मिलजुल मन : मृदुला गर्ग | Miljul Man Upnayas By : Mridula Garg

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मिलजुल मन मृदुला जी का आत्मकथात्मक उपन्यास है जिसकी कथा पिछले पचास वर्षों के घटनाक्रम को चित्रित करती है | इस उपन्यास की कहानी मोगरा तथा गुलमोहर दो बहनों के इर्द-गिर्द घूमते हुए उनके जीवन की कहानी है जिसमें नव-स्वतंत्रता काल से लेकर आज तक के बदलावों, नारी की स्थिति, बदलते समाज आदि की कहानी कही गयी है | गीतांजलि श्री इस उपन्यास के विषय में कहती है-

“मिलजुल मन एक संवेदनशील स्त्री के मन की पड़ताल है एक ऐसी स्त्री जो समझ पाती है सुख और सुख के भ्रम का भेद | एक ऐसी पड़ताल जो अपने को स्त्री के अंतर तक ही सीमित नहीं रखती उस व्यापक परिवेश पर भी नजर डालती है जिसमें स्त्री स्त्री बन जाती है, या बना दी जाती है | द सेकंड सेक्स |”

उपन्यास का नाम (Novel Name)मिलजुल मन (Miljul Man)
लेखक (Author)मृदुला गर्ग (Mridula Garg)
भाषा (Language)हिन्दी (Hindi)
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication)2009

मिलजुल मन उपन्यास की कथा वस्तु

मिलजुल मन उपन्यास की कहानी मूलतः मृदुला जी की बड़ी बहन जो इस उपन्यास में गुलमोहर की भूमिका में है, उन पर आधारित है | उनके पिता बैजनाथ जैन एक स्वतंत्रता आंदोलन के फौजी हैं तथा वे छोटे लाला के यहाँ काम करते हैं | माता कनकलता’ बड़ी ही साहित्य प्रेमी स्त्री हैं तथा उनमें दुनियादारी की समझ का अभाव है | अपने बच्चों का लालन-पालन उनके पिता ही माता तथा पिता दोनों की भूमिकाओं में करते हैं | इसीलिए गुलमोहर मोगरा से अपने पिता के विषय में कहती है –

“बेवकूफ! पिताजी की तरह सब मर्द जन्मजात बाप नहीं होते कि औलाद के साथ नाज़नीन बीवी को भी बच्चे की तरह पालें |

मिलजुल मन  – मृदुला गर्ग

छोटे लाला की मृत्यु के पश्चात् उनके परिवार को आर्थिक तंगी के दौर से गुजरना पड़ता है जिससे कनकलता तथा मोगरा दोनों ही अनजान हैं, किन्तु अपनी गृहस्थी की समझ की परिपक्वता के कारण गुलमोहर इसे भांप जाती है तथा यथासंभव स्थिति को संभालने का प्रयास करती है | गुलमोहर को पढ़ने लिखने में विशेश रूचि नहीं है, किन्तु मोगरा डॉक्टर बनने की इच्छा रखती है |

गुलमोहर के पास हो जाने से पूरे परिवार को आश्चर्य होता है | गुलमोहर आगे चलकर गृह विज्ञान तथा कला का चयन करती है, परन्तु गुलमोहर की सहेलियों द्वारा भय दिखाये जाने के कारण मोगरा भी डॉक्टरी का इरादा बदल अर्थशास्त्र से पढ़ने का निर्णय लेती है | अध्ययन के दौरान ही गुलमोहन को शमित’ नामक युवक से प्रेम हो जाता है तथा उससे उसका विवाह करा दिया जाता है | शमित की नौकरी बम्बई में लगने से वह यहाँ चली जाती है | अपने पारिवारिक दायित्वों को बड़ी निपुणता के साथ निभाती है |

वहीं दूसरी ओर अमेरिका से वापस लौट ‘पवन’ नामक युवक के साथ मोगरा का विवाह होता है | मोगरा क्योंकि बचपन से ही स्वतंत्र विचारों की रही है, वह ससुराल में कुछ सामाजिक रीति-रिवाजों को नहीं अपनाती | यह उसके आजाद खयाली का प्रतीक है | शमित का कानपुर में तबादला होने पर गुलमोहर भी उसके साथ वहीं चली जाती है और वहीं जुड़वा बच्चों को जन्म देती है | विवाह के दस वर्ष के पश्चात् गुलमोहर लेखन कार्य आरंभ करती है |

इस उपन्यास के प्रमुख पुरुष पात्र गुलमोहर के पिता बैजनाथ जैन हैं जो एक जिम्मेदार पिता होने के साथ-साथ एक कुशल व्यवसायी भी हैं | वे कभी भी लड़के तथा लड़की में भेद-भाव नहीं करते अतः उन्होंने हमेशा गुलमोहर तथा मोगरा की शिक्षा दिक्षा पर विशेष ध्यान दिया है | वहीं दूसरी ओर इसी उपन्यास का पात्र करमचंद –

