डेफोडिल जल रहे हैं : मृदुला गर्ग | Daffodil jal rahe hain By : Mridula Garg

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डेफोडिल जल रहे हैं कहानी संग्रह में मृत्युबोध के अंकन के साथ-साथ नारी मन का भी चित्रण हुआ है | इसमें कुल तीन लंबी कहानियाँ संग्रहित हैं | ‘डेफोडिल जल रहे हैं ‘, ‘मेरा’ और ‘स्थगित कल’ | आधुनिक परिवेश की इन कहानियों में पारिवारिक तनाव, जागरूक एवं अपने अधिकारों के प्रति सजग नारी का विद्रोह तथा अन्य समस्याओं का चित्रण किया गया है | डेफोडिल जल रहे हैं कहानी में जहाँ जिन्दगी और मौत के अस्तित्ववादी बोध तथा प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुपम चित्रण किया गया है वहीँ ‘मेरा‘ कहानी में अस्पताल के घुटन भरे वातावरण का चित्रण है |

कहानी संग्रह का नामडेफोडिल जल रहे हैं (Daffodil jal rahe hain)
लेखक (Author)मृदुला गर्ग (Mridula Garg)
भाषा (Language)हिन्दी (Hindi)
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication)1978

डेफोडिल जल रहे हैं कहानी संग्रह का कथानक

डेफोडिल जल रहे हैं

यह कहानी नवविवाहित वीना और सुधाकर की है | ये दोनों हनीमून मनाने के लिए गुलमर्ग आते हैं जहाँ कुछ दिन घूमने के बाद बीन को तेज बुखार होने पर सुधाकर डॉ. फिरोज दस्तून और जिना को बुलाता है | फिरोज बीना का इलाज करते हैं और जिना बीमार वीना की खूब देखभाल करती है | वीना प्रथम बार जिना से मिलने पर उससे बेहद प्रभावित होती है | हमेशा मृत्यु के बारे में सोचने वाली जिना बीना के लिए लाये गए डेफोडिल के फूल को देखकर बीना से कहती है-

“देखा तुमने और लोगों को मरने के बाद फूल मिलते हैं तुम्हें पहले ही मिल गए तेज बुखार से जल रही बीना को डेफोडिल का फूल भी जलता हुआ दिखाई देता है |“

डेफोडिल जल रहे हैं – मृदुला गर्ग

वीना जब प्रथम बार जिना को देखती है, तब उसे लगता है कि कहीं यह देवदूत तो नहीं वह बार-बार अपनी आँखे खोल जिना को देखने का प्रयास करती है | बीमारी से ठीक होने पर बीना, सुधाकर, फिरोज और जिना खिल्लनमर्ग घूमने जाते हैं जहाँ बीना और जिना बर्फ की नरम फैलाव पर खूब दौड़ते हँसते हैं |  कभी-कभी जिना अजीब सी पेश आती है | –  

“दूर किसी अनजान बिंदु पर टिकी उसकी सपनीली आखें रह-रहकर एक वहशी हरी कौंध से चमक उठती है | जिना की आँखों में हरी चिंगारिया दिखायी पड़ती हैं |  जिना कभी बर्फ पर दौड़ती हँसती है, तो कभी अपने होठ दांतों तले भींचती है और कभी गंभीर हो उठती है, तो कभी भीचे होठ खोल हँस पड़ती है |”

डेफोडिल जल रहे हैं – मृदुला गर्ग

बर्फ में खेलते-खेलते अचानक जिना आईरिस और डेफोडिल के फूलों की खाई में जा गिरती है |  सब लोग उस खाई की तरफ दौड़ते हैं |  जिना की मृत्यु हो जाती है | पत्नी की मृत्यु देख फिरोज चिल्ला उठते हैं |  उनकी दर्दनाक चीख चारों दिशाओं में गूंजने लगती है |  जिना की मृत्यु के बाद उसके द्वारा लिखा पत्र बीना को मिलता है जिसमें उसने अपनी मृत्यु के विषय में लिखा था कि-

“दरअसल, खूबसूरत सिर्फ जिंदगी होती है, पर मौत उसका हिस्सा जरूर बन सकती है |  जानती हो, जब कोई आदमी जिन्दगी से बहुत-बहुत प्यार करता है तो उसके लिए मरना आसान हो जाता है | ”

