उसके हिस्से की धूप : मृदुला गर्ग | Uske Hisse Ki Dhoop : Mridula Garg

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उसके हिस्से की धूप उपन्यास की कथावस्तु में नारी जीवन की आत्म-सार्थकता की तलाश, प्रेम त्रिकोण, समाज में बड़े व्यापक स्तर पर फैले स्त्री-पुरुष के दाम्पत्य जीवन, उसमें होने वाले विच्छेद तथा दात्मपत्येत्तर सम्बन्धों को कथा का आधार बनाया गया है । इस उपन्यास के लेखन से पूर्व स्त्री केवल बहन, बहू, बेटी, माँ, भाभी आदि रूपों में ही स्वीकार की जाती थी । एक स्त्री का स्त्री के रूप में उसकी अपनी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं थी । समाज में नारी के व्यक्तित्व की परिभाषा पुरुष के माध्यम दी जाती रही है । पुरुष से अलग होकर उसका कोई अस्तित्व नहीं माना जाता था। नारी को अपने स्वतंत्र अस्तित्व के लिए स्वयं ही खड़ा होना था और यह तभी संभव था जब स्त्री खुद अपना निर्णय ले, विचार कर सके। इस उपन्यास में मनीषा के आत्मसार्थकता की तलाश को दर्शाया गया है, जिसकी प्राप्ति उसे लेखन के द्वारा होती है।

उपन्यास का नाम (Novel Name)उसके हिस्से की धूप (Uske Hisse Ki Dhoop)
लेखक (Author)मृदुला गर्ग (Mridula Garg)
भाषा (Language)हिन्दी (Hindi)
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication)1975

उसके हिस्से की धूप उपन्यास की कथा वस्तु

उपन्यास एक त्रिकोणात्मक प्रेम कथा है, किन्तु प्रेम इसकी समस्या नहीं है । समस्या है स्वतंत्रता की जो स्त्री-पुरुष दोनों के लिए समान है । मनीषा की नजर में प्रेम ही सब कुछ है । उसका मानना है कि प्रेम जिससे हो विवाह भी उसी से होना चाहिए । मनीषा का जितेन से अरेन्ज्ड मैरिज हुआ था । उसका मानना था कि अगर वह भी प्रेम विवाह करती तो शायद अधिक सुखी होती । वह अपनी सखी सुधा से कहती है –

“प्रेम साधारण-से-साधारण मनुष्य को भी महान बना देता है। एक-दूसरे को पाने की सच्ची ललक हमसे कठोर-से-कठोर साधना करा देती है, बड़े-से-बड़ा आत्म-त्याग।”

उसके हिस्से की धूप : मृदुला गर्ग

सफल दाम्पत्य वह होता है जिसमें प्रेम, सौहार्द और मधुरता हो । इस उपन्यास में भी दाम्पत्य सम्बन्धों का चित्रण किया हुआ है किन्तु इनमें ना तो प्रेम है ना ही किसी प्रकार की मधुरता । ये दाम्पत्य सम्बन्ध केवल नाम के हैं । मनीषा और जितेन का सम्बन्ध भी कुछ ऐसा ही है । मनीषा जितेन की पत्नी है, किन्तु मनीषा अपने इस वैवाहिक जीवन से असंतुष्ट है | जितेन अपने काम में व्यस्त रहता है, जितेन की इस व्यस्तता से मनीषा बिल्कुल अकेली हो गयी है, जिससे जितेन के प्रति मनीषा के मन में ईर्ष्या भाव उत्पन्न होता है-

“उसे जितेन से बेहद ईर्ष्या होने लगी क्यों वह उसके समान व्यस्त नहीं हो पाती? काम वह भी करती है, कॉलिज में पढ़ाती है, घर-बार देखती है, कभी-कभार कहानी भी लिख लेती है, फिर भी समय उसकी मुट्ठी में नहीं आ समाता, वैसे जैसे जितेन की मुट्ठी में समाया रहता है। जितेन समय को पके फल की तरह दोनों हाथों में थामता है और निचोड़-निचोड़ कर उसका इस्तेमाल करता है।“

उसके हिस्से की धूप : मृदुला गर्ग

वैवाहिक जीवन के इस असंतोष और अकेलेपन से त्रस्त मनीषा मधुकर नामक अर्थशास्त्री के प्रति आकर्षित हो उससे प्रेम विवाह कर लेती है । प्रारंभ में दोनों के मध्य सब कुछ ठीक चल रहा था किन्तु कुछ वर्ष बाद मनीषा मधुकर से भी ऊब जाती है और ऐसे में उसकी मुलाकात जितेन से होती है तब एक बार फिर वह जितेन के प्रति आकर्षित होती है, यहाँ तक कि वह अपने जीवन में एक नई ताजगी भरने के लिए जितेन से शारीरिक सम्बन्ध भी बनाती है।

मनीषा के आंतरिक वेदना, तनाव तथा मधुकर एवं जितेन के बीच किसी एक के स्वीकार-अस्वीकार का द्वन्द्व बराबर चलता रहता है । मनीषा जब जितेन की विवाहिता थी तब मधुकर से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करती हैं, लेकिन जितेन से तलाक लेकर मधुकर से विवाह करने पर भी जितेन से दोबारा शारीरिक सम्बन्ध बनाती है। किन्तु इन दोनों से जुड़कर भी मनीषा को वह संतोष नहीं मिलता जिसकी उसे तलाश थी । मनीषा निरंतर इस द्वन्द्व में रहती है कि उसे वास्तविक संतोष कौन दे सकता है क्योंकि वह पूर्ण रूप से न तो जितेन से संतुष्ट है और ना ही मधुकर से | दोनों पुरुषों की तुलना करती हुई वह सोचती है-

“जहाँ जितेन चोट खाने पर कछुये के समान अपने भीतर जा घुसता है, मधुकर गरदन निकालकर आक्रमण पर उद्धत हो जाता है।“

उसके हिस्से की धूप : मृदुला गर्ग

मधुकर और जितेन का उसके जीवन में आना-जाना मनीषा के लिए समुद्र में आए ज्वार भाटे के समान लगता है । अंत तक मनीषा दोनों पुरुषों में से किसी एक का पूर्ण रूप से चुनाव नहीं कर पाती । इन सब से त्रस्त मनीषा अपने आत्म-सार्थकता की तलाश करती है और उसकी यह तलाश लेखन के द्वारा पूरी होती है । वह अपने मन में छिपी वेदना, संवेदना आदि को लेखन के द्वारा अभिव्यक्त करना चाहती है तथा यह निर्णय लेती है-

“लिखूँगी कुछ, उसने अब सोचा, लिखूँगी यही सब, जो मेरे भीतर इतने दिन तक खदबदाता रहा है। लिखूँगी अपने में निहित इस व्यक्तित्व की कहानी, जो बिना लिखे अब और अपने भीतर मुझसे रखी नहीं जा सकेगी।“

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मधुकर जो मनीषा के लेखन को महत्व नहीं देता फिर भी वह लिखती है अपने आत्म संतोष के लिए वह कहती है-

“तुम मुझे लेखिका मानो-न-मानी मधुकर, कुछ फर्क नहीं पड़ता, उसने मन-ही-मन कहा मैं लिखूँगी, अवश्य लिखेंगी और वह जो मुझे परितोष दे सके। उससे और कोई नतीजा न भी निकले कम-से-कम मुझे तसल्ली तो होगी कि जो कुछ में कर सकती थी मैंने किया।“

