टुकड़ा टुकड़ा आदमी : मृदुला गर्ग | Tukada Tukada Aadmi By : Mridula Garg

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टुकड़ा टुकड़ा आदमी कहानी संग्रह की कहानियों में नारी के मानसिक संत्रास असफल वैवाहिक जीवन, आर्थिक शोषण आदि समस्या की अभिव्यक्ति हुई है | इस कहानी संग्रह में कुल चौदह कहानियों संग्रहित हैं | इन कहानियों का परिचय इस प्रकार है –

कहानी संग्रह का नामटुकड़ा टुकड़ा आदमी (Tukada Tukada Aadm)
लेखक (Author)मृदुला गर्ग (Mridula Garg)
भाषा (Language)हिन्दी (Hindi)
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication)1977

टुकड़ा टुकड़ा आदमी कहानी संग्रह का कथानक

टुकड़ा टुकड़ा आदमी

टुकड़ा टुकड़ा आदमी नामक कहानी मे कारखानों में काम करने वाले गरीब मजदूरों के हालात तथा अधिकारी वर्गों के झूठ और भ्रष्ट आश्वासनों का चित्रण हुआ है | इस कहानी में बेलापुर सीमेन्ट कंपनी के चेयरमेन सुबोध कुमार के दोगले चरित्र का उद्घाटन हुआ है | बेलापुर गांव के कारखाने में काम करने वाले मजदूरों की हालत देख सुबोध कुमार मजदूरों के लिए कालोनी बनवाने का आदेश मैनेजर मोहन प्रसाद को देता है |  मकान के लिए एस्टीमेट निकलवाने का आदेश भी देता है | यहाँ तक की वर्षा से त्रस्त गरीब मजदूरों के लिए रसद, कम्बल और बच्चों के लिए दूध पहुँचाने की घोषणा मैनेजर से करवाता है | गरीबों के प्रति दया और संवेदना रखने वाला सुबोध कुमार मजदूर बस्ती की गन्दगी नंगे और गन्दे कीचड़ से सने बच्चों को देखकर उसका मन बेहद घृणा से भर उठता है | इन सबसे परेशान हो सुबोध अपनी रखेल प्रभादेवी के पास पहुँच जाता है | रात में उसके साथ पशुवत व्यवहार कर सुबह अपने उस व्यवहार को छुपाने के लिए प्रभादेवी को नीले हीरे का हार देने के लिए कहता है |  शेयर में नुकसान होने पर सुबोध वादे के मुताबिक अपनी रखैल को हार दे पाने में असमर्थ होता है | ऐसी अवस्था में वह हार के लिए कंपनी से पाँच लाख रुपये लेता है, जिसके कारण मजदूरों सम्बन्धी उसकी सभी योजनाएँ तथा वादे धरे के धरे रह जाते हैं |

पोंगल-पोली

पाषाण मूर्ति के साथ बेहद लगाव रखने वाली सोनम्मा पोंगल-पोली कहानी की नायिका है | इस कहानी में ग्रामीण जीवन की साधनहीनता, दयनीय जीवन की कथा प्रस्तुत की गई है | चालूक्यों की कला पर शोध कार्य करने के लिए आइहोले नामक गाँव में महानगर से एक स्त्री और पुरुष आते हैं | ये शोधकर्ता सोनम्मा के घर के करीब ही यक्ष-यक्षिणी की मूर्ति देख बहुत खुश होते हैं | ये मूर्ति उन्हें ऐतिहासिक लगती है |  सोनम्मा को बचपन से ही इन यक्ष-यक्षिणी से प्यार हो गया था | उसी ने उन्हें प्यार से पोंगल-पोली नाम दिया था |  सोनम्मा उन मूर्तियों की ऐतिहासिकता और कलात्मकता से अनभिज्ञ थी | उन मूर्तियों की मांग जब शोधकर्त्री स्त्री करती है तब सोनम्मा मना कर देती है | इससे महानगरीय स्त्री ग्रामीण लोगों की कला की अज्ञानता के बारे में अपने साथी पुरुष से कहती है-

“गरीब लोग हैं, इन बेचारों को कला का क्या ज्ञान? मुझे तो सच, बड़ा दुख होता है इनके लिए |”