डेफोडिल जल रहे हैं – मृदुला गर्ग

जिना अपनी मौत के लिए खिल्लनमर्ग को चुनती है वह हँसते हुए मरना चाहती थी ताकि उसका पति फिरोज उसका हँसता हुआ चेहरा याद करे |

मेरा

मेरा मेरा कहानी में वैवाहिक जीवन के तनावपूर्ण स्थिति का अंकन किया गया है | यह तनाव मीता और ‘महेन्द्र अग्रवाल के वैवाहिक जीवन में उत्पन्न हुआ है | आधुनिक समय में यह तनाव ज्यादातर पति-पत्नी में देखा जाता है, जहाँ पर पति अपनी इच्छा के बिना पत्नी को बच्चा पैदा करने की अनुमति नहीं देता | मीता का पति महेन्द्र एक कंपनी में असिस्टेन्ट इंजीनियर है और छः सौ रुपये तनख्वाह पाता है | मीता भी सेतु ट्वेल्स में टाइपिस्ट की नौकरी कर तीन सौ रुपये माहवार कमाती है |

महेन्द्र हमेशा योजनाबद्ध तरीके से जीना चाहता है | उसके सभी काम योजना के अनुसार ही होने चाहिए | उसकी बनाई योजनाओं में एक योजना यह भी थी कि पहले वह और मीता अमेरिका जायेंगे जहाँ वह स्वयं पढ़ाई करेगा और मीता नौकरी करेगी | जब महेन्द्र की पढ़ाई पूरी हो जायेगी तब वे बच्चा पैदा करेंगे | वह पहले ही बच्चा लाकर बच्चे की जिन्दगी चौपट नहीं बनाना चाहता | महेन्द्र का पालन-पोषण बड़े ही अभाव में हुआ था अतः यह नहीं चाहता था कि उसकी बीवी तथा बच्चे अभावों के उसी दौर से गुजरें |

महेन्द्र चाहता था कि जब वह स्वयं कमाने लगे और घर में सारी सुविधाएँ जैसे बड़ा घर, गाडी नौकर चाकर आदि होने के बाद ही उसका बच्चा पैदा हो | मीता के गर्भवती होने की बात सुन एबोर्सन कराने के लिए मनाता है |  किन्तु मीता इन्कार कर देती है |  वह अपने गर्भ-शिशु को जन्म दे पालना चाहती है | इसके लिए वह तमाम कठिनाईयाँ भी उठाने के लिए तैयार हो जाती है | महेन्द्र मीता से गर्भपात के विषय में उसकी माँ से बात करने की सलाह देता है | मीता माँ से सहारा पाने की आशा में अपनी माँ के घर जाती है किन्तु वहाँ उसे पता चलता है कि माँ खुद दो बार इस प्रक्रिया से गुजर चुकी हैं | मीता यह जान भय और आतंक से कॉप उठती है | उसकी माँ कहती है-

“सुना है, अब यह गैर कानूनी भी नहीं रहा | सरकारी अस्पतालों में मुफ्त हो जाता है |”

डेफोडिल जल रहे हैं – मृदुला गर्ग

अन्ततः महेन्द्र उसे डॉक्टर के पास ले ही जाता है जहाँ डॉक्टर से उसे पता चलता है कि गर्भपात सिर्फ स्त्री की इच्छा पर निर्भर रहता है | यह सुन मीता गर्भपात के फार्म पर बिना हस्ताक्षर किए फाड़ देती है और गर्भपात न कराने का निर्णय लेती है | महेन्द्र उसके निर्णय से आश्चर्यचकित होता है | लेखिका के अनुसार उसका चेहरा बिलकुल शांत है. तुष्टि का ऐसा भाव है जो पर्वतारोही के मुख पर दुर्गम चोटी पर पहुच जाने पर खिल आता होगा मृदुला जी की इस कहानी की प्रसिद्धी ही है कि भीम सेन के निर्देशन में इस कहानी पर आधारित तुम लौट आओ नामक फिल्म बनायी गयी |

