सुशीला टाकभौरे का जन्म दिनांक 4 मार्च 1954 को मध्यप्रदेश के जिला होशंगाबाद में बनापुरा गाँव में हुआ था | सुशीला जी हिंदी दलित साहित्य की अग्रणी महिला साहित्यकारों में से एक है | उनके जीवन के अनुभव, एक दलित और स्त्री होने के नाते उनके जीवन का संघर्ष उनकी रचनाओं में भली-भांति परिलक्षित होती हैं | एक कहानीकार तथा एक कवियत्री के रूप में उन्होंने अपनी अलग छाप स्थापित की है |
सुशीला जी का प्रारम्भिक जीवन बहुत ही संघर्षमय रहा है | वे ‘वाल्मीकि’ समाज से आती हैं | वर्ण व्यवस्था में इस जाति को निम्न माना जाता है | इस सामाजिक विसंगति का दंश उन्होंने भी बचपन से ही झेला है | उन्हें अन्य बच्चों के साथ खाने-पीने की छूट नहीं थीं | यहाँ तक की कई बार स्कूल से वापस आते हुए रिक्शेवाले भी उन्हें बिठाने से मना कर देते | सो वे पैदल ही घर को चल पड़तीं | गरीबी, उनकी जाति को लेकर किये जाने वाले निरादर और उपेक्षा, एक स्त्री होने के नाते होने वाली कठिनाइयों, आदि घटनाओं का उनके जीवन पर गहरा असर रहा है | अतः बचपन से ही उनका व्यक्तित्व अंतर्मुखी रहा है | शायद यही कारण है कि अपने विचारों और अनुभूतियों को प्रकट करने हेतु उन्होंने लेखन का मार्ग चुना | उनकी वेदना, उनका क्रोध उनकी रचनाओं में भली-भांति परिलक्षित होती है |
नाम | सुशीला टाकभौरे |
जन्म | 4 मार्च 1954 |
जन्म स्थान | ग्राम : बानापुर, जिला : होसंगाबाद (मध्य प्रदेश) |
पिता का नाम | रामप्रसाद घांवरी |
माता का नाम | पन्ना घांवरी |
पति का नाम | सुन्दर लाल |
सुशीला टाकभौरे का पारिवारिक जीवन
अपने सात भाई बहनों में सुशीला जी पांचवीं संतान हैं | उनके पिता का नाम रामप्रसाद घांवरी है | उनका पैत्रिक गाँव नेमावर है | माता श्रीमती पन्ना घांवरी विवाहोपरांत कुछ समय तक वही रही | नेमावर गाँव चूँकि नर्मदा नदी के समीप बसा हुआ था, अतः प्रतिवर्ष बाढ़ आदि के कारन होने वाले आर्थिक नुक्सान आदि से तंग आकर उनके पिता अपने परिवार के साथ ससुराल बानापुर आकर बस गए | बानापुर में उनके पिता की नौकरी रेलवे में लग गयी | वर्ष 1974 में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् उनका विवाह नागपुर के निवासी तथा नागपुर के ही ‘प्रकाश हाई स्कूल’ में शिक्षक के रूप में कार्यरत श्री सुन्दर लाल जी से हो गया | उसके उपरांत की शिक्षा में उनके पति का भी उन्हें काफी सहयोग मिला |
शिक्षा के लिए संघर्ष
सुशीला जी को बचपन से ही शिक्षा से जुड़ाव था | उनके माता पिता ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे | पिता को अक्षरज्ञान-भाषाज्ञान मात्र था | माता जी भी अनपढ़ थीं | घर के कामो तथा छोटे भाई बहनों के देख-भाल की जिम्मेदारी के चलते उनकी दोनों बड़ी बहने भी ज्यादा नहीं पढ़ सकीं | उनकी दोनों बड़ी बहने क्रमशः दूसरी और चौथी कक्षा तह ही पढ़ पायीं थीं | अतः कहा जा सकता है कि उनके परिवार में शिक्षा का माहौल नहीं था और उसे बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती थी | किन्तु सुशीला जी की माता का उनकी शिक्षा में काफी सहयोग रहा | उन्हीं के अनुरोध पर पिता तथा भाइयों ने सुशीला जी का एडमिशन कॉलेज में करवाया था |