टुकड़ा टुकड़ा आदमी – मृदुला गर्ग

इस तरह कहानी में ग्रामीण लोगों के दयनीय जीवन के साथ निम्न वर्ग व उच्च वर्ग के सौंदर्यबोध में अन्तर दिखाया गया है |

दूसरा चमत्कार

दूसरा चमत्कार कहानी के माध्यम से उच्च वर्ग की पाखंड वृत्ति और निम्न वर्ग एवं गरीब अनपढ़ लोगों की अंध श्रद्धा को बेनकाब किया गया है |  इस कहानी में उद्योगपति, नेता और नये-नये चमत्कारों से लोगों को चमत्कृत करने वाले ढोंगी साधु के चमत्कारों का वर्णन किया गया है | सेठ कटारिया नया सीमेंट कारखाना खोलने के लिए लाइसेंस पाने के लिए बड़ी ही चालाकी से उद्योग मंत्री चन्द्रशेखर को संत महाराज के दर्शन के लिए आमंत्रित करते हैं | सेठ जी को पूर्ण विश्वास है कि चन्द्रशेखर की पत्नी एकदम श्रद्धालु स्त्री हैं | अपनी पत्नी की इस श्रद्धाभावना की वजह से चन्द्रशेखर जरूर आयेंगे | सेठ कटारिया मंत्री एवं उनकी पत्नी का खूब आदर-सत्कार कर नये कारखाने का लाइसेंस हासिल करते हैं | वहीं दूसरी ओर नौकरानी चंपा अपने बेटे जो कि पोलियोग्रस्त है, उसे लेकर साधु के पास जाती है | साधु चंपा को छह इलायचियाँ देता है और बेटे के जल्दी ठीक हो जाने का आश्वासन भी देता है | सेठ जी साधु के चमत्कार को सही साबित करने के लिए चम्बा के बेटे को एक बड़े डॉक्टर के नाम का पत्र लिख खर्चे के लिए दो हजार रुपये देकर चंपा और उसके बेटे रामू को मन्नू के साथ बम्बई भेजता है | इलाज के प्रभाव से रामू एक पैर से चलने लगता है जिसे सेठ जी साधु के आशिर्वाद का चमत्कार मानते हैं |

अवकाश

अवकाश कहानी में पति-पत्नी के बीच किसी तीसरे की उपस्थिति के कारण पैदा हुए तनाव और इस तनाव के बीच जी रही नायिका के मानसिक द्वन्द्व को चित्रित किया गया है | कहानी नायिका वैवाहिक एवं दो बच्चों की माँ होते हुए भी समीर नामक व्यक्ति के प्रति आकर्षित होती है |  यह आकर्षण दिनों-दिन बढ़ता ही चला जाता है | नायिका समीर से इस हद तक प्यार करने लगती है कि वह अपने पति महेश से तलाक लेना चाहती है | लेकिन वह अपने पति को भी भूल नहीं पाती | वह अपने पति से भी बेहद प्यार करती है | इसी कारण समीर से प्रेम होने पर दो वर्ष के लंबे समय तक अपने पति से इस बारे में बता नहीं पाती | दिनों-दिन उसका मानसिक द्वन्द्व बढ़ता ही चला जाता है, किन्तु एक दिन वह महेश से कह देती है कि वह समीर से प्यार करती है साथ ही वह यह भी स्वीकार करती है कि वह महेश से भी प्यार करती है | किन्तु अंत में वह पति महेश से तलाक लेकर समीर के पास जाने का निर्णय लेती है |

