मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी : बदलाव के पदचिह्न | Main Hijada Main Laxmi by : Laxminarayan Tripathi

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हमारा पूरा समाज स्त्री और पुरुष इन्ही  दो वर्गों में विभाजित है | इन्ही से ही सम्पूर्ण समाज का अस्तित्व माना जाता है | किन्तु इन्ही स्त्री और पुरुष के बीच खड़ा एक ऐसा वर्ग है जो न तो पूर्ण स्त्री है और न ही पूर्ण पुरुष है | अतः पूर्ण न होने के नाते समाज का यह वर्ग अन्य लोगों के बीच स्वयं की उपस्थिति तथा स्वयं के अस्तित्व के लिए लगातार संघर्ष करता हुआ इस स्त्री पुरुष के समाज के नजरिये में परिवर्तन लाने की जद्दोजहद करता हुआ दिखाई देता है | यह वर्ग है उभयलिंगी समुदाय का जिसे हमारे समाज में हिजड़ा कहा जाता है | यह वर्ग लगातार अपने और अपने समुदाय के जीवन को बेहतर बनाने और अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए कभी स्वयं से ,कभी समाज से तो कभी कानून से दो-दो हाथ करता है, जिसमें उसे कभी सफलता तो कभी असफलता, कभी निराशा तो कभी सफल होने की आशा में वह लड़ता है | और इसी के द्वारा अपने समुदाय में अनेकानेक परिवर्तन करता हुआ अपने प्रति समाज के नजरिये में बदलाव करने की कोशिश करता है | इन्ही सब बिन्दुओं की अभिव्यक्ति मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी आत्मकथा  के माध्यम से हुई है | मनुष्य की योनि में जन्म लेने के बावजूद , कोई इतना उपेक्षित एवं प्रताड़ित जीवन जीने के लिए कैसे बाध्य हो सकता है , यह कथा इसकी भी अभिव्यक्ति करता है |

हिंदी साहित्य समय-समय पर समाज से जुड़े ऐसे कई बिन्दुओं पर जिरह को हवा देता रहा है मसलन स्त्री विमर्श, दलित विमर्श इत्यादि | आज किन्नर विमर्श को भी हिंदी साहित्य अपने गर्भ में बखूबी आश्रय प्रदान कर रहा है | इस विषय पर कई चर्चित लेखकों द्वारा रचनाएँ की जा रहिया हैं जैसे चित्रा मुदगल कृत पोस्ट बॉक्स नं. 203 नाला सोपारा, भगवंत अनमोल कृत जिंदगी 50-50 आदि | औपन्यासिक रचनाओं के अतिरिक्त इस समुदय से जुड़े लोग किन्नर आत्मकथाओ के माध्यम से अपनी आवाज को उठाने का कार्य कर रहे हैं | लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी की रचना मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी के अतिरिक्त मनोबी बंद्योपाध्याय की आत्मकथा पुरुष तन में फँसा मेरा नारी मन भी एक साहसिक रचनाकर्म है |

उपन्यास का नाम (Novel Name)मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी (Main Hijada Main Laxmi)
लेखक (Author)लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी (Laxminarayan Tripathi)
भाषा (Language)हिन्दी (Hindi)
प्रकार (Type)किन्नर विमर्श (Kinnar Vimarsh)
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication)2015

मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी उपन्यास का पात्र इस उपेक्षित समुदाय के संघर्षों का चित्रण मात्र ही नहीं करता है , अपितु इन संघर्षों से परे, एक विजयी सेनानी की भांति कई ऐसे आदर्श प्रस्तुत करता है, जो इनके अपने समुदाय के लिए एक आदर्श पदचिह्न बनता है । यह एक किन्नर के परंपरागत जीवन शैली को नकारते हुए समाज की मुख्य धारा के लोगों की किन्नरों के प्रति हिकारत की भावना का प्रतिकार करता हुआ , संघर्षमय जीवन के साथ , अवनति से उन्नति की ओर अग्रसर होने की एक किन्नर गाथा है । लोगों का तिरस्कार सहते हुए भी अपने असीम धैर्य के साथ वह शिक्षा ग्रहण कर समाज में मात्र अपनी एक अलग पहचान ही नहीं बनाता है, वरन अपने समाज के लिए भी अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए अपनी संस्था के माध्यम से उनके उत्थान के लिए अनेकों अभियान चलाता है ।

