‘जिंदगी 50-50’ उपन्यास : अधूरी देह की पूरी कहानी | ‘Jindagi 50-50’ Upnayas By : Bhagvant Anmol

You are currently viewing ‘जिंदगी 50-50’ उपन्यास : अधूरी देह की पूरी कहानी | ‘Jindagi 50-50’ Upnayas By : Bhagvant Anmol

एक किन्नर को उसके अपने परिवार, समाज से मिले दर्द तथा उसके साथ हुए अन्याय आदि को लेकर लिखा गया यह उपन्यास अपने आप में इस समाज के समक्ष अनेकों प्रश्न करता हुआ दिखाई देता है कि क्या किन्नर होना कोई अपराध है ? क्या किन्नर को समाज में जीने का कोई हक नहीं ? या किन्नर को लेकर समाज के लोगों की दोगली मानसिकता में कभी परिवर्तन नहीं आ सकता ? और क्या एक किन्नर अपने परिवार में सबके साथ जीने का हक नहीं रखता ? ऐसे ही अनेकों प्रश्नों के साथ उपस्थित है यह उपन्यास ‘जिंदगी 50-50‘ | सन २०१७ में प्रकाशित भगवंत अनमोल द्वारा रचित यह उपन्यास किन्नर जीवन के अनेकों परतों को हमारे सामने खोलता है |

उपन्यास का नाम (Novel Name)जिंदगी 50-50 (Jindagi 50-50)
लेखक (Author)भगवंत अनमोल (Bhagvant Anmol)
भाषा (Language)हिन्दी (Hindi)
प्रकार (Type)किन्नर विमर्श (Kinnar Vimarsh)
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication)2017

“अधूरी देह क्यों मुझको बनाया

बता इश्वर तुझे ये क्या सुहाया

बहिस्कृत और तिरष्कृत त्रासदी हूँ

भरी जो पीर से जीवन नदी हूँ

मिलन सागर को ही कब रास आया

वही एकाकीपन मुझमे समाया

अधूरी देह क्यों मुझको बनाया ……

दीपिका वेदिका

महेंद्र भीष्म – मैं पायल

उपर्युक्त पंक्तियाँ किन्नर समाज के उस दर्द को बयां करती हैं जिसमें एक किन्नर इस भरी-पूरी दुनिया और परिवार के रहते हुए भी विवश, लाचार एवं असहाय, भीख मांगने और दर-दर भटकने के लिए मजबूर बनता है | यह हमारे समाज का एक ऐसा उपेक्षित वर्ग है जिसकी उपस्थिति को किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता | प्रायः हिजड़ा शब्द सुनते ही हमारे जेहन में एक ऐसी छवि उभर कर सामने आती है जो कभी भद्दी भाषा का प्रयोग करते हुए, ताली पीटते हुए तो कभी हँसी मखौल करते हुए पैसों की उगाही करते नजर आते हैं | और उस वक्त हमारी मनःस्थिति कैसी होती है ? क्रोध से भरे हुए हम उनकी अपने मध्य उपस्थिति को कोसते या गालियाँ देते हैं | क्या हमने कभी यह जानने का प्रयास किया है कि समाज से बहिस्कृत और तिरस्कृत उस अधूरी देह में भी जो बसा हुआ मन है, उसमें कितनी पीड़ा छुपी हुई है, कितना एकाकीपन भरा पड़ा है | क्या आप उस परिस्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं जब हर किसी से पैसे लेते समय उनकी आँखों में स्वय के प्रति घृणा और तिरस्कार के भाव को वे देखते और महसूस करते होंगे ?