दो एक फूल

दो एक फूल कहानी के माध्यम से नारी पर होने वाले अत्याचार, शोषण के साथ नारी की विवशता को चित्रित किया गया है | अधिकतर भारतीय स्त्रियों अपने पति द्वारा स्वयं पर होने वाले अत्याचार को बिना कुछ कहे सह लेती है क्योंकि उनके दिलो-दिमाग में कहीं गहरे में यह बात समायी रहती है कि उसका पति ही सबकुछ है | कसूती काम में पारंगत शांतम्मा इस कहानी की प्रमुख नारी पात्र है | उसका पति फकीरया पर-स्त्री गमन करने वाला व्यक्ति है | यह एक फैक्ट्री में काम करता है तथा आये दिन शराब के नको मारता-पीटता है |  परायी स्त्री से सम्बन्ध रखने के कारण उसे सिफिलिस नामक बीमारी हो जाती है जिसका प्रभाव शांतम्मा पर भी पड़ता है | इसी बीमारी के कारण उसकी पत्नी शांतम्मा और फकीरया की पैदा होने सभी संतानें बीमारी से ग्रसित होते हुए कम आयु में ही मृत्यु को प्राप्त होती है | फकीरया इसका सारा कसूर शांतम्मा के सिर मढ देता है | शांतम्मा डॉ. मालती के घर झटका आदि का काम करती है | डॉ. मालती शांतम्मा तथा उसके के घर पति को इस बीमारी का इलाज कर उन्हें बेहतर जीवन प्रदान करने का प्रयास करती है | इस कहानी में स्त्री के प्रति की जाने वाली शारीरिक तथा मानसिक प्रताड़ना का चित्रण हुआ है |

गुलाब के बगीचे तक

गुलाब के बगीचे तक कहानी में कल्पना और वार्थ के बीच जी रहे नायक की मानसिक स्थिति का चित्रण किया गया है | इस कहानी का मध्यवर्गीय नायक सपना देखता रहता है कि उसका एक छोटा सा बगीचा हो और उत्तसे सटी छोटी सी छत वाली कॉटेज उसके भीतर से दो चेहरे एक आदमी का और एक औरत का कहानी का नायक जनरल मैनेजर की पोजीशन पर रहते हुए शादी करता है, किन्तु पत्नी के चेहरे पर अपनी कल्पना के अनुरूप सौंदर्य न पाकर अन्य चेहरे की तलाश करता है | सब तरह से परिश्रम करने पर भी नायक का सपना कभी पूरा नहीं हो पाता | इस कहानी के द्वारा मध्यवर्गीय जीवन की कठिनाईयों और अर्थ के अभाव की वजह से निन्तर प्रयत्नशील रहने पर भी असफलता प्राप्त करने वाले व्यक्ति की कहानी कही गई है |

उसका विद्रोह

उसका विद्रोह कहानी में शोषक वर्ग के प्रति शोषित वर्ग के विद्रोह को व्यक्त किया गया है | कहानी का नायक वह अपनी गरीबी के चलते एक धनिक सेठ के घर झाडू-बस्तन आदि का कार्य करता है | वह जिस साहब के यहाँ काम करता है, वह साहब हमेशा उसे गन्दी गालियाँ देता रहता है | किन्तु वह कुछ नहीं बोलता क्योंकि उसे इस काम के लिए मोटी तनख्वाह मिलती है | साथ ही मुफ्त का खाना और पक्का मकान भी मिला है | इन सब सुविधाओं की वजह से वह सब कुछ सहन करता है | मामा की चिट्ठी पढ़कर वह खुश हो शादी के सपने देखता रहता है | अपनी खुशी में वह गीत गाना चाहता है | इसलिए वह दोपहर की छुट्टी लेकर फिल्म देखने जाना चाहता है | घर का काम जल्दबाजी में करते समय मेम साहब की सहेली पर गल्ती से काफी गिर जाने पर उसे गधे, बन्दर, छछूंदर जैसी गालियाँ सुननी पड़ती है | इन गालियों की वजह से उसे लगता है कि कोई भी लड़की उस जैसे गधे, बन्दर या छछूंदर का हाथ थामने से रही | मानसिक तौर पर वह इतना तैश में आ जाता है कि नौकरी भी छोड़ने को तैयार हो जाता है | किन्तु अगले ही पल वह महसूस करता है कि नौकरी है तभी छोकरी भी आयेगी | वह चुप रह जाता है और अपना विद्रोह नहाते वक्त मोटी भोंडी आवाज में गाना गाकर करता है | इस कहानी में नौकर के प्रति मालिक के गलत रवैये एवं गरीब नौकरों की विवशता का चित्रण हुआ है |