स्थगित कल

स्थगित कल कहानी में मृत्यु चेतना का मानवीय सम्बन्धों पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाया गया है | दार्शनिकता से युक्त इस कहानी में मृत्यु की आशंका से ग्रस्त और जीवन जीने की परम इच्छा आदि का वर्णन हुआ है | इस कहानी के प्रमुख दो पात्रों विपिन और प्रवीण की आत्मकथा के के माध्यम से दोनों के जीवन जीने की इच्छा और अनिच्छा का अंकन किया गया है | आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न प्रवीण को कैंसर की आशंका है |  इस आशंका में वह दिनों को गिनते हुए अपने तरीके से जीना चाहता है | उसने स्वयं यह झूठी अफवाह फैला रखी है कि उसे लाईलाज कैंसर है | अपने इस खबर की जानकारी से पत्नी और पुत्र पर क्या असर होगा यह जानने के लिए वह उत्सुक है |

प्रवीण मृत्यु को करीब से जानने के लिए टिक-20 खा लेता है, किन्तु वह बच जाता है | वह ऐसा करके मृत्यु से साक्षात्कार करना चाहता है | वह सोचता है कि मृत्यु के करीब पहुँचकर क्या होता होगा | मृत्यु की आशंका की वजह से प्रवीण न तो कंपनी ही जा पाता है, ना अपने मित्र मिस्टर वर्मा के घर खाने पर ही जा पाता है |  बल्कि वह बीवी बच्चों समेत प्रवासी चिड़ियों को देखने चिडियाघर जाता है | प्रवीण के विषयय में जानकर उसका मित्र विपिन बेहद बेचैन हो जाता है | उसे लगता है कि जरूर प्रवीण ने अपने मन में कोई दुख छिपा रखा होगा |

विपिन की नौकरी छूटने पर प्रवीण उसे पाँच सौ रुपये देना चाहता है और देता भी है |  विपिन उधार में लिए गए रुपये जल्द ही लोता देना चाहता है किन्तु रुपये न होने से वह प्रवीण के घर उसे देखने तक नहीं जा पाता |  यह सोचता है कि ऐसो की व्यवस्था जल्द ही कर प्रवीण से मिलने जायेगा, किन्तु ऐसा न हो पाने के कारण अपने विचार को हरदम कल पर स्थगित करता रहता है |  पैसों का इन्तजाम करने के लिए यह अथाह परिश्रम करता है |  एक दिन डॉ. मजूमदार की क्लिनिक में नौकरी के लिए जाते समय चक्कर खाकर विपिन साईकिल से गिर जाता है |  मरते-मरते सोचता है कि अगर वह बच गया तो प्रवीण को उसके रुपये लौटा देगा तथा अपनी मित्रता को कल तक स्थपित नहीं रखेगा |

विपिन का मानसिक द्वन्द बढ़ता ही चला जाता है | मरते मरते वह चीख पड़ता है कि उसके परिवार की देख-रेख कौन करेगा? इसके प्रत्युत्तर में प्रवीण उसके परिवार की देखभाल करने का वादा करता है | प्रकार कहानी का दुखद अत हो जाता है | स्थगित कल को पढ़कर जैनेन्द्र ने मृदुला जी को बधाई देते हुए पत्र लिखा था-

“अभी तुम्हारी स्थगित कल पढ़कर साक्षात्कार का अंक हाथ से छोड़ा है | इतनी पीड़ा इधर शायद ही किसी कहानी में दी हो |  मेरी बधाई लो. हार्दिक बधाई |”

डेफोडिल जल रहे हैं – मृदुला गर्ग

डेफोडिल जल रहे हैं कहानी संग्रह के पात्र तथा संवाद

डेफोडिल जल रहे हैं कहानी संग्रह की अधिकतर कहानियों के पात्र मृत्यु का अनुभव करने को लालायित दिखाई देते हैं तथा स्वयं मृत्यु का वरण करना चाहते हैं, चाहे वह डेफोडिल जल रहे हैं कि जिना हो या स्थगित कल का प्रवीण डेफोडिल जल रहे हैं के प्रमुख नारी पात्र जिना बड़ी ही सहृदय स्त्री है | वह अपने पति फिरोज के साथ घूमने के लिए गुलमर्ग आती है जहाँ उसकी मुलाकात बीना से होती है | मिलनसार मिजाज की जिना बीमार बीना की खूब देखभाल करती है | जिना को मृत्यु से प्रेम है | वह मानती है कि जिसे जीवन से प्रेम होता है उसके लिए मरना आसान हो जाता है |  इस कहानी के अन्य पात्रों में बीना. सुधाकर और फिरोज हैं | 