जिंदगी 50-50‘ उपन्यास की कहानी मुख्य रूप से तीन धाराओं में प्रवाहित होती है | दो धाराएँ अनमोल के जीवन के अतीत और एक धारा वर्तमान की चलती रहती है | अनमोल के बेटे के जन्म से कहानी की शुरुआत होती है और अनमोल को अपने बेटे के किन्नर होने की जानकारी प्राप्त होती है | बेटे के किन्नर होने के विषय में जानकर अनमोल अपने अतीत में खो जाता है | उसे अतीत के वे सारे दर्द महसूस होने लगते हैं, जो उसके अपने भाई अर्थात हर्षा ने भुगता था | अतः अनमोल मनोमन यह निश्चय करता है कि जो अन्याय, अत्याचार हर्षा के साथ हुआ है, वैसा वह अपने पुत्र सूर्या के साथ नहीं होने देगा | शरीर एक पुरुष का किन्तु भावनाएं एक स्त्री की ऐसी परिस्थिति में जीवन जी रहे व्यक्ति की क्या दशा हो सकती है, उसके परिवार वालों पर इस का क्या प्रभाव पड़ता है तथा वह व्यक्ति जिस समाज में जन्मा है, उसके प्रति समाज के रवैये आदि का बेहद मार्मिक वर्णन प्रस्तुत उपन्यास में किया गया है |

जिंदगी 50-50‘ उपन्यास में हर्षा उर्फ़ हर्षिता एक किन्नर के रूप में जन्म लेता है | किन्नर रूप में जन्म लेना उसके जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप सिद्ध होता है | उसे न केवल समाज से बल्कि अपने ही पिता द्वारा अनेकों यातनाएं मिलती हैं | यहाँ तक कि उसके जन्म के बाद उसके पिता उसे मार डालने का भी प्रयास करते है और एक दिन घर में किसी के न रहने पर हर्षा के पिता उसे चूहा मारने की दवा पिलाने का प्रयास करते हैं | एक किन्नर संतान का पिता होने से हर्षा के पिता की मानवता मानो मर सी जाती है | समाज से ठुकराए गए अपने किन्नर संतान को प्रेम देना तो दूर उसे किसी न किसी तरह तिरष्कृत करते रहते हैं | हर्षा को निरंतर यह एहसास दिलाया जाता है कि वह औरों से भिन्न है | आस-पड़ोस वाले भी हर्षा को लेकर उसके पिता का मजाक उड़ाया  करते हैं जिससे हर्षा के पिता का उसके प्रति क्रोध और बढ़ जाता है | हर्षा के जन्म के बाद उसकी माँ जब उसके जन्म की ख़ुशी में कुछ लोगों को न्योता देने की बात हर्षा के बाबू जी से करती है तब वे अपनी पत्नी को अपमानित करते हुए कहते हैं –

“अरे, आज के बाद न्योता का नाम न लियो | तुम किसकी खातिर न्योता देना चाहती हो ? जो कुछ सालों बाद हमारी हर जगह पर नाक कटवाएगा, बेइज्जती करवाएगा ? हर कोई इसे हिजड़ा-हिजड़ा पुकारेगा और मुझे हिजड़े का बाप |”  

भगवंत अनमोल – जिंदगी 50-50

हर्षा  की  माँ अपने बेटे के साथ हो रहे अन्याय को देख तिल-तिल आहात होती रहती है लेकिन कुछ नहीं कर पाती | हर्षा जैसे –जैसे बड़ा होता है, समाज में उसका जीना और भी मुश्किल हो जाता है | घर से लेकर बाहर तक उसका मजाक उड़ाया जाता है | उसके स्कूल की अध्यापिका भी उसका मजाक उड़ाते हुए कक्षा में शैतानी कर रहे बच्चों से कहती हैं –

“अगर किसी ने बदमाशी की तो उसे हर्षा के पास बैठा दूंगी”

भगवंत अनमोल – जिंदगी 50-50

 यह  बहुत  ही दुर्भाग्य पूर्ण हैं कि समाज के शुक्षित वर्ग, जिन्हें इस  प्रकार की बुराइयों आदि से लोगों को अवगत कराते  हुए, इस प्रकार के भेद एवं कुंठित विचारों से निजाद दिलाने का कार्य करना चाहिए, वे ही अपनी कुंठित मानसिकता से उबर नहीं पाते और शोषकों की पंक्ति में जा खड़े होते हैं | हर्षा अपने प्रति की जाने वाली टीका से व्यथित हो सोचता है –

“पता नहीं मेरे अन्दर ऐसे कौन से कांटे लगे हुए हैं, जो लोग अगर मेरे पास में बैठेंगे तो उनको चुभ जायेंगे और उन्हें सजा मिल जायेगी !”

भगवंत अनमोल – जिंदगी 50-50

अपने प्रति किये जा रहे व्यवहार को समझ पाना हर्षा के लिए कठिन होता जाता है | बड़ा होने के साथ उसके पुरुष शरीर में स्त्री मन की भावनाएं बलवती होती जाती हैं | अब हर्षा को वे सारी चीजें पसंद आने लगती हैं जो ख़ासतौर पर लड़कियों को पसंद होती हैं | उसे लड़कियों की तरह सजना-धजना और लड़कियों के खेल आदि में अधिक रुचि होने लगती है | लेकिन यदि वह लड़कियों का कोई खेल खेलता है तो उसे लड़की कह उसका मजाक उड़ाया जाता है | धीरे-धीर उसके स्त्री मन की भावनाएं इतनी बढ़ जाती हैं कि वह चोरी-छुपे अपने माँ की साड़ी पहनता है और श्रृंगार भी करता है | पुरुष शरीर में पनपती अपनी स्त्री सुलभ भावनाओं को पूरा कर हर्षा को बहुत ख़ुशी महसूस होती है | किन्तु उसकी यह खुशी ज्यादा देर नहीं टिकती | एक दिन अचानक लड़की के वेश में सजी-संवरी हर्षा को उसके बाबूजी देख जाते है और उसे पीटते हुए कहते हैं – 

“तुझे ज्यादा शौक है लौंडिया बनने का ! छोड़ आएंगे हिजड़ों के पास, तो यहाँ-वहां छुछुआत भीख मांगता फिरेगा !”

भगवंत अनमोल – जिंदगी 50-50

हर्षा के पिता जानवरों की तरह उसकी पिटाई करते हैं | धीरे-धीरे वह अंतर्मुखी होने लगता है और अकेलापन उसके जीवन का अहम् हिस्सा बन जाता है | वह चाहता है कि कोई ऐसा भी हो जिससे वह अपने मन की सभी बातें कर सके, जो उसे समझे और उसकी मुलाकात होती है अमन से | अमन ही उसे पहली बार किन्नर होने का एहसास दिलाता है | हर्षा अमन से वे सारी बातें करता था जो उसे पसंद थीं | यहाँ तक कि जो हर्षा अपने ही परिवार वालों से अपने शरीर और मन के बीच चल रहे स्त्री पुरुष के द्वंद्व को नहीं बता पाता  वे सारी बातें हर्षा बिना हिचक अमन को बताता  है | वह स्वयं को अमन के सामने लड़की की तरह ही संबोधित करता है | हर्षा जैसे-जैसे बड़ा होता है समाज और उसके बीच का संघर्ष भी बढ़ता चला जाता है | अलग होने का एहसास उसके अस्तित्व को मानो समाप्त कर देना चाहता था |

जिस समाज में वह रहता है, वहां हर कोई मात्र उसका शोषण ही करना चाहता है | स्कूल से घर आते समय एक बार एक व्यक्ति उसके साथ बलात्कार करता है जिससे उसे असह्य पीड़ा होती है, किन्तु घर आने पर उसके दर्द की परवाह किये बिना उसके बाबूजी अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए उसे बहुत  पीटते हैं | अंततः हर्षा अपनों और समाज से मिली पीड़ा एवं दुर्व्यवहार से दुखी होकर किन्नर समाज में जाने के लिए विवश होता है | उसे नफ़रत होती है उस समाज से जहाँ उसके साथ कुकर्म करने वाले व्यक्ति के बजाय उसे ही दोषी ठहराया जाता है | हर्षा को सभ्य समाज के दोगले रवैये से घृणा हो जाती है |

उसके एक अविकसित अंग के कारण मानो उसका पूरा शरीर ही अपाहिज हो गया हो | उसके व्यक्तित्व का कोई महत्त्व ही नहीं रह गया था, न समाज की नज़रों में, न पिता की नज़रों में | घर से लेकर स्कूल तक सभी जगह हो रहे अपमान, शारीरीक तथा मानसिक शोषण से हर्षा का मन इस पूर्ण कहे जाने वाले अपंग मानसिकता भरे समाज से ऊब जाता है और वह उस समाज की ओर बढ़ता है जहाँ उसे अपना असली समाज मिलता है जो उसके तन और मन की भावनाओं को समझ सकता था | यहाँ वह स्वतन्त्र रूप से जो वह है या जो होना चाहता है, जो बनना चाहता है और जिस रूप में जीना चाहता है, उसे उस रूप में जीने की आजादी मिलती है |

परिवर्तन के साथ सुख और दुःख दोनों ही साथ रहते हैं | जहाँ बदलाव व्यक्ति में नयी उम्मीद, नयी आशा, नए सपने और नया उत्साह जगाता है वहीँ पुराने का मोह भी आसानी से नहीं छूटता | हर्षा उर्फ़ हर्षिता किन्नर समाज में आ जाती  है किन्तु यह बदलाव उसके लिए आसान नहीं था | वह सोचती है –

“हर्षा से हर्षिता बनना मेरे लिए मजबूरी और जरूरत थी | हर्षा की काया में मुझे छटपटाहट होती थी, मगर कोई नहीं था जो इसे समझ सकता परिवार वाले भी नहीं | …..आखिर इस उहापोह से निकलकर अंततः हर्षिता के अस्तित्व में मैं आ ही गयी |”  

भगवंत अनमोल – जिंदगी 50-50

हर्षिता सालों तक समाज के सामने जिस रूप में जीती रही, उस रूप से बाहर निकल अपने वास्तविक रूप अर्थात स्त्री रूप में आती है | अब तक हर्षिता आदमी के शरीर में स्त्री मन लिए जी रही थी | हर्षा से हर्षिता बनने से उसे ऐसा लगता है मानो, वह जिस शरीर में जी रही थी उससे वह आजाद हो गयी हो | हर्षिता अपने परिवार और बाबूजी की इज्जत की खातिर अपने गाँव घर से दूर मुंबई चली जाती है | जहाँ उसे किन्नरों के जीवन का एक और सच मालूम होता है  कि बधाई के अलावा कई सारे किन्नर देह व्यापार से जुड़े हुए हैं |

विडंबनाएं यहाँ भी हर्षिता का पीछा नहीं छोड़तीं | वह जिस किन्नर गुरु राधिका के समुदाय में शामिल होती है, वहां भी बधाई आदि से प्राप्त होने वाली आय के आधार पर उनमे भेद किया जाता है | जो किन्नर जितना अधिक पैसा देता है उसे उतनी ही अधिक सहूलियत दी जाती थी | अपने ही समाज में इस प्रकार का भेद-भाव देख हर्षिता बहुत निराश होती है | चूँकि हर्षिता शहर में नई थी अतः वह राधिका को कम पैसे देती थी जिससे उसे अन्य किन्नरों की तुलना में कम सुविधाएँ मुहैय्या करायी जाती थीं | उसके साथ राधिका का बर्ताव ही बदल जाता है | हर्षिता सोचती है –

“खाना भी सबसे बाद में दिया जाता | यहाँ तक कि सबके लिए तखत था पर मुझे जमीन पर सोने की जगह दी गई | हर जगह पर मेरी तौहीन होने लगी |”

भगवंत अनमोल – जिंदगी 50-50

जिसने जन्म के साथ ही अपनों द्वारा दी गई यातनाएं झेली हों, उसके लिए पराये लोगों द्वारा किया गया अपमान भोगना ज्यादा कठिन नहीं होता | हर्षिता के लिए यह व्यवहार अपने पिता द्वारा मिले अपमान से बहुत कम था | हर्षिता भी धीरे-धीरे स्वयं को उस माहौल में ढालने लगी | अपने परिवार वालों खास तौर पर बॉम्बे में ही रहने वाले अपने भाई की खोज खबर हमेशा रखती थी |

एक बार अपने भाई अनमोल के घर जाने पर उसे पता चलता है कि उसके पिता की तबियत ख़राब है और उनकी बीमारी का कारण उनकी पुस्तैनी जमीन है जो उनसे छिनने वाली थी | उस जमीन को वापस पाने के लिए उन्हें पांच लाख रूपये की जरूरत थी | इस कार्य के लिए वे  अपने बेटे अनमोल से मदद की अपेक्षा करते हैं लेकिन अनमोल अपनी प्राथमिक जरूरतों को अधिक महत्त्व देता है | उसे जमीन या गाँव के प्रति वह लगाव नहीं था जो उसके बाबूजी को था | वह अपनी विवशताओं का हवाल देते हुए बाबूजी से कहता है कि  फिलहाल उसके पास इतने पैसों की व्यवस्था नहीं है | हर्षिता यह सब जानकर बहुत दुखी होती है |

जिस पिता से उसे हमेशा नफरत, मारपीट और अपमान ही मिला था फिर भी हर्षिता अपने पिता के दर्द से दुखी होती है और उसे अपना कर्तव्यबोध होता है | भले ही वह एक किन्नर है फिर भी अपने पिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाना चाहती है | हालाँकि हर्षिता के पास भी उस समय उतने पैसे नहीं थे जितने बाबूजी को चाहिए थे | हर्षिता स्वयं की वजह से उसके बाबूजी को जितना भी अपमान, बेइज्जती सहनी पड़ी थी, उन सभी की भरपाई करने में वह जुट जाती है | पैसे जुटाने के प्रयास में वह उस दलदल में उतर पड़ती है जिससे उसकी बर्बाद जिंदगी हमेशा के लिए उसे ऐसे रोग से ग्रसित कर जाती है जिससे पीछा छुड़ाने का एकमात्र रास्ता था आत्महत्या |

हर्षिता एक बेटे का फर्ज पूरा करने की आस में अपनी जिंदगी बर्बाद कर देती है | देह व्यापर द्वारा हर्षिता पिता के मुख की मुस्कान तो वापस ला देती है किंतु उस मुस्कान भरे चेहरे को देख तक नहीं पाती | देह व्यापर का जो  गलत रास्ता उसने अख्तियार किया था, उसकी सजा उसे एड्स के रूप में मिलती है | अपना फर्ज अदा कर वह अपना जीवन त्यागने के लिए तैयार होती है और सोचती है इस पूर्ण स्त्री पुरुष समाज के बारे में, उसकी दोगली मानसिकता के बारे में और उसके रवैये के बारे में जो एक अधूरे व्यकित से जीने का हक छीन लेता है | अपने अंतिम क्षणों में वह समाज से कई प्रश्न करती है –

“किन्नर होना इतना बड़ा अभिशाप क्यों है ? बस मेरा अधूरापन ही तो न ? कैसे-कैसे पल आये ! इस शरीर ने सब भुगता, सब सहा | जिस शरीर का लोग मजाक उड़ाते हैं, उसे ही रात को अपने मन बहलाने का जरिया बना लेते हैं | मेरे शारीरिक अस्तित्व में दुहरापन हैं | लेकिन उस तथाकथित समाज के व्यक्तित्व के दुहरेपन पर मैं थूकती हूँ |”

भगवंत अनमोल – जिंदगी 50-50

और   अंततः  हर्षिता आत्महत्या कर अपना जीवन ख़त्म कर लेती है |

जिंदगी 50-50‘ उपन्यास में एक ही मुद्दे पर समाज के दो पीढ़ियों के चिंतन में आये बदलाव के जरिये एक आशा का भी प्रकटीकरण किया गया है कि समाज के भय मात्र से जहाँ लोग इन लोगो का जीवन नारकीय बना देते है, वहीँ यदि जरा सा साहस उनके अपने दिखाएँ  समाज की इन बुराइयों को नकारने का ,तो इस प्रकार के लोग आजीवन अंतहीन पीड़ा से बच सकते है | अनमोल अपने पुत्र के जन्म के साथ ही यह तय कर लेता है कि वह अपने पुत्र सूर्या के साथ वह सब नहीं होने देगा जो उसके भाई हर्षा के साथ उसके पिता और सम्पूर्ण परिवार की उपेक्षा के कारण घटित हुआ | अपने पुत्र को समाज के तिरस्कार और अन्याय से बचाए रखने के लिए अनमोल सदा विद्रोह करता नजर आता है |