इस उपन्यास का पात्र लक्ष्मी अपने परिवार में एक पुत्र के रूप में जन्म लेता  है । शनैः शनैः जब वह बड़ा होता है तब उसमें स्त्री सहज भावना का विकास होता है और वह स्त्रियों के समान व्यवहार करने लगता है । धीरे धीरे उसे यह ज्ञात होने लगता है कि वह न तो पूर्ण पुरुष है और न ही पूर्ण स्त्री । ऐसे में वह किन्नर समाज को स्वीकार कर लेता है । किन्नरों में यह मान्यता है कि एक बार जो भी इस समाज का हिस्सा बन जाता है, वह अपने परिवार से सारे रिश्ते तोड़ देता है या उनका परित्याग कर देता है । उनके समाज के गुरु अथवा रसुखदार गद्दियों के स्वामी हिजड़े इस मेल-जोल की अनुमति नहीं देते हैं | इसी भांति लक्ष्मी की गुरु भी उसे हिदायत देते हुए कहती है –

घर मत रहो, यहाँ हम हिजड़ों के साथ रहो | हमें जो बातें  नहीं करनी चाहिए, वो बातें वहाँ घर में तुम्हें करनी पड़ती हैं |  ……..हम ना स्त्री हैं, ना पुरुष …..स्त्री पुरुषों के समाज के नहीं हैं हम | क्यों रहना है फिर उनके साथ ?

मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मीलक्ष्मीनारायण त्रिपाठी

लक्ष्मी इसका एक अपवाद है । वह इस मान्यता का प्रतिकार करते हुए अपने परिवार का परित्याग नहीं करती है । अपने परिवार में आती जाती रहती है तथा पहले के समान सहज सम्बन्ध बनाये रखती है । लक्ष्मी का परिवार भी उसे उसी सहज भाव से स्वीकार करता है । जहाँ हमारे समाज में एक उभयलिंगी के पैदा होते ही उसका परित्याग कर दिया जाय है, वहीं लक्ष्मी और उसके परिवार की एक दूसरे के प्रति स्वीकार्यता एक नया उदाहरण प्रस्तुत करती  है । उसके पिता कहते हैं – 

“अपने ही बेटे को मैं घर से बाहर क्यूँ निकालूं ? मैं बाप हूँ उसका , मुझ पर जिम्मेदारी है उसकी | और ऐसा किसी के भी घर में हो सकता है | ऐसे लड़कों को घर से बाहर निकालकर क्या मिलेगा ? उनके सामने तो हम फिर भीख मांगने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं छोड़ते हैं | “

मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मीलक्ष्मीनारायण त्रिपाठी

शिक्षा किसी भी व्यक्ति या जिस समाज में वह रहता है , उस समाज की उन्नति के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण तत्त्व है । उभयलिंगियों के प्रति समाज की अस्पृश्यता और तिरस्कार की भावना उनके विकास में अवरोध का कारण बनती है । न ही कोई स्कूल उन्हें दाखिला देना चाहता है, न ही लोग उन्हें अपने बच्चों के साथ पढ़ने देना चाहते हैं । और यही कारण है कि अकुशल और अशिक्षित किन्नर भिक्षावृत्ति को अपना  पेशा बना लेते हैं । लक्ष्मी भी अपने समाज के पिछड़ेपन का मूल कारण शिक्षा का अभाव ही मानती हैं । लक्ष्मी स्वयं पढ़ी लिखी हैं तथा उसी के अनुरूप वह अपने किन्नर भाइयों के लिए शिक्षा को महत्वपूर्ण मानती हैं । वह कहती हैं –

“मुझे प्रोग्रेसिव् हिजड़ा होना है …और सिर्फ मैं ही नहीं अपनी पूरी कम्युनिटी को मुझे प्रोग्रेसिव बनाना है ……।”

मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मीलक्ष्मीनारायण त्रिपाठी

कोई भी उभयलिंगी जब अपने परिवार को छोड़कर किन्नर समाज का हिस्सा बनता है तब उसे अपने गुरु द्वारा बनाये गए कई कायदे कानून का कट्टरता से पालन करना पड़ता है, जैसे बधाई मांगना , नाचना गाना आदि । किन्तु लक्ष्मी अपने समाज के इन सभी नियमों का विरोध करती है । वह इस प्रकार से भिक्षावृत्ति में लिप्त होने की बजाय एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करती है । वह सदैव इस प्रयास में रहती  है कि उसके समाज में जो भी अनैतिक मान्यताएं हैं , उसका त्याग किया जाये । इस प्रकार लक्ष्मी अपने समाज और समूह के अनेकों नियमों को चुनौती देकर उनमें परिवर्तन का निरंतर प्रयास करती है ।

लक्ष्मी अपने समाज के हित के लिए कई कदम उठाती है और इसी कारण लक्ष्मी और उसके गुरु के बीच मनमुटाव तक  पैदा हो जाता है । लेकिन लक्ष्मी अपने गुरु के उन सभी आदेशों को ठुकराती है जो उसके या उसके समाज की प्रगति के आड़े आती हो | ऐसे ही एक बार जब लक्ष्मी को एड्स की स्थिति के विषय में चर्चा हेतु एक मीटिंग में आमंत्रित किया जाता है तब उसकी गुरु ऐसे किसी भी समारोह में शामिल होने का विरोध करती हुई कहती  हैं कि क्यों जाना चाहिए वहां, क्या जरूररत है इतना सामने आने की |

किन्तु लक्ष्मी का मानना था कि वे लोग जितना समाज से हिले मिलेंगे उतना ही समाज भी उन्हें जानने पहचानने लगेगा | लक्ष्मी अपने गुरु लता के मना  करने पर भी अपने समाज के हित के लिए उस मीटिंग में शामिल होती है | इस तरह वह किन्नरों को समाज से अलग रहने के नियम का विरोध करती है | हमारे समाज में किन्नरों को देखने का नजरिया बेहद अमानवीय रहा है | ऐसा लगता है मानो किन्नर होना बहुत बड़ा अभिशाप हो | वे इन्सान न होकर कोई जानवर हों | इसके लिए लक्ष्मी अपने समाज को भी कुछ हद तक जिम्मेदार मानते हुए कहती है –

इन हिजड़ों से मैं बार-बार कहती हूँ , समाज का हमें देखने का जो नजरिया है, उसके लिए हम भी जिम्मेदार हैं | समाज में घुल-मिल जाओ, उनसे बात करो | फिर देखो, ये नजरिया बदलता है या नहीं |

मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मीलक्ष्मीनारायण त्रिपाठी

लक्ष्मी एक सुशिक्षित और आत्मनिर्भर इन्सान है | अपने और अपने समुदाय के हित के लिए उसे लीक से हटकर चलने में जरा भी संकोच नहीं होता | वह किसी की भी परवाह नहीं करती | जब उसने हिजड़ा बनने की बात अपने दोस्तों से बताई तो बहुत से मित्रों ने उससे बात करना ही छोड़ दिया | इस विषय में उसका मानना है की –

लीक छोड़कर चलने पर इससे अलग और क्या हो सकता था ? मेरे दोस्त भी मुझे समझ नहीं सकते , यह देखकर मुझे बहुत बुरा लगा , पर मैं निराश नहीं हुई । चुनी हुई राह से पलट जाऊँ, ऐसा तो मुझे बिलकुल भी नहीं लगा ।

मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मीलक्ष्मीनारायण त्रिपाठी

लक्ष्मी अपने कम्युनिटी के हित के लिए बिना डरे और बिना किसी के साथ के ही लड़ना आरम्भ करती है | जहाँ कही भी उसे हिजड़ों के हित के लिए खड़ा होना पड़ा, वहाँ वह अडिग रही |