शिक्षा के प्रति सुशीला जी की दृढ़ता का एक वाकया है | दरअसल वे जिस समाज से आती हैं, उसमें उस काल में कम उम्र में ही लड़कियों का विवाह कर दिया जाता जिसके लिए परिवार और समाज दोनों का काफी दबाव हुआ करता था | अतः सामाजिक रीतिरिवाजो के मद्देनजर तथा गरीबी के कारण परिवार द्वारा उनकी शिक्षा को रोक कर विवाह का निर्णय लिया गया | इस समय तक सुशीला जी की मात्र 11 वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूर्ण हो सकी थी | सुशीला जी ने इस बात से नाराज होकर भूख-हड़ताल कर दिया | तीन दिनों तक उन्होंने आनाज का एक दाना तक नहीं खाया | मात्र पानी पीकर तीन दिन निकल दिए | बाद में तबीयत बिगड़ने पर उनकी मन ने जैसे तैसे उनकी पढ़ाई के लिए पैसे जुटाए और उनका एडमिशन करवाया गया | उसके उपरांत उन्होंने अपना भूख-हड़ताल तोड़ा |
उनकी प्राथमिक शिक्षा बानापुर के ही ‘गंज प्राथमिक शाला’ में हुयी | ‘कुसुम महाविद्यालय’, सिवनी, मालवा से उन्होंने वर्ष 1974 में बी.ए. की डिग्री हासिल की | 1976 में उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से बी.एड. की डिग्री हासिल की | ‘प्रकाश हाई स्कूल’ में ही साक्षात्कार के जरिये उनका चयन अध्यापिका के रूप में हो गया जहाँ उन्होंने 1986 तक आध्यापन का कार्य किया | उसके उपरांत 1986 में उन्होंने एम.ए. और फिर वर्ष 1992 में पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की | वर्ष 2012 तक उन्होंने कॉलेज में अध्यापन का कार्य किया |
सुशीला टाकभौरे की रचनाएँ
सुशीला टाकभौरे का रचना संसार बहुत ही वृहद् है | उन्होंने उपन्यास, कहानी और कविताओं आदि हिंदी साहित्य की विधाओं में अपनी लेखनी चलायी है | सुशीला जी ने अपनी पहली कहानी ‘व्रत और व्रती’ तब लिखी थी जब वे महज आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं | यह कहानी उनके छोटे भाई मोहन द्वारा कृष्ण जन्माष्टमी के वर्त रखे जाने की भूमिका पर आधारित है जिसका मूल आपसी प्रेम और त्याग की भावना है | उनकी यह कहानी ‘अनुभूति के घेरे’ कहानी संग्रह में सन 1997 में प्रकाशित हुयी | इसी साल उनका दूसरा कहानी संग्रह ‘टूटता वहम’ प्रकाशित हुआ जिसकी कहानियां स्त्रीवाद और जातिवाद पर केन्द्रित हैं |
सुशीला जी का रचना संसार उद्द्येश्यपरक है | उनकी रचनाओं के केंद्र में नारी अथवा दलित अवश्य रहते हैं | उनकी रचनाएँ समाज में समानता एवं उच्च आदर्शों की वकालत करती हैं | उनके उपन्यास ‘नीला आकाश’, ‘वह लड़की‘ और ‘तुम्हें बदलन ही होगा’ अम्बेडकरवादी विचार धारा से ओत-प्रोत हैं जिसमें दलित उद्धार, सामाजिक समरसता तथा जातिगत व्यवस्था के उन्मूलन की वकालत की गयी है | सुशीला जी की आत्मकथा ‘शिकंजे का दर्द’ वर्ष 2011 में प्रकाशित हुयी | इसके माध्यम से उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष और कटु अनुभवों को साझा किया है | उनकी कई रचनाओं को विभिन्न विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है |
विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल रचनाएँ
1.शिकंजे का दर्द | 1. नार्थ महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी 2. मुंबई यूनिवर्सिटी |
2.नंगा सत्य | 1. जवाहरलाल यूनिवर्सिटी |
3.संघर्ष | 1. गोवा यूनिवर्सिटी में एम.ए. के सिलेबस में सम्मिलित 2. नागपुर यूनिवर्सिटी में बी.ए. के सिलेबस में सम्मिलित |
4.टूटता वहम | 1. शोलापुर यूनिवर्सिटी के सिलेबस में सम्मिलित |
5.अनुभूति के घेरे | 1. गुत्रत यूनिवर्सिटी (Gutrat university) में एम.ए. के सिलेबस में सम्मिलित |
6.नीला आकाश | 1. महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (डिस्टेंस लर्निंग) के एम.ए. के सिलेबस में सम्मिलित |
7.रंग और व्यंग्य | 1. ‘समर्पित जीवन’ – महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी के सिलेबस में सम्मिलित 2. हैदराबाद यूनिवर्सिटी के सिलेबस में सम्मिलित |
8.सिलिया | 1. हैदराबाद यूनिवर्सिटी के सिलेबस में सम्मिलित 2. इंदिरा गाँधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी के सिलेबस में सम्मिलित 3. कर्णाटक बोर्ड के सिलेबस में सम्मिलित 4. महाराष्ट्र बोर्ड ‘लोकभारती’ सिलेबस में सम्मिलित 5. अहमदनगर और औरंगाबाद यूनिवर्सिटी के बी.ए. तथा एम.ए. के सिलेबस में सम्मिलित |
सुशीला टाकभौरे के उपन्यास
उपन्यास के नाम | प्रकाशन वर्ष |
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नीला आकाश | 2013 |
तुम्हे बदलना ही होगा | 2015 |
वह लड़की | 2018 |
कहानी संग्रह
कहानी संग्रह के नाम | प्रकाशन वर्ष |
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अनुभूति के घेरे | 1997 |
टूटता वहम | 1997 |
संघर्ष | 2006 |
जरा समझो | 2014 |
सुशीला टाकभौरे के काव्य संग्रह
काव्य संग्रह के नाम | प्रकाशन वर्ष | विशेष |
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स्वाती बूंद और खारे मोती | 1993 | यह शुशीला जी का पहला काव्य संग्रह है | यह दलित स्त्री लेखन में पहला काव्य है | इस संग्रह में कुल 61 कविताएं संगृहीत हैं | स्त्री प्रतिरोध इसका मूल विषय |
यह तुम भी जानों | 1994 | दलित और नारीवादी काव्यों का संकलन |
हमारे हिस्से का सूरज | 2005 | दलितों के अतीत और वर्तमान पर आधारित |
नाटक
नाटक संग्रह | प्रकाशन वर्ष |
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रंग और व्यंग्य | 2006 |
नंगा सत्य | 2007 |
सुशीला टाकभौरे की आत्मकथा
शिकंजे का दर्द | 2011 |
निबंध तथा लेख संग्रह
हिंदी साहित्य के इतिहास में नारी | 1994 |
हाशिए का विमर्श | 1996 |
भारतीय नारी : समाज और साहित्य के ऐतिहासिक सन्दर्भ में | 1996 |
दलित साहित्य – एक आलोचनात्मक दृष्टि | 2015 |
अन्य पुस्तकें
संवादों के सफ़र | 2017 | यह पुस्तक वर्ष १९९३ से २०१७ के बीच भिन्न कथाकारों, समाज सेवी आदि द्वारा लिखित पत्रों का संकलन है जो दलित तथा नारी मुक्ति आंदोलनों से सम्बद्ध हों | |
कैदी नं 307 : सुधीर शर्मा के पत्र | 2017 | यह पुस्तक गोवा जेल के कैदी सुधीर शर्मा तथा सुशीला टाकभौरे के मध्य पत्राचारों का संकलन है | |
मेरे साक्षात्कार | 2015 | सुशीला जी के साक्षात्कारों का संकलन | |
सुशीला टाकभौरे की उपलब्धियाँ
म.प्र. दलित साहित्य अकादमी विशिष्ट सेवा सम्मान | मध्य प्रदेश सरकार द्वारा (मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह के हाथों) |
सावित्री बाई फुले सम्मान | रमणिका फ़ाउण्डेशन द्वारा |
डॉ. उषा मेहता हिन्दी सेवा सम्मान | महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा |