चित्तकोबरा : मृदुला गर्ग | Chitkobra Upnayas By : Mridula Garg

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चित्तकोबरा मृदुला जी द्वारा रचित एक बहुचर्चित एवं विवादास्पद उपन्यास है | इस उपन्यास की कथा का मूल आधार प्रेम विवाह तथा सेक्स की समस्या है | उपन्यास की नायिका मनु दाम्पत्य सम्बन्ध एवं दाम्पत्येत्तर सम्बन्ध के कारण निरन्तर तनाव तथा द्वन्द्व की स्थिति महसूस करती है | उपन्यास में सेक्स सम्बन्ध को बड़ी बेबाकी से वर्णित किया गया है, जिसके सम्बंध में लोगों का मानना है कि-

“चित्तकोबरा अमेरिकी वेस्ट पेलेस में मिलने वाले सक्रिय सेक्स चित्रों के अनुरूप और उनकी परंपरा में गढ़ा गया उपन्यास है |“

चित्तकोबरा का कथ्य नवीन जीवन मूल्यों को प्रस्तुत करता है | इस उपन्यास में नारी मन की कुंठाओं का चित्रण हुआ है | नारी की यह कुंठा शारीरिक ही नहीं अपितु मानसिक भी है | उपन्यास में नारी के परिवर्तित अनुभव जगत का चित्रण किया गया है |

उपन्यास का नाम (Novel Name) चित्तकोबरा  (Chitkobra)
लेखक (Author)मृदुला गर्ग (Mridula Garg)
भाषा (Language)हिन्दी (Hindi)
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication)1979

चित्तकोबरा उपन्यास की कथा वस्तु

चित्तकोबरा उपन्यास की कथा के केन्द्र में नायिका ‘मनु’ है जो एक विवाहिता स्त्री और दो बच्चों की माँ भी है | ‘मनु’ का पति महेश एक लघु उद्योगपति एवं व्यवहारिक पुरुष है | मनु और महेश को लोग आदर्श दम्पत्ति के रूप में जानते है | मनु की दृष्टि में प्रेम का स्वरूप उदार है | एक गृहिणी के रूप में मनु के मन में यह प्रश्न बार-बार उठता है कि क्या महेश उससे प्रेम करता है ? महेश मनु से प्रेम नहीं करता, वह तो केवल वैवाहिक जीवन को अपना कर्तव्य मानकर किसी तरह निभा रहा है |

मनु प्रथम बार जब एक थियेटर ग्रुप से जुड़कर पादरी रिचर्ड के सम्पर्क में आती है, तब उसे एहसास होता है कि प्रेम क्या है | यह एहसास अन्तर्मुखी मनु को बदल देता है | रिचर्ड का मनु के जीवन में प्रवेश उसे उसके जीवन जीने के प्रति दृष्टिकोण को बदल देता है | मनु और रिचर्ड साल में बहुत कम बार ही मिलते हैं, किन्तु दूर रहकर भी दोनों एक ही है | मनु जब पति महेश के साथ होती है तो केवल दैहिक स्तर पर | तन की उपस्थिति और मन की अनुपस्थिति के बारे में लेखिका ने अपने मन के द्वन्द्व को इस प्रकार प्रकट किया है-

“कितनी अच्छी तरह जानती थी मैं उस तथ्य को, स्त्री की बनावट में स्थित अद्भुत द्वैत की संभावना को शरीर से संभोग में पूर्णतः शामिल होते हुए भी. मन-मस्तिष्क से, चेतना प्रज्ञा से तटस्थ होकर, विश्लेषण विवेचन करके, आत्म-हास्य तक पहुंच जाने की विलक्षण क्षमता को पुरुष को वह प्राप्त नहीं है | प्रकृति ने उसकी जैविक बनावट ही ऐसी की है कि वह तभी शामिल हो सकता है, जब खुद को शामिल करे | प्रेम हो या हिंसा, पैशन तो होना ही पड़ेगा | 1979 में ‘चित्तकोबरा’ उपन्यास लिखा तो मन की पृष्ठभूमि में यह तथ्य था | सो उसमें उतर आया | लगता है, समय से पहले लिखा गया इसलिए वर्षो स्वीकार्य नहीं हुआ |”

चित्तकोबरा – मृदुला गर्ग

मनु और रिचर्ड का प्रेम प्लैटोनिक अर्थात अशरीरी प्रेम के रूप में वर्णित है | इन दोनों के मध्य का यह आन्तरिक आकर्षण इतना प्रगाढ़ है कि दोनों के मध्य कोई दीवार नहीं रह जाती | इस उपन्यास की भूमिका मेरी तरफ से में लेखिका प्रेम के विषय में कहती हैं-

“प्रेम अपने मूल में प्लैटोनिक (अशरीरी) होता है यानी उसकी परमगति प्रेमी से एकात्म होने में है, एक शरीर होने में नहीं | ईष्ट का अस्तित्व ही सबकुछ है उसकी उपस्थिति नगण्य है | ईष्ट के एब्स्ट्रैक्ट रूप में स्थापित होते ही प्रेम सार्वभौमिक रूप पा जाता है |” 

चित्तकोबरा – मृदुला गर्ग

इस प्रकार लेखिका का मानना है कि प्रेम अशरीरी होता है।

चित्तकोबरा उपन्यास में विवाह संस्थान की निरर्थकता का चित्रण किया गया है | और इस निरर्थकता का कारण विवाहित मनु और रिचर्ड के विवाहेत्तर सम्बन्ध हैं | मनु का विवाह तो ‘महेश’ से हुआ है, किन्तु वह प्रेम रिचर्ड से करती है | मनु के मन में जो उसे प्राप्त नहीं है उसके प्रति उसका अधिक आकर्षण रहता है | मनु और रिचर्ड एक दूसरे से प्रेम करते हैं, दोनों विवाहित भी हैं | दोनों अपने वैवाहिक जीवन में असफल रहे हैं | मनु का पति महेश अपनी पत्नी के जीवन में किसी पर पुरुष के प्रवेश को नकारता है | उधर रिचर्ड की पत्नी ‘जैनी’ भी रिचर्ड पर अपना एकाधिकार मानती है | मनु और रिचर्ड वैवाहिक असफलता के कारण विवाहेत्तर सम्बन्ध स्थापित करने को मजबूर होते हैं |

चित्तकोबरा उपन्यास की नायिका मनु के मन के द्वन्द्व का चित्रण किया गया है | यह द्वन्द्व उसके हिस्से की धूप उपन्यास की नायिका मनीषा के द्वन्द्व के समान ही है | मनु यह समझ नहीं पाती कि वह क्या करे ? वह स्वयं निर्णय नहीं ले पाती कि वह महेश से अलग हो जाये या रिचर्ड से विवाह कर ले | उसके इस मानसिक द्वन्द्व का उद्घाटन उसके इन वाक्यों से चलता है-

“मैं खुद नहीं जानती, मैं क्या बनना चाहती हूँ | इतना खाली खोखला वक्त है मेरे पास कभी सोचती हूं अभिनेत्री बन जाऊँ कभी सोचती हूं, पी-एच.डी. कर डालूं. किसी कॉलेज में पढ़ाऊं . . .कविताएं लिखूं |”

चित्तकोबरा – मृदुला गर्ग

मनु के इन वाक्यों से उसके आत्मसार्थकता की तलाश के द्वन्द्व का पता चलता है | कविता लिखकर मनु अपनी इस तलाश में सफल होती है |

चित्तकोबरा उपन्यास में सेक्स का खुला चित्रण किया गया है | मृदुला जी ने नारी की यौन भावनाओं की इच्छा को स्वीकार किया है और इसी आधार पर मनु की यौन भावनाओं का बेबाक वर्णन भी किया है | काम सम्बन्धों का ऐसा बेबाक वर्णन कृष्णा सोबती के ‘सूरजमुखी अंधेरे में’ कान्ता भारती के ‘रेत की मछली’ , राजकमल चौधरी के ‘मछली मरी हुई’ आदि उपन्यासों में किया गया है | इस प्रकार चित्तकोबरा उपन्यास में सेक्स की समस्या, नर-नारी के वैवाहिक एवं विवाहेत्तर सम्बन्ध, प्रेम सम्बन्ध तथा स्त्री की मानसिक कुंठा आदि का चित्रण इसकी कथा विस्तार में सहायक हुआ है |

चित्तकोबरा उपन्यास के पात्र

इस उपन्यास की प्रमुख नारी पात्र मनु है | वह साहित्य प्रेमी होने से कभी-कभार नाटक में भी अभिनय करती है | इसी दौरान उसे जमशेदपुर की ड्रेमेटिकल क्लब नामक नाटक मंडली में उसकी मुलाकात रिचर्ड हचिसन से होती है | प्रथम मुलाकात के दौरान ही वह रिचर्ड को अपना मन-मीत मान लेती है | रिचर्ड भी उससे प्रेम करने लगता है, हालांकि दोनों विवाहित है | मनु एक स्वच्छन्द नारी है तथा अपना निर्णय स्वयं ही लेती है |

महेश और रिचर्ड उपन्यास के प्रमुख पुरुष पात्र है तथा दोनों ही मनु से जुड़े हुए हैं | जहाँ महेश पति के रूप में मनु से जुड़ा है, वहीं रिचर्ड प्रेमी के रूप में | महेश लघु उद्योगपति है | वह विवाह बंधन में विश्वास नहीं रखता किन्तु जब मनु का रिचर्ड से प्रेम सम्बन्ध की बात सुनता है तब वह सौगन्ध खाकर मनु से कहता है- मनु सच में आज से, अभी से मैं भी तुम्हें प्यार करने लगा हूँ | रिचर्ड एक पादरी तो था ही, साथ-साथ दुखियों, गरीबों की सेवा तथा अन्य प्रकार के समाज सेवा से सम्बन्धित कार्यों के लिए सदैव तत्पर रहता है | वह कभी एक जगह टिक कर नहीं रहता, अपितु एक यायावर की भांति निरन्तर देश-विदेश में भ्रमण करता रहता है |

उपन्यास के संवाद

चित्तकोबरा उपन्यास में संवादों के द्वारा पात्रों की मनः स्थितियों मानसिक संघर्षो, तनाव, पीड़ा, प्रेम आदि का प्रत्यक्ष वर्णन मिलता है | मनु और रिचर्ड के संवाद छोटे मगर प्रेम की गहराई को व्यक्त करने वाले हैं | साथ ही मनु और महेश के संवाद द्वारा उनके वैवाहिक जीवन की असफलता, तनाव आदि का पता चलता है | वैवाहिक सम्बन्ध के बारे में मनु और महेश के मध्य के संवाद का एक उदाहरण द्रष्टव्य है-

“अगर तुम्हारा किसी से प्यार होता?” मैंने कहा।

“तो उसी से शादी करता” “अगर अब हो?”

“तुम्हारे रहते?”

“किसी और से?”.

“और जो तुमसे हो।”

“विवाह के बंधन में मेरा विश्वास नहीं है, मनु ।”

चित्तकोबरा – मृदुला गर्ग

चित्तकोबरा उपन्यास का परिवेश, भाषा एवं शैली

इस उपन्यास का परिवेश उच्चवर्गीय जीवन जीने वाले लोगों की कहानी प्रस्तुत करने के साथ उसी वर्ग के लोगों की मानसिकता का वर्णन करता है | मनु भी अपने वैवाहिक जीवन में परिवर्तन चाहती है, किन्तु असुरक्षा का भय उसके मन को कौंध देती है | यह उपन्यास भाषा की दृष्टि से एक सशक्त कृति है | उपन्यास की भाषा कथ्य की अभिव्यक्ति करने में पूर्णतः सफल हुई है | उपन्यास की भाषा पात्रों एवं प्रसंगों के अनुकूल है | इस उपन्यास में हिन्दी के अलावा अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाओं के उदाहरण यत्र-तत्र दिखाई दे देते हैं | प्रस्तुत उपन्यास आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है | साथ ही इसमें पूर्वदीप्ति शैली, विश्लेषणात्मक आदि शैलियों का भी उदाहरण देखा जा सकता है |

कहा जा सकता है कि चित्तकोबरा की कथा में प्रेम दर्शन की अभिव्यक्ति हुई है | मनु और रिचर्ड का प्रेम अद्भुत है, दोनों का प्रेम मिलकर एकात्म हो गया है |


Dr. Anu Pandey

Assistant Professor (Hindi) Phd (Hindi), GSET, MEd., MPhil. 4 Books as Author, 1 as Editor, More than 30 Research papers published.

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