‘मेरा’ कहानी की प्रमुख नारी पात्र मीता है जो कि नौकरीपेशा, आत्मनिर्भर एवं आधुनिक ख्यालों की है |  मीता मातृत्व प्रेम से युक्त तथा अपने अधिकारों के प्रति जागृत नारी है |  इसके तहत वह अपने गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा पति के विरुद्ध जाकर करती है | इसके तहत वह अपने गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा पति के विरुद्ध जाकर करती है | इस कहानी का प्रमुख पुरुष पात्र महेन्द्र पढ़ा-लिखा नौकरीपेशा व्यक्ति है |  वह अपने पूर्वनिर्धारित योजनाओं के तहत ही जीना चाहता है और ऐसी ही अपेक्षा पत्नी मीता से भी रखता है | अतः अपनी योजना की समयावधि से पूर्व ही पत्नी के गर्भ धारण कर लेने पर वह उसे गर्भपात करने के लिए कहता है क्योंकि वह नहीं चाहता कि उसके भी बच्चे उसी की भाति अभावयुक्त जीवन व्यतीत करे |

स्थगित कल कहानी में प्रवीण और विपिन प्रमुख पुरुष पात्र हैं |  प्रवीण अर्थसम्पन्न, एक बड़े पर व फैक्ट्री का मालिक है |  वहीं विपिन अर्थ के अभाव में किसी तरह परिवार का भरण पोषण करता है |  इस कहानी संग्रह की कहानियों के पात्रों के संवाद उनके मृत्युबोध, गुण-दोष, दाम्पत्य सम्बन्धों की शिथिलता आदि को उजागर करते हैं |  

मेरा कहानी में महेन्द्र और मीता के संवाद उनके मध्य तनाव को दर्शाते हैं |  महेन्द्र मीता से गर्भपात कराने का कारण बताते हुए कहता है-

इतनी जल्दी बच्चा हो गया  |  मेरे हाथ-पांव बँध जाएंगे |  मैं कुछ नहीं कर सकूगा |

डेफोडिल जल रहे हैं – मृदुला गर्ग

मीता गर्भपात का इन शब्दों में विद्रोह करती हुयी पति महेन्द्र से कहती है-

“तुम जाओ |  अभी फौरन अमेरिका चले जाओ |  तुम हत्यारे हो, अब नहीं तो बाद में मार डालोगे, मेरे बच्चे को | “

डेफोडिल जल रहे हैं – मृदुला गर्ग

इस प्रकार इस कहानी के संवाद बेहद प्रभावशाली तथा पात्रों की समस्याओं को उद्घाटित करने में सफल हुए हैं |

डेफोडिल जल रहे हैं कहानी संग्रह की भाषा एवं परिवेश

मनुष्य के समग्र विकास के केन्द्र में उसका परिवेश ही जिम्मेदार होता है | व्यक्ति जिस परिवेश में रहता है, उसका प्रभाव उस पर जरूर पड़ता है | डेफोडिल जल रहे हैं कहानी संग्रह की कहानियों में आधुनिक परिवेश का अंकन हुआ है जिसमें नारी की विडंबना, पति-पत्नी के मध्य तनाव आदि समस्याओं को उभारा गया है | मेरा कहानी में अस्पताल के घुटन भरे वातावरण का चित्रण है वहीं डेफोडिल जल रहे हैं में प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुपम चित्रण किया गया है | इस कहानी संग्रह की कहानियों में काव्यात्मक चिन्तनप्रधान भाषा का प्रयोग हुआ है | पात्रानुकूल भाषा के साथ-साथ अनेक शैलियों का भी प्रयोग हुआ है | इस प्रकार डेफोडिल जल रहे हैं कहानी संग्रह की कहानियों में मृत्यु की आकस्मितता को चुनौती मृत्यु चेतना की अभिव्यक्ति और स्त्री के खोये हुए निजत्व आदि की चर्चा की गई है |


Dr. Anu Pandey

Assistant Professor (Hindi) Phd (Hindi), GSET, MEd., MPhil. 4 Books as Author, 1 as Editor, More than 30 Research papers published.

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