 “उन लोगों में से था, जो बेटियों को नुकसान और बेटों को नफा कह, नवाजते हैं |”

मिलजुल मन  – मृदुला गर्ग

मिलजुल मन उपन्यास के पात्र

मिलजुल मन के कई पात्र इस रचना को जिन्दादिल बनाते हैं | उनके अन्य उपन्यासों की भांति मिलजुल मनः के नारी-पात्र शोषित नहीं है | इसके सभी पात्र शिक्षा के प्रति सजग है तथा अपने अधिकारों के प्रति जागरुक तथा सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपनी निजी राय रखते हैं | इस उपन्यास में दो मुख्य नारी पात्र है- मोगरा तथा गुलमोहर मोगरा के रूप में लेखिका स्वयं को चित्रित करती है तथा गुलमोहर के रूप में अपनी बहन मंजुल भगत को उपन्यास में ‘गुलमोहर’ का एक सुन्दर, समझदार तथा व्यावहारिक व्यक्तित्व के रूप में चित्रण है जिसे दुनियादारी की अच्छी समझ है |

बदलते दौर में देश में मंदी के समय पिता की जिस माली हालत का मोगरा अथवा उसकी माँ कनकलता को अंदाजा भी नहीं लगता, वह उसे भाप जाती है | वह बीती को भूल आगे बढ़ने में विश्वास रखती है | पूछो पर्चा कैसा हुआ तो कहती, उसका क्या जिल | अगले पर्चे का सोचूं कि बीते पर गुफ्तगू करू | उसका प्रेम विवाह ‘शमित से होता है | शमित द्वारा दिल्ली में बसी बसाई जिन्दगी छोड़ कानपुर जाने के निर्णय से व्यक्ति तो होती है, किन्तु साथ जाने के प्रश्न पर सब के मना करने पर अपना स्वतंत्र निर्णय लेती है | कहती है-

“मेरा पति है, मुझे उसके साथ जाना है | उसमें किसी और का दखल क्यों जरूरी है?”

मिलजुल मन  – मृदुला गर्ग

इसी तरह मोगरा भी अपने विवाह सम्बन्धी निर्णय को बड़ी सावधानी से लेने का प्रयास करती है |

इस उपन्यास की एक और नारी पात्र ‘लाला’ की बीवी है जिसे पति के मर जाने पर अफसोस से ज्यादा इस बात की खुशी है कि उसकी मौत किसी तवायफखाने में नहीं हुई वरना समाज में बदनामी होती इस उपन्यास की पात्र कनकलता जो भोगरा की माँ है बड़ी साहित्य प्रेमी हैं | ये साहित्य पठन के प्रति बहुत प्रेम रखती है परन्तु घर गृहस्थी के प्रति थोड़ी लापरवाह भी है | हालांकि यह उनका दोष न होकर उनका व्यक्तित्व है कि वह अन्य स्त्रियों की तरह अपने बच्चों को यह वात्सल्य नहीं दे पाती और अनायास ही उनसे बच्चों की उपेक्षा हो जाती है | ‘मोगरा कहती है सच्ची हमें जो कभी एक कहानी सुनाई हो | सुनाती कैसे? हमारे साथ वक्त कहाँ गुजारती थी |

कनकलता की माँ का जिक्र करते हुए लेखिका ने उस काल की स्त्रियों के साहसिक मनोभाव को उकेरा है जो अपनी पुत्री का विवाह किसी स्वतंत्रता सेनानी से करने की बात कहती है जिसे आज के समय में पागलपन ही कहा जायेगा | इस उपन्यास में चित्रित सभी नारी पात्र जागरुक तथा स्वतंत्र निर्णय लेने का जज्बा रखती हैं |

उपन्यास की भाषा एवं संवाद

मिलजुल मन उपन्यास में पात्रों के संवाद उनके विचारों उनकी पसंद-नापसंद, उनके मनोभावों तथा उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं को उजागर करते हैं | मिलजुल मन उपन्यास में डोट्स भाषा का प्रयोग हुआ है | गुल के बारे में कही गई बात का उदाहरण- “कहा. . . . गुल तो हरदम अकेली बंटी-बंटी रहती होता है बच्चों के बाद ऐसा ही होता है | इस उपन्यास के विषय में डॉ. वृषाली मांद्रेकर कहती है-

“मिलजुल मन उपन्यास जिंदगी का बयान होते हुए भी स्त्री का मन, स्त्री की सोच, दृष्टि एवं समस्याओं से सम्बन्धित स्थितियों का जायजा लेते हुए दृष्टिगोचर होता है |”


Dr. Anu Pandey

Assistant Professor (Hindi) Phd (Hindi), GSET, MEd., MPhil. 4 Books as Author, 1 as Editor, More than 30 Research papers published.

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