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इस प्रकार मनीषा लेखन के द्वारा अपने आत्म सार्थकता की तलाश करती है तथा अपने संतोष के लिए लिखती है । लेखन के माध्यम से उसे अपनी स्वयं की पहचान प्राप्त होती है । संवेदनशील, बौद्धिक और स्वच्छन्द मनीषा इस उपन्यास में प्रमुख नारी पात्र है । मनीषा को किसी प्रकार का बंधन पसंद नहीं यह वैवाहिक जीवन के उस बंधन का विरोध करती है, जिसमें न चाहते हुए भी पति-पत्नी को सबकुछ एक साथ करने की घिसी-पिटी परम्परा जो कि वर्षों से चली आ रही है, उसे मानना पड़ता है। इस विषय में उसका मानना है-

“यह वैवाहिक जीवन भी अजीब चीज है. जो करो एक साथ साथ बैठो, साथ-बोलो, चाहे बोलने को कुछ हो, चाहे नहीं… साथ खाओ और साथ सोओ, चाहे एक के खर्राटे दूसरे को सारी रात जगाये क्यूँ ना रखे। अगर ये दोस्त होते तो एक अपना ठौर छोड़ सड़क पर घूमने निकल जाता, दूसरा सोने अपने ठौर चला जाता ।”

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मनीषा का जितेन के साथ अरेन्जड़ मैरिज हुआ था, किन्तु मनीषा चाहती है कि वह जितेन के साथ प्रेम विवाह करती तब शायद उसका जीवन कुछ अलग ही होता । प्रेम के विषय में वह अपनी सहेली सुधा से कहती है-

“प्रेम साधारा से साधारण मनुष्य को भी महान बना देता है। एक-दूसरे को पाने की सच्ची ललक हमसे कठोर-से-कठोर साधना करा देती है, बड़े-से-बड़ा आत्म-त्याग।”

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मनीषा सच्चे प्रेम के बारे में सुधा से कहती है- “सच्चा प्रेम चुकता नहीं” अर्थात मनीषा को सच्चे प्रेम में आस्था तो है, परन्तु वह उसमें किसी प्रकार का बन्धन नहीं चाहती। वह चाहती है कि उसे बन्धनमुक्त प्रेम प्राप्त हो। इसी सच्चे प्रेम की प्राप्ति के लिए वह जितेन से तलाक लेकर मधुकर से पुनर्विवाह करती है, किन्तु अभी भी उसे वह सन्तुष्टि नहीं मिलती जिसकी उसे तलाश है। इस प्रकार मनीषा एक सशक्त और स्वच्छन्द नारी पात्र है जो अपने निर्णयों के प्रति हर परिस्थिति में अडिग रहती है।

जितने उपन्यास का प्रमुख पुरुष पात्र है । वह एक शिक्षित तथा साधन सम्पन्न व्यक्ति है । जितेन मनीषा का पति है । वह कागज की एक फैक्टरी में मैनेजर होने की वजह से बहुत ही व्यस्त रहता है । उसके विचार मनीषा से एकदम भिन्न हैं । मनीषा जहाँ प्रेम को अचूक और जीवन का लक्ष्य मानती है, वहीं जितेन का प्रेम के सम्बन्ध में अलग ही दृष्टिकोण है । वह मनीषा से कहता है

“यह जानना महज आकर्षण है या जिसे तुम कहती हो, प्रेम । जब वह चुक जायेगा तब क्या करोगी?”

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जितेन मनीषा का पति होते हुए भी उस पर कभी किसी प्रकार का बंधन नहीं रखता था यहाँ तक कि जब मनीषा उससे तलाक लेने की बात करती है, तब भी वह अपने सुख की परवाह न करते हुए, मनीषा के सुख के बारे में सोचकर उसे तलाक दे देता है । इससे पता चलता है कि जितेन बहुत ही परिपक्व, समझदार और खुले विचारों का व्यक्ति है | मधुकर नागपाल मनीषा का दूसरा पति है । वह अर्थशास्त्र का लेक्चरर है। मनीषा उसी के कॉलेज में उसकी सहकर्मी है । मधुकर की मनीषा से प्रथम मुलाकात सुधा करवाती है । इस प्रथम मुलाकात में ही मनीषा मधुकर में एक गर्मजोशी की मौजूदगी को महसूस करती है । मधुकर मनीषा से प्रेम करने लगता है और मनीषा मधुकर से | अन्ततः मधुकर भी मनीषा को वह सुख नहीं दे पाता जो मनीषा चाहती है।

