किन्नर कथा -किन्नर जीवन की मार्मिक गाथा | Kinnar Katha By : Mahendra Bheeshm

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महेंद्र भीष्म द्वारा रचित किन्नर कथा उपन्यास हिंदी साहित्य की उन साहसिक रचनाओं में से एक है जिसने समाज को इस समुदाय को लेकर सोचने के लिए विवश किया है | किन्नर कथा उपन्यास उन रचनाओं की श्रेणी में आता है जिसने किन्नर समुदाय की वेदनाओं पर एक नयी जिरह को हवा दी है । इस उपन्यास के विषय में कई आलोचकों का मत रहा है कि इसकी कथावस्तु अतिनाटकीय है, या यूँ कहें कि बेहद फ़िल्मी है | शायद यही कारण है कि यह उपन्यास एक सफल फिल्म की भांति पाठक को प्रारंभ से लेकर अंत तक बांधे रखती है | भीष्म जी स्वयं ही स्वीकार करते हैं कि इस उपन्यास का कथा-सूत्र बचपन में सुनी गयी कहानी पर आधारित है | उपन्यास से किसी इनसाइक्लोपीडिया की तरह मात्र जानकारी की अपेक्षा करना उचित नहीं है | किन्नर कथा उपन्यास अपने पात्रों के माध्यम से किन्नर जीवन की समस्याओं, समाज का उनके प्रति रवैया, प्रशासन की उदासीनता, परिवार से विस्थापन की व्यथा के अतिरिक्त सामाजिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक आदि पक्षों को उजागर करते हुए एक सकारात्मक बिंदु पर समाप्त होता है जहाँ इसके प्रमुख पात्र को अंतत: पूर्ण स्वीकार्यता प्राप्त होती है, अपने परिवार से, समाज से |

उपन्यास का नाम (Novel Name)किन्नर कथा (Kinnar Katha)
लेखक (Author)महेंद्र भीष्म  (Mahendra Bheeshm)
भाषा (Language)हिन्दी (Hindi)
प्रकार (Type)किन्नर विमर्श (Kinnar Vimarsh)
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication)2011

हिंदी साहित्य आज दलित, स्त्री, आदिवासी आदि समाज के उपेक्षित वर्ग के साथ-साथ किन्नर समुदाय के पक्ष को भी बड़ी ही मजबूती से चर्चा में लेकर आया है | विदित है कि हिंदी साहित्य जिस प्रकार से समाज के उपेक्षितों की प्रताड़ना, वेदना और उनकी समस्याओं के प्रति हमें सतत जागरूक करता रहा है, उसके फलस्वरूप उनके जीवन में सराहनीय बदलाव दृष्टिगोचर हो रहे हैं | उदाहरण के तौर पर जहाँ एक ओर कानूनी संरक्षण ने दलितों की स्थिति को समाज में मजबूत किया है वहीं साहित्यिक चर्चाओं ने समाज में उनकी स्वीकार्यता को बढ़ाया है और आज वर्ग भेद की समस्या काफी हद तक मिटने की कगार पर आ चुकी है । साहित्य जगत में किन्नरों की दशा एवं उनके उत्थान की दिशा पर बखूबी जिरह प्रारंभ हो चुका है | क़ानूनी संरक्षण की एवं समाज में समानता के अधिकार की मांग उठ रही है | कई राज्यों में इस समुदाय के उत्थान हेतु सरकारों द्वारा सराहनीय पहल भी की जा रही है | इसमें साहित्य की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है |