मौत में मदद

मौत में मदद कहानी में समाज में रहने वाले दभी एवं दिखावे का जीवन जी रहे लोगों पर करारा व्यंग किया है |  साथ ही भावनाहीन पति एवं भावनाशील पत्नी का चित्रण इस कहानी में हुआ है | अनिल अग्रवाल एक धनिक व्यक्ति हैं | उसकी पत्नी मिसेज अग्रवाल अपने माली बुद्धन के बेटे के इलाज के लिए पति से पैसे मांग उसकी आर्थिक मदद करना चाहती है किन्तु अनिल इसे बुद्धन का पैसे निकलवाने के लिए किए जाने वाले बहाने का नाम देकर टाल देता है | अंततः बुद्धन के बेटे की मृत्यु हो जाती है | जब बुद्धन पार्टी के लिए जा रहे अपने मालिक से इस बात को बताकर पैसे मांगता है, तब व्यवहारिकता का दिखावा करते हुए अनिल लड़के के क्रियाकर्म करने के लिए पैसे देता है और कहता है-

“ऐसे वक्त में रुपये देने ही पड़ते हैं |  न होगा, पार्टी में एक डिस कम कर लेंगे | “

टुकड़ा टुकड़ा आदमी – मृदुला गर्ग

अन्त में मिसेज अग्रवाल पति के इस दंभपूर्ण वाक्य को सुनकर घुटन सा महसूस करती हैं | वह अपने जूड़े में से पति द्वारा लगाये गए फूल को निकालकर फेंक देती है | इस प्रकार से कहानी में धर्माभिमान करने वाले व्यक्ति की जड़ मानसिकता का चित्रण किया गया है |

रुकावट  

रुकावट कहानी के माध्यम से दाम्पत्येत्तर यौन सम्बन्ध का चित्रण किया गया है |  कहानी की नायिका रीता वैवाहिक होते हुए भी परपुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करती है | रीता जब मदन से अन्य स्त्रियों के साथ उसके सम्बन्ध के बारे में पूछती है तो मदन स्पष्ट रूप से रीता को अपनी दो-तीन पूर्व प्रेमिकाओं के बारे में बताता है | इससे रीता दुविधापूर्ण स्थिति में आ जाती है तथा उसके एवं मदन के बीच शारीरिक सम्बन्धों में रुकावट आती है | अचानक रीता को अपने पति की याद आती है, वह सोचती है-

“न सही प्रणय की उत्कट लालसा, न सही शृंगार का मुग्ध संगीत… वह उसकी हर इच्छा पूरी करने के लिए तैयार रहता है | “

टुकड़ा टुकड़ा आदमी – मृदुला गर्ग

रीता को अपने इस नाजायज सम्बन्ध से पश्चाताप होता है, वह मदन से न मिलने का निर्णय ले लेती है किन्तु शारीरिक आकर्षण की तीव्रता उसे अगले दिन मदन से मिलने को मजबूर करती है | इस कहानी में खुले यौनाचार के चित्रण के साथ-साथ परम्परागत भारतीय नारी की पतिव्रता भावना को कुचलती नारी का चित्रण किया गया है |

यह मैं हूँ

यह मैं हूँ कहानी में नायिका सरल कालरा के अभावग्रस्त जीवन का अंकन हुआ है |  सरल कालरा अपने जीवन में अनेक त्रासद स्थितियों से गुजरती है | उसे अपने जीवन में संघर्ष ही संघर्ष झेलने पड़ते हैं, किन्तु इन सब बातों को वह अपने मन में ही रखती है |  कभी अपने चेहरे पर शिकन तक नहीं आने देती | वह हमेशा सतर्क रहती है ताकि उसके चेहरे पर उसके जीवन की व्यथा को कोई जान न सके |  सरल कालरा को इस बात का अभिमान है कि उसके आस-पास के लोग अनायास ही उसकी ओर ललचायी आँखों से देखते हैं |  वह स्वयं को कम उम्र दिखाने के लिए नये-नये प्रसाधनों और पोशाकों का प्रबन्ध करती रहती है | प्रसिद्ध चित्रकार मणिपाल द्वारा बना अपना वास्तविक चित्र देख वह सोचती है-

“यह मैं हूँ या त्रासदी की प्रतिमूर्ति? यह चित्र क्या है टेढ़ी-मेढ़ी लकीरों से बना एक जाल और उसके भीतर से झाँकती दो आँखें |  काल के हाथों पिटी-हारी, एक दुखी बुढ़िया की तस्वीर | “

सरल कालरा को अपने अभावपूर्ण जीवन का वास्तविक ज्ञान हो जाता है | आत्मनिर्भर होने पर भी अपने शराबी पति के कारण बेसहारा सी अकेले जीवन गुजारती है |

बड़तला

बड़तला कहानी में नायिका जोहरा के प्रसव वेदना की पीडादायक स्थिति का चित्रण हुआ है |  जोहरा अपने पति जमाल के साथ हिन्दुस्तान की सरहद पर आती है | उसके साथ आये अन्य सभी लोग बड़ के नीचे एकत्र होते हैं | जोहरा बच्चा जनने की अवस्था में है, जमाल जोहरा की सुरक्षित प्रसुति कराने के लिए साथ आयी औरतों से बार-बार विनंती करता है किन्तु कोई उसकी मदद नहीं करता | जमाल जोहरा के पास ही बैठता है | जोहरा ने एक शिशु को जन्म दिया जिसका नाम जमाल ने बड़तला रखा |

उसकी कराह

उसकी कराह कहानी में पति-पत्नी के मध्य उपस्थित हुए स्वार्थ वृत्ति के कारण दाम्पत्य सम्बन्ध में आये तनाव को दर्शाया गया है |  पति-पत्नी के बीच जब स्वार्थ की भावना हो तब वह सम्बन्ध नाम मात्र का रह जाता है | सुमित का छोटा सा परिवार है जिसमें उसकी पत्नी और बेटा दीपक है | सुमित अपनी बारह वर्ष की नौकरी में जमा किए गए पैसों से साइकिल की फैक्ट्री लगाता है | नई खोली गई फैक्ट्री में लगाये पैसे कहीं डूब न जाये इस चिन्ता में वह अपनी बीमार पत्नी सुधा की तरफ अधिक ध्यान नहीं दे पाता | अपने पति और पुत्र की उपेक्षा से सुधा नाराज रहती है |  सुधा छह महीनों की मेहमान है | सुमित सुधा की देखभाल करने के लिये अपनी माँ को बुला लाता है |  सुमित की माँ सुधा के अचानक में दाखिल होने पर सुमित की बुआ को बुलाती हैं |  बुआजी अपनी अविवाहित ननद के साथ आती हैं |  सुमित की माँ अपने बेटे का घर दूसरी बार बसाने की पूरी तैयारी करती है | सुमित भी उस लड़की को देखकर तरोताजा महसूस करता है, और अपनी बीमार पत्नी की बीमारी से दुःखी होने के बदले अपने भावी सुख में लीन हो जाता है |  

लिलि ऑफ दि वैली

लिलि ऑफ दि वैली कहानी में स्त्री के अन्तर्मन की पीड़ा को उजागर किया गया है | कहानी की नायिका निशि प्रेम में अगाध विश्वास रखती है |  इसी आदर्श प्रेम की कल्पना से वशीभूत हो वह राकेश से विवाह करती है | राकेश एक शराबी पुरुष है | अपनी सहेली की शादी में अकेले आयी हुई निशि अपनी सहेलियों मणि, विभा और कथा नैरेटर को अपने जेवर न पहनने का झूठा बहाना कर बताती है कि उसके पति को उसका आभूषण रहित रूप ही अधिक भाता है | निशि अपने अभावपूर्ण जीवन पर पर्दा डालती हुई अपने पति का गुणगान करती है, किन्तु उसके हकीकत का पता उसकी सहेली को लग जाता है | इस कहानी में भी उसकी कराह कहानी की ही तरह अस्वस्थ दाम्पत्य जीवन को दर्शाया गया है |

मधुप पत्रकार

मधुप पत्रकार एक ढोंगी पत्रकार की कहानी है जो नक्धनिकों के प्रति घृणा का भाव रखता है किन्तु जब एक करोड़पति उसे अपने यहाँ आमंत्रित करता है, तब वह पत्रकार जो आम आदमी की तरह सरकारी गाड़ी में सफर करता था, वही अब सेठ की इम्पाला गाड़ी में बैठकर सेठ के यहाँ पहुँचता है और सेठ के कला-प्रेम एवं धन से प्रभावित हो जाता है | वह अपना ‘माया-दर- माया’ उपन्यास फिल्म निर्माण के लिए सेठ को बीस हजार रुपये में बेच देता है | किन्तु अगले दिन सुबह उठने पर जेब से दस हजार रुपये निकालता है, तब अपना स्वाभिमान बेच वह ग्लानि से भर उठता है | अन्ततः नवधनिकों के विरुद्ध एक क्रान्तिकारी लेख लिखने में जुट जाता है |

टुकड़ा टुकड़ा आदमी कहानी संग्रह के पात्र एवं संवाद

टुकड़ा टुकड़ा आदमी कहानी संग्रह में दो एक फूल की शांतम्मा, ‘अवकाश‘ की वह, ‘रुकावट‘ की रीता ‘लिलि आफ दि वैली की निशि आदि प्रमुख नारी पात्र हैं |  पुरुष पात्रों में टुकड़ा टुकड़ा आदमी का सुबोध, उसकी कराह का सुमित आदि प्रधान पुरुष पात्रों के अलावा गौण स्त्री पुरुष पात्र भी हैं |

अवकाश कहानी की नायिका ‘वह’ महेश की पत्नी एवं दो बच्चों की माँ होते हुए भी समीर से प्रेम करती है जिससे उसके वैवाहिक जीवन में तनाव उत्पन्न हो जाता है | अन्त में वह पति से तलाक लेने का निर्णय कर समीर के पास चली जाना चाहती है | ‘रुकावट कहानी की प्रमुख स्त्री पात्र रीता’ है कहानी में रीता के सेक्स की भूख को खुलेपन से चित्रित किया गया है | रीता पति के अलावा प्रेमी मदन से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करती है | मदन के चरित्रहीनता को जानकर भी रीता शारीरिक आकर्षण के चलते मदन को भूल नहीं पाती | यह मै हूँ कहानी को सरल कालरा को अपने सौंदर्य पर गर्व था किन्तु एक चित्रकार द्वारा मनायी गयी अपनी तस्वीर को देख अपने अभावपूर्ण वास्तविक स्थिति का ज्ञान हो जाता है |

लिलिऑफ दि वैली की निशि एक बेहद आकर्षक शरीर वाली लड़की है, किन्तु शराबी पति के कारण उसका जीवन अनेक पीड़ाओं से भर जाता है | यहाँ निति के माध्यम से नारी के अन्तर्मन की व्यथा एवं तनावपूर्ण दाम्पत्य सम्बन्ध पर प्रकाश डाला गया है |  टुकड़ा टुकड़ा आदमी कहानी का नायक सुबोध कुमार बेलापुर सीमेन्ट कंपनी का चेयरमैन है | वह बेलापुर सीमेन्ट कंपनी के मजदूरों की दयनीय स्थिति को देख उनके लिए मकान बनवाने का ऐलान करता है, किन्तु उन्हीं गरीब मजदूरों के लिजलिजे स्पर्श से घृणा भी करता है | अपनी रखैल को हीरे का हार देकर खुश करने के लिए यह मजदूरों के लिए पक्के मकान बनाने की योजना को रुकवा देता है | यहाँ सुबोध कुमार के दिखावटी व्यवहार का पता चलता है |  इस प्रकार टुकड़ा टुकड़ा आदमी कहानी संग्रह में संग्रहित कहानियों के पात्रों के माध्यम से उनकी समस्याओं उनकी दयनीय स्थिति पति-पत्नी के सम्बन्धों में तनाव आदि का चित्रण हुआ है | अवकाश कहानी की नायिका यह के संवाद के माध्यम से उसकी मानसिकता का चित्रण हुआ है | पति को प्रेमी के विषय में बता रही वह सोचती है कि महेश कहीं उसकी बातों से दुखी न हो जाय | तब वह कहती है-

“महेश, मैंने तुम्हे प्यार किया है, अब भी करती हूं |  इसीलिए दो वर्ष से अपने को रोकती रही हूं, अपने से लड़ती रही हूँ”

टुकड़ा टुकड़ा आदमी – मृदुला गर्ग

इसी प्रकार रुकावट कहानी में भी रीता के संवाद के माध्यम से उसकी मानसिक छटपटाहट का चित्रण हुआ है | लिलि ऑफ दि वैली कहानी की नायिका निशि के दाम्पत्यय सम्बन्ध में आये घुटन को संवादों के माध्यम से व्यक्त किया गया है | निशि कहती है-

“तुम्हें आने को मना किया था, फिर क्यों आए? “क्यो?” पुरुष स्वर कुछ अस्पष्ट, कंपित-सा था.

“इज्जत में कमी आ गई?”

टुकड़ा टुकड़ा आदमी – मृदुला गर्ग

यही ‘दो एक फूल’ कहानी में शांतम्मा के संवाद पति द्वारा सुनाये गये तानों से शांतम्मा की आंतरिक पीड़ा का चित्रण हुआ है | मालती द्वारा शांतम्मा से पहले दो बच्चों के न रहने का कारण पूछे जाने पर शांतम्मा कहती है-

“मेरा मरद बोलता है, तेरे करम खराब ह जो बच्चा नहीं रहता | तेरा पाप फलता है उसके बदन पर शांतम्मा उस दिन को याद करके जोर से रो दी | “”

टुकड़ा टुकड़ा आदमी – मृदुला गर्ग

टुकड़ा टुकड़ा आदमी कहानी संग्रह का परिवेश

टुकड़ा-टुकड़ा आदमी कहानी संग्रह की अधिकतर कहानियों का परिवेश आधुनिक है |  इन कहानियों में दो पीढ़ियों का संघर्ष, दाम्पत्य सम्बन्धों में तनाव आदि को दर्शाया गया है |  रुकावट एवं अवकाश कहानी का परिवेश आधुनिक है |  दोनों ही कहानियों की नायिकाएँ विवाहित होते हुए भी परपुरुष से सम्बन्ध स्थापित करती है |  यह भाव आधुनिक युग के परिवेश को परिलक्षित करता है |  लिलि ऑफ दि शैली कहानी में निशि के तनावपूर्ण जीवन का वर्णन है |  उसकी कराह कहानी में पति की अतिव्यस्तता से उसकी पत्नी उपेक्षित महसूस करती है |  पैसों के पीछे भागकर सुमित अपने वैवाहिक जीवन का नाश करता है |  इस संग्रह की अन्य कहानियाँ वर्तमान युग के अनेक सत्य को लेकर उपस्थित हुई है |  

टुकड़ा टुकड़ा आदमी कहानी संग्रह की भाषा

इस कहानी संग्रह में संग्रहित कहानियों में पात्रानुकूल, प्रसंगानुकूल संक्षिप्त एवं सरल भाषा का प्रयोग किया गया है |  टुकड़ा-टुकड़ा आदमी कहानी के देहाती पात्र बलिया और रामदीन की भाषा में यह देहातीपना देखा जा सकता है

“ये मूई बरखा को भी अभी आना था | “

“छि किसान हो बरखा को गाली दो हो, “”

टुकड़ा टुकड़ा आदमी – मृदुला गर्ग

मौत में मदद कहानी में बंगाली भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है |  बेटे की बीमारी से परेशान बुद्धन की बेचैनी उसकी भाषा में प्रकट होती है

छेले भीषोण असुरथ टाका दाओ मा” | टुकड़ा टुकड़ा आदमी कहानी संग्रह में अलंकारिक भाषा के सुन्दर उदाहरण द्रष्टव्य है – उसकी साड़ी इतनी महीन, जैसे हवा में उड़ता वर्षा ऋतु का पहला बादल |  यहाँ महीन साड़ी को वर्षा ऋतु के प्रथम बादल के साथ जोड़ा गया है |  आत्मकथात्मक, विश्लेषणात्मक और संवाद आदि भिन्न-भिन्न शैलियों का प्रयोग इस संग्रह की कहानियों में किया गया है |  इस प्रकार टुकड़ा टुकड़ा आदमी कहानी संग्रह में नारीमन की पीड़ा अस्वस्थ दाम्पत्य जीवन सेक्स भावना की अधिकता आदि विषयों को लेकर कहानियों की रचना की गयी है |


Dr. Anu Pandey

Assistant Professor (Hindi) Phd (Hindi), GSET, MEd., MPhil. 4 Books as Author, 1 as Editor, More than 30 Research papers published.

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