हिजड़ा समुदाय में अक्सर बहुत से हिजड़े भीख मांगकर खाने, बधाई लेने के साथ ही काम के आभाव में  देह व्यापार में लिप्त हो जाते हैं जिसके कारण वे बहुत सी बीमारीओं से घिर जाते हैं | एड्स जैसी गंभीर बीमारी भी उन्हें हो जाती है | ऐसे में एक हिजड़ा होने के नाते उनके स्वास्थ्य की परवाह कोई नहीं करता | ऐसे में लक्ष्मी और उसके कई साथी मिलकर ‘दाई वेलफेयर सोसाइटी’ के छत्र तले काम शुरू करते हैं जो हिजड़ों द्वारा हिजड़ों के लिए शुरू की गयी संस्था है | किन्तु संस्था के  कुछ कामों का विरोध स्वयं हिजड़ा समुदाय के मुखिया करने लगते हैं | फिर भी लक्ष्मी इस संस्था एवं उसके प्रयासों को जारी रखती है | वह कहती है –

“बस्ती के हिजड़ों को अच्छा लगता था | उनके स्वास्थ्य के बारे में , उनकी जिंदगी के बारे में कोई फिक्र कर रहा है , यही उनके लिए काफी बड़ी बात थी | पर हिजड़ा कम्युनिटी के मुखिया , नायकों का इसको लेकर विरोध था | ….पर खुद काम करने वाले हिजड़े अब हमें बहुत अच्छा रिस्पांस देने लगे थे |”

मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मीलक्ष्मीनारायण त्रिपाठी

लक्ष्मी ‘दाई वेलफेयर सोसाइटी’ की पहली अध्यक्षा बनी | उसकी संस्था इस समुदाय के लिए बहुत से काम करती थी | उनकी समस्यों और उनकी पीड़ाओं को समाज के सामने रखती थी | लक्ष्मी कहती हैं –

“इस सामाजिक काम के क्षेत्र में सभी हमसे आदर के साथ पेश आते थे । यहाँ दिल्लगी नहीं थी, छेड़खानी नहीं थी , कोई हमें नजरअंदाज नहीं करता था , हम इंसान थे और इंसानों को इंसानों के साथ ऐसे ही पेश आना चाहिए ।“

मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मीलक्ष्मीनारायण त्रिपाठी

लक्ष्मी का मानना है जो सम्मान उसे मिल रहा था, वही सम्मान उसके जैसे अन्य लोगों को भी मिलना चाहिए | इसी कारण वे अपनी संस्था के कार्यों को अनेक विरोध के बावजूद जारी रखती है | उसके अपने समुदाय के लोगों द्वारा ही संस्था के कुछ कार्यों का विरोध किया जाता था | तर्क यह था की एक हिजड़े को यह कार्य नहीं करना चाहिए | परन्तु लक्ष्मी निजी तौर पर मानती हैं की किसी काम का किया जाना इस बात पर आश्रित नहीं होना चाहिए की उसे एक स्त्री कर रही है, एक पुरूष कर रहा है या एक हिजड़ा | वह कहती हैं –

”आप स्त्री हो ,पुरुष हो, या हिजड़े हो इससे कोई काम तय होगा, तो ऐसी सोच से कैसे चलेगा ? ”

मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मीलक्ष्मीनारायण त्रिपाठी

हिजड़ों द्वारा स्वयं के स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के निदान एवं उसके प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से की गयी इस संस्था की स्थापना, उनके समुदाय में नए परिवर्तन की स्वीकार्यता का आरम्भ था | इसी क्रम में लक्ष्मी अपने बूते ‘अस्तित्व’ नामक एक अन्य संस्था की शुरुआत करती है जिसमे हिजड़ों की समस्याओं को सुनने और सुलझाने के लिए बहुत ही बड़े स्तर पर काम किया जाता है | इसी के साथ लक्ष्मी बताती है कि किस प्रकार समाज का कुछ तबका उनके प्रति संवेदनहीन और अमानवीय व्यवहार करता है | उन्हें बस छेड़े जाने और शोषित किये जाने वाला जीव समझता है | वह उस प्रसंग का जिक्र करती हैं जब वह डांस सिखाने के लिए जाती हैं तब कई लड़के उनके कमरे में घुस आते हैं और उनके साथ जबरजस्ती करने का प्रयास करते हैं | लेकिन वह किसी प्रकार वहाँ से भाग निकलती है | यह वाकया उसके जीवन को एक नयी दिशा प्रदान करता है | प्रायः ऐसे हादसे लोगों को निराशा की गर्त में  धकेल देते  हैं और इंसान इसे अपनी नियति मान निरंतर शोषित होता रहता है | परन्तु यह वाकया लक्ष्मी को इस पुरुष प्रधान समाज से लड़ने की ताकत देता है और वह इसके प्रतिकार का निश्चय करती है | वह सोचती है –

“ मुझे प्रतिकार करना सीखना होगा | मैंने मन-ही-मन- लड़ने की तैयारी की |”

मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मीलक्ष्मीनारायण त्रिपाठी

लक्ष्मी स्वयं की ही भांति अपने अन्य लोगों को भी समाज द्वारा किये जाने वाले दुर्व्यहार का प्रतिकार करने के लिए प्रेरित करती है |

लक्ष्मी केवल अपने ही विकास, अपनी ही उन्नति की चिंता नहीं करती अपितु अपने संपूर्ण समाज के लिए संघर्ष करती है, मात्र स्वयं ही दुनिया की नज़रों में ऊँचा उठने की आशा नहीं रखती बल्कि अपने जैसे सभी लोगों को वही मान-सम्मान और ऊंचाई दिलाने की चाह रखती है | जहाँ कहीं भी मौका मिलता है, अपने साथ अपने साथियों को भी ले जाती है ताकि उनकी कला को सबके सामने लाया जा सके | उसकी मेहनत का ही परिणाम है की वह हिजड़ों को अपनी कला के द्वारा विदेश तक की यात्रा करवाती है | लक्ष्मी अपने जैसों को स्वयं ही अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित करती है | देह व्यापार से जुड़े हिजड़ों की स्थिति सुधारने के लिए वह राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग  सेमिनारों में, वोर्क्शोप्स आदि में हिस्सा लेती है | जब जहाँ भी जिस भी देश में उसे अपने जैसे लोगों के विषय पर मीटिंग के लिए बुलाया गया तब-तब वह गयी, बेहिचक अपनी बात सबके सामने रखी | इसके लिए वह कभी यूरोप गयी तो कभी टोरंटो | उसे यूरोप में एच .आई.वी. एड्स पर होने वाली मीटिंग के लिए यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली स्पेशल सेशंस में भी बुलाया गया और वह गयी |

हिजड़ों के संघर्ष से ही अब उन्हें समाज में वे हक मिलने लगे हैं जिनके वे हक़दार हैं | जिसके लिए उन्होंने बहुत कुछ सहा है | कड़ा संघर्ष किया है | अब इन्हें भी मतदान पत्र मिलने लगा है | कुछ राज्यों में उनके लिए समान नौकरियों का प्रावधान किया गया है | तमिलनाडु में इन्हें राशन कार्ड भी आबंटित किया जाने लगा है | इन्हें मात्र अलग-अलग संस्थाओं द्वारा ही नहीं बल्कि उनके द्वारा किये गए हिजड़ा समाज के कल्याण के कार्य के लिए सरकार से भी प्रोत्साहन प्राप्त हो रहा है | इस प्रकार इनके प्रयासों से  ही आज समाज का इनके प्रति नजरिया बदल रहा है | समाज से मिलने वाला सम्मान, कानून द्वारा मिलने वाले अधिकार, स्वयं इनके द्वारा भी इनके समुदाय की गलत मान्यताओं, नियमों में जो बदलाव हो रहा है , उससे इनकी स्थिति में बहुत सुधार हो रहा है |


Dr. Anu Pandey

Assistant Professor (Hindi) Phd (Hindi), GSET, MEd., MPhil. 4 Books as Author, 1 as Editor, More than 30 Research papers published.

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