समाज में जीवन निर्वाह के लिए मात्र क़ानूनी संरक्षण पर्याप्त नहीं है । समाज द्वारा पूर्ण रूपेण इस समुदाय को अपने मध्य स्वीकार किया जाना भी उतना ही अनिवार्य होता है | आज भी जहाँ वर्षों से एक साथ रह-रहे लोगों के मध्य धर्म और जाति के नाम पर टकराव दिखाई देता हो, ऐसे में एक ऐसा समुदाय जो सदियों से समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग रहा हो, जो स्त्री एवं पुरुष के इर्द गिर्द बुने गए सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था के ताने-बाने में कहीं फिट ही नहीं बैठता हो, उसे एकाएक इस व्यवस्था में स्वीकार्यता मिल जायेगी, यह आशा करना सर्वथा अनुचित होगा | मैं समझती हूँ, इस दिशा में पहल के लिए, जहाँ आप को आवश्यकता है लोगों को इस समुदाय की समस्याओं से अवगत कराने की, उनके प्रति मानवीय संवेदना पैदा करने की तथा लोगों को विवश करने की कि वे भी इस उपेक्षित समुदाय के विषय में सोचें, इसके लिए साहित्य के अतिरिक्त और कोई प्रभावी माध्यम नहीं है ।

आज के समय में भी सर्वाधिक सर्वहारा और उपेक्षित यह वर्ग अपनी राजनैतिक एवं सामाजिक पहचान हेतु समाज की मुख्य धारा की ओर टकटकी लगाए देख रहा है | इस समुदाय की मौजूदा परिस्थिति के लिए जितना उनसे जुड़ी हुई कई प्रकार की भ्रांतियां , भय तथा समाज की मुख्य धारा के लोगों की उपेक्षा जिम्मेदार है उतना ही जिम्मेदार है इस समुदाय में अपनी ईच्छा शक्ति का अभाव | इतिहास में इस बात के भरपूर प्रमाण मिलते हैं कि प्रारंभ से ही किन्नरों की ऐसी स्थिति कभी भी नहीं थी और वे भी अन्य वर्गों की ही भांति कई रूपों में, समाज की मुख्य भूमिका में नजर आते थे । यहाँ तक कि उनके सम्भोग तथा प्रजनन की अक्षमता के कारण उन्हे  बादशाहों के हरम की सुरक्षा का दायित्व दिया जाता था । ब्रिटिश शासन के दौरान उनका अस्तित्व हासिये पर आ गया | आजादी के इतने वर्षो बाद भी उनकी परिस्थिति ऐसी है कि इनके विषय में बात करना एक दु:साहस का काम माना जाता  है |

किन्नर या थर्ड जेंडर के लोगों को हम सामान्यतः वे लोग मानते हैं जिनकी जैविक संरचना उन्हें यौन सुख प्राप्त कर पाने की दृष्टि से अक्षम बनाती है । उनके जननांग पूर्ण रूपेण विकसित नहीं हो पाते । अतिरिक्त इसके, कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जिनका व्यवहार उनके लिंग से अपेक्षाकृत विपरीत होता है, मसलन स्त्री होने के बावजूद पुरुषत्व के गुण अथवा पुरुष होते हुए भी भावनात्मक रूप से स्वयं को स्त्री महसूस करना और उसी के अनुरूप व्यवहार करना | जैविक संरचना के आधार पर किन्नरों को कई वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है । प्राकृतिक तौर पर , जननांग की अक्षमता वाले हिजड़ों को बुचरा कहा जाता है | यही वास्तविक हिजड़े होते हैं  क्योंकि ये जन्म से ही न तो स्त्री की श्रेणी में आते हैं , और न ही पुरुष की | 

“लिंगोच्छेदन कर बनाये गए हिजड़ों को ‘छिबरा’ और नकली हिजड़ा बने मर्दों को ‘अबुआ’ कहते हैं …..हिजड़ों की चार शाखाएं होती हैं- बुचरा, नीलिमा, मनसा और हंसा | … बुचरा जन्मजात हिजड़ा होते हैं, नीलिमा स्वयं बने, मनसा स्वेच्छा से शामिल तथा हंसा शारीरिक कमी के कारण बने हिजड़े हैं |”

महेंद्र भीष्म – किन्नर कथा

इस उपन्यास में इन सभी  बुचरा  हिजड़ों के अतिरिक्त अन्य सभी का भी अंशतः जिक्र दिखायी पड़ता है | इस उपन्यास का प्रमुख पात्र सोना, तारा आदि जन्मजात हिजड़ा हैं वहीं लम्बू अबुआ श्रेणी का उदाहरण है |

जैतपुर के राजसी खानदान में जगतराज एवं आभा सिंह के घर दो जुड़वाँ पुत्रियों का जन्म होता है जिसमें से एक की योनी अविकसित ही रह जाती है | प्रसव कक्ष में ही जानकारी मिलने के उपरांत आभा सिंह की सारी की सारी ख़ुशी काफूर हो जाती है | दाई निरंजना और आभा सिंह इस सच्चाई को छुपाये रखने का निर्णय लेती हैं और लगभग चार वर्षों तक अपने इस प्रयास में सफल भी रहती है | वे हमारे समाज की इस मानसिकता से भली-भांति परिचित हैं कि इसे उनका परिवार और समाज कभी भी स्वीकार नहीं करेगा और इस नन्हीं जान के अस्तित्व को उसके पति के पुरुषत्व और खानदान की इज्जत से जोड़कर देखा जाएगा | परिणामतः इस नन्हीं जान को मौत के हवाले कर दिया जाएगा |

जब जगतराज उर्फ़ ‘दायजू’ को इस बात का पता चलता है तो मानो उनके पाँव तले की जमीन ही खिसक जाती है और वे सोना को जान से मार देने का निर्णय करते हैं | क्षत्रीय वंश में एक हिजड़े के जन्म को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए, समाज में अपनी जग हँसाई के भय से अपने दीवान पंचम सिंह को सोना को मारने का निर्देश देते हुए कहते हैं –

“क्षत्री वंश में हिजड़ा, का ऊ हिजड़ा हा पाले-पोसे अरे आज नहीं तो कल, जब सबके सामने जा बात आ जेहे कि हमाई संतान हिजड़ा है, बुंदेला खून हिजड़ा पैदा करत तो का गत हुई है हमाई |”

महेंद्र भीष्म – किन्नर कथा

सामाजिक प्रतिष्ठा खो देने एवं उनके पुरुषत्व पर लांछन लगाये जाने का भय उन पर इस कदर हावी होता है कि वे भूल जाते हैं कि वे उस बच्ची के पिता भी हैं | जगतराज की यह सोच सामान्य तौर पर हमारे सम्पूर्ण समाज की सोच है | यह संभव है कुछ लोग ऐसे बच्चों का परित्याग न करना चाहते हों और उन्हें पाल-पोष कर एक व्यवस्थित जीवन प्रदान करने की आकांक्षा रखते हों, परन्तु उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा में हानि और लोकापवाद का भय उन्हें ऐसा करने से रोक देता है | परिणामतः ऐसे बच्चे एक नारकीय जीवन जीने के लिए विवश हो जाते हैं | जगतराज की सोच हमारे पूरे समाज की सोच का प्रतिनिधित्व करती है | सोना को पंचम सिंह मारने की बजाय तारा नामक किन्नर गुरु के हवाले कर देते हैं, इस निर्देश के साथ की वह जैतपुर के नजदीक भी न फड़के | सोना को चंदा नाम दिया जाता है और उसका लालन-पालन तारा के डेरे में रहने वाली मातिन नामक स्त्री करती है | युवावस्था में चंदा को मनीष नामक युवक से प्रेम होता है |

मनीष नामक पात्र के रूप में महेंद्र जी ने इस समुदाय की समाज में स्वीकृति की भूमिका गढ़ने का प्रयास किया है |

“तारा के डेरे के सारे किन्नर मनीष के आने पर उससे दो बातें कर लेने के लिए उत्सुक रहते, …… उन्हें लगता जैसे मनीष उस समाज का प्रतिनिधि है, जो सदियों से उनकी बिरादरी वालों को हेय और त्याज्य दृष्टी से देखता चला आ रहा है और अब मनीष के रूप में वही समाज उन्हें अपनाने जा रहा है; उनके प्रति सोच में बदलाव आ रहा है | उन्हें भी समाज के दूसरे वर्गों की भांति सामाजिक स्तर शीघ्र मिलने जा रहा है |”

महेंद्र भीष्म – किन्नर कथा

यह जानते हुए भी कि चंदा एक हिजड़ा है और वह एक स्त्री की भांति यौन सुख प्रदान करने में असमर्थ है, मनीष का उससे विशुद्ध प्रेम तथा ह्रदय को मथकर रख देने वाला, विरह की अग्नि में जलाकर रख देने वाला चंदा का मनीष के प्रति प्रेम पूर्णतया ‘प्लैटोनिक’ है | तारा चाहती है कि चंदा का ऑपरेशन करवाकर उसे पूर्ण स्त्री बनाया जाय जिससे उसका जीवन सुधर जाय |

मनीष और चंदा के प्रेम प्रसंग के माध्यम से रचनाकार एक ऐसे वर्ग से ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति जिसकी मौजूदगी लोग अपने मध्य कुछ क्षण भी बर्दास्त नहीं कर सकते तथा दूसरी ओर एक ऐसा व्यक्ति को समाज के मुख्य धारा से जुड़ा है, उपरांत एक पूर्ण पुरुष है, उनके परस्पर संबंधों को चरम तक ले जाने का प्रयास किया है | एक ऐसा भी समय आता है कि चंदा के डेरे के किन्नरों को जैतपुर रियासत की राजकुमारी रूपा अर्थात सोना की जुड़वाँ बहन के विवाह में नाचने-गाने के लिए आमंत्रित किया जाता है | हवेली में पहुँचते ही चंदा उर्फ़ सोना के बचपन की धूमिल पड़ गयी यादें ताजा हो आती हैं और वह अपनी माँ समेत पूरे परिवार को पहचान लेती है | यह बेहद ही करुण दृश्य होता है कि एक साथ जन्मी दोनों जुड़वाँ बहनों

“में से एक वह सोना सिंह जो हिजड़ा पैदा हुई थी, चंदा के नाम से रंगशाला में नर्तकी बनी नृत्य कर लोगों का मनोरंजन कर रही थी, तो दूसरी उसकी जुड़वाँ बहन रूपा सिंह अपने पति के साथ विवाह के मौके पर घराती-बाराती सहित लोगों के हुजूम में बैठी अपने जीवन का स्वर्णिम पल जी रही थी”

महेंद्र भीष्म – किन्नर कथा

सोना को पहले उसकी माँ और फिर बाद में पूरा परिवार मिलता है | एक बार फिर सोना को अपने पिता की घृणा का सामना करना पड़ता है | जगतराज को सोना के कारण जिस बेइज्जती तथा बेटे और बेटी रूपा के विवाह में विघ्न का भय था, आभा सिंह उसकी परवाह किये बगैर अपनी समधन के समक्ष सारी सच्चाई बयां कर देती है | उसकी समधन सोना को अपने साथ कनाडा ले जाकर इलाज करवाने का प्रस्ताव रखती है | अंतत: सोना और मनीष उनके साथ कनाडा चले जाते हैं | सोना का परिवार से पहले परित्याग और फिर अंत में परिवार द्वारा पुनः स्वीकार कर लिया जाना वास्तव में फ़िल्मी ही लगता है | हम और आप सभी जानते हैं कि ऐसा हो पाना वास्तविकता से कोसों दूर है, परन्तु इतना अवश्य है कि यह कथा एक सुखद परिवर्तन का उदाहरण अवश्य प्रस्तुत करती है |

इस उपन्यास की दूसरी महत्वपूर्ण पात्र तारा उर्फ़ ताराचंद अग्रवाल भी एक संभ्रांत परिवार से ताल्लुक रखती है | उसे चौदह वर्ष की आयु में, माता-पिता की इच्छा न होने के बावजूद बड़े भाई द्वारा निष्कासित कर दिया जाता है | सामान्यतः हिजड़ों का परित्याग उनकी शैशव अवस्था में ही कर दिया जाता है, अतः उन्हें अपने परिवारजनों के विषय में कुछ भी याद नहीं रहता है | चूँकि तारा अपने परिवार से दूर जाने से पूर्व उम्र का एक अच्छा खासा वक्त उनके साथ बिता चुकी थी, अतः उनसे दूर होना उसके बहