटकीली चमकीली हवा भी चल रही थी | बरस लेने के बाद की साफ तेज़-तेज़ |”

समागम  – मृदुला गर्ग

समागम कहानी संग्रह में संग्रहित छत पर दस्तक, बर्फ बनी बारिश, बड़ा सेब काला सेब आदि कहानियों में पाश्चात्य संस्कृति और वहाँ के लोगों के रहन-सहन आदि की अभिव्यक्ति हुई है |

समागम कहानी संग्रह की भाषा एवं शैली

इस संग्रह की कहानियों की भाषा सरल, सुबोध एवं पात्रानुकूल है | पात्रों की भाषा में हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं के शब्दों की भी भरमार है | नलिनी एवं रोबर्ट पेन बल्ले के ठक-ठक के संकेत द्वारा बातचीत करते हैं | समागम कहानी संग्रह में अनेक शैलियों का निर्वाह हुआ है | मीरा नाची, जेब, बड़ा सेब काला सेब, बीच का मौसम आदि में आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग किया गया है | समागम कहानी में पूर्वदीप्ति शैली का प्रयोग हुआ है | घाट पर बैठी मैं स्मरण करते हुए –

“मै तेरी गोद में सिर रख कर मरी होती, अमला, तो मुक्ति मिल गई होती मुझे | ठीक से देखो, मां, बेटा बाप की गोद में मरा पड़ा है, बाप बेटे की गोद में नहीं | मैं तुम्हारी गोद में सिर रखकर मरती | तब भी…”

समागम  – मृदुला गर्ग

Dr. Anu Pandey

Assistant Professor (Hindi) Phd (Hindi), GSET, MEd., MPhil. 4 Books as Author, 1 as Editor, More than 30 Research papers published.

Leave a Reply