पात्र-संवाद

उसके हिस्से की धूप उपन्यास की कथा जितनी रोचक है, पात्र उतने ही प्रभावशाली तथा उन पात्रों के संवाद कथा में चार चाँद लगा देते हैं । इस उपन्यास के संवाद रोचक, संक्षिप्त तथा पात्रानुकूल है । मृदुला जी ने अपने विचारों को, पात्रों के संवादों के माध्यम से बड़ी ही कुशलता से व्यक्त किया है । नैनीताल में जब मनीषा प्रथम बार जितेन से मिलती है, उस समय दोनों के मध्य का संवाद दृष्टव्य है

“ओह तुम! मैं… मैंने सोचा… कब आये?”.

“आज। अभी।” “कब तक हो?”

परसों चला जाऊँगा।”

“ओह”

“मिलोगी? आज ?””

“आज? कब? कहाँ?”

“अभी कुछ काम है। चार बजे तक निबट जायेगा। तब आओ ।

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इस प्रकार दोनों के मध्य हुए संवाद संक्षिप्त होते हुए भी दोनों पात्रों के अनेक प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम हुए हैं । इसी प्रकार मनीषा जब जितेन से मिलकर टूरिस्ट होटल में आती है तब, मधुकर उससे देर होने का कारण पूछता है, किन्तु मनीषा उससे सच कहने से कतराती है । यहाँ तक कि वह मधुकर के पूछे गये प्रश्नों से ऊब कर बड़े ही कम शब्दों में उत्तर देती है

“बहुत देर कर दी।”

हाँ

“चार बज गये।”

हाँ

“कहाँ गयी थी “लाइबेरी।”

“इतनी देर तक?”

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इस प्रकार इस उपन्यास में पात्रों के सवादों के माध्यम से उनकी मनःस्थिति संत्रास, पीड़ा, अलगाव् आदि का पता चलता है।

उपन्यास का परिवेश

किसी भी उपन्यास का परिवेश प्रसंग का निर्देश करता है । परिवेश कथानक को वातावरण के परिपेक्ष में यथार्थता प्रदान करता है | उसके हिस्से की धूप उपन्यास का परिवेश आधुनिक है । मनीषा जितेन से तलाक के चार वर्ष बाद जब नैनीताल में मिलती है, उस समय मनीषा के आन्तरिक स्थिति का चित्रण दृष्टव्य है-

“ढलते दिवस पर छा रही धुंध उसने पहले भी देखी हैं । पर पहाड़ियों का सामीप्य, यह आज पहली बार देखा है और पहली बार ही देखी है उनकी हरियाली, उनकी ऊँचाई. उनका यह अलौकिक कम्पन आज तक तो वह उन्हें महज एक के ऊपर एक बने खेत और जगत कहकर टालती आयी है । आज ही उसने देखा है, धूप में वे चमकी है, हवा में वे काँपी हैं, और अँधेरे में वे मिल गयी हैं। हो सकता है, यह जितेन की चुप्पी के कारण हो या महज उसके सामीप्य के कारण।“

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उसके हिस्से की धूप उपन्यास की भाषा

इस उपन्यास में लेखिका ने सरल, सुबोध तथा सामान्य व्यवहार में प्रयुक्त भाषा का प्रयोग किया है। इसी के साथ अनेक भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग किया है । लेखिका के प्रतीक योजना ने भाषिक सौन्दर्य को बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है । मनीषा मधुकर के हिस्से की धूप या प्यार से प्रफुल्लित होती है। किन्तु पति जितेन की छाँव को वह कड़वा नहीं बनाना चाहती । धूप अर्थात् उसके हिस्से का प्यार है जो दीप्तिवान है, जो सोया है, किन्तु कुछ काल तक ही | मनीषा जब अपने पूर्व पति जितेन से चार वर्ष के उपरांत मिलती है उस समय उसकी आंतरिक संवेदना का चित्रण सांकेतिक भाषा में किया गया है-

“आश्चर्य के साथ उसने महसूस किया कि आज, चार वर्ष बाद मिलने पर, जितेन के हाथ के हल्के से स्पर्श से उसका शरीर पैरों के तलुओं तक झनझना उठा है, पलके बोझिल हो उठी हैं, आवाज गले में रूप गयी है।”

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इस उपन्यास में लेखिका ने अपनी संवेदना को अभिव्यक्त करने के लिए बिम्बों का भी प्रयोग किया है। उदाहरणार्थ उस विकल दृष्टि की दिपदिपाती लो से यह बासी कमरा यूँ जगमगा उठा जैसे वहाँ. सहसा एक साथ सैकड़ों न्योय ट्यूबलाइट जल उठी हो

उसके हिस्से की धूप उपन्यास में मृदुला जी ने अनेक उपमानों का प्रयोग किया है। मधुकर की आँखों के वर्णन में प्रयुक्त उपमान का उदाहरण दृष्टव्य है –

“उसे याद आया. उसकी ये काली पुतलियों हमेशा से उसकी विभिन्न मनस्थिति का चित्रण इतनी ही सूक्ष्मता से करती आयी है। यह हँसता है तो वे नीली झील में तैरती बतखो सी दिखायी पड़ती है। प्यार करता है तो तूफानी नदी पर खेलती सफल नाविकों की नावो-सी प्रतीत होती है क्रोध करता है तो ताजे टूटे कोयलों- सी चमक उठती है, जैसे अब लगता है, दियासलाई की ली का स्पर्श पाये बगैर ही भर जल उठने को तैयार हैं।”

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उपन्यास की शैली

वर्णनात्मक शैली के माध्यम से मनीषा का कॉलेज में चार बजे तक के क्रियाकलापों का वर्णन हुआ है-

“दो बजे तक वह क्लास में उल्टा सीधा पढ़ाकर फारिंग हो गयी। फिर दो घंटे लाइब्रेरी में सिर खपाती रही अधिक नहीं तो काम चलाने लायक नोट्स भी तैयार कर लिये चार बजे वह बाहर निकल आयी।“

उसके हिस्से की धूप : मृदुला गर्ग

कथा के अमूर्त भावों की सूक्ष्म अभिव्यक्ति विश्लेषणात्मक शैली में की जाती है। इस उपन्यास में मनीषा भाग में जितेन और मधुकर की कथा मनीषा द्वारा वर्णनात्मक शैली में हुई है । वही मनीषा अपने पूर्व पति जितेन के साथ बिताये गये समय को याद करती है जिसका वर्णन पलैस्बैक या पूर्वदीप्ति शैली में हुआ है । इस उपन्यास की प्रमुख पात्र मनीषा यह जानते हुए भी कि जितेन उससे प्रेम करता है, स्वयं के मधुकर के प्रति प्रेम को प्राथमिकता देते हुए उसके पास चली जाती है । हालांकि उसे वहाँ भी वह नहीं मिलता जिसकी उसे सदा से चाह थी । तत्पश्चात् यह प्रसन्नता उसे लेखन से प्राप्त होती है । इसके बावजूद मनीषा । कभी भी अपने निर्णयों पर अफसोस जाहिर नहीं करती । डॉ ज्योति सिंह के अनुसार कठगुलाब की स्मिता की तरह अपराध-बोध मनीषा में भी नहीं है । वह खुश है, क्योंकि जो कुछ वह कर सकती थी, उसने किया । असल में यही मनीषा की स्वतंत्रता व सार्थकता है।


Dr. Anu Pandey

Assistant Professor (Hindi) Phd (Hindi), GSET, MEd., MPhil. 4 Books as Author, 1 as Editor, More than 30 Research papers published.

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