अनमोल और उसका पूरा परिवार सूर्या  के जन्म पर लोगों को पार्टी देते हैं जहाँ आये लोगों में से कुछ समाज के ऐसे तथाकथित लोग थे जिनकी विरोधाभासी सोच का पर्दाफाश होता है | ऐसे लोग एक ओर तो अपने आप को प्रगतिशील एवं उन्नत विचारों वाला मानते है किंतु बात किसी ऐसे इंसान की आये जिसमें किसी प्रकार की कमी हो तो उनकी दकियानुसी और रूढ़िवादी सोच हमारे सामने आ जाती है | अनमोल के किन्नर बेटे सूर्या की पार्टी में आये कुछ लोग अनमोल के प्रति हमदर्दी का दिखावा करते हैं | वास्तव में यह हमदर्दी न होकर उनकी निकृस्ट सोच का उदाहरण है जो किसी कमी के साथ पैदा हुए व्यक्ति को अपने साथ स्वीकार नहीं कर पाते और उसके प्रति अपनी दोगली मानसिकता  प्रकट करते हैं |

पार्टी में आये शर्मा जी अनमोल को बड़ा दिलदार बताते हैं कि ऐसे बेटे के लिए भी वे पार्टी दे रहे हैं जो एक किन्नर है | अनमोल शर्मा जी के इन शब्दों से बहुत आहत होता हैं किंतु पार्टी ख़राब न हो इसलिए कुछ नहीं बोलता | किंतु कुछ समय बाद खट्टर साहब दुबे जी वगैरह से बात करते हुए अपनी गिरी हुई सोच का प्रदर्शन करते हैं  |

“अभी अनमोल भाई पार्टी दे रहे हैं, कुछ सालों बाद उनका बेटा हिजड़ों की टोली में शामिल होकर ‘हाय, हाय’ करता भीख मांगता नजर आएगा !”

भगवंत अनमोल – जिंदगी 50-50

अनमोल अपने बेटे के अपमान   को  सहन नहीं कर पाता और जो लोग उसके बेटे को हिजड़ा कहते हैं, उनके हिजडेपन की पोल खोलता है | अनमोल ने अपने भाई हर्षा के बर्बाद जीवन को देखा था अतः उसने तय कर रखा था कि जो गलती हर्षा के साथ हुई है वह कभी भी स्वयं नहीं दुहरायेगा | अगर उसके बाबूजी जी भी समाज की झूठी आन-बान के लिए हर्षिता को न ठुकराते तो वह भी पढ़ लिख कर आसानी से अपना जीवन जी पाती | उसे न अपने परिवार से अलग होना पड़ता, न किन्नर समुदाय में जाना पड़ता |

इस उपन्यास में बाबूजी एवं अनमोल के माध्यम से  इस विषय पर दो पीढ़ियों के भिन्न विचारों का चित्रण किया गया है | बाबूजी एक ओर जहाँ हर्षिता को समाज में अपने लोकापवाद के भय के कारण  स्वीकार करना तो दूर बल्कि उसे शारीरिक एवं मानसिक यातनाएं देते हैं, वही दूसरी ओर अनमोल अपने किन्नर के रूप में जन्मे बच्चे सूर्या के लिए उसी समाज की हीन सोच का प्रतिकार करता हुआ बड़े ही शसक्त रूप से उस सोच से लड़ता हुआ दिखाई देता है |

जिंदगी 50-50‘ उपन्यास जो है और जो होना चाहिए, दोनों ही परिस्थिति का जिक्र करते हुए आज की निराशा को कल की आशा में तब्दील करने का प्रयास है | यह इस बात का भी सन्देश है कि वास्तव् में हम इस शारीरिक अक्षमता से पीड़ित लोगों का कुछ भला करना चाहते हैं  तो सरकार और समाज से भी पहले आवश्यकता है व्यक्तिगत स्तर पर विचारों में तब्दीली लाये जाने की | उन्हें एक आम इंसान के समकक्ष समझे जाने की | यह समझे जाने कि की वे भी हमारी तरह हाड़ मांस से बने, हमारी ही तरह मन और भावनाओं को धारण करने वाले लोग हैं जिन्हें हमारी ही तरह सुख-दुःख, पीड़ा, मान-अपमान, आदि मानवोचित भावनाओं का बोध होता है और उसका प्रभाव उनके मानस पर ठीक हमारी ही तरह पड़ता है |


Dr. Anu Pandey

Assistant Professor (Hindi) Phd (Hindi), GSET, MEd., MPhil. 4 Books as Author, 1 as Editor, More than 30 Research papers published.

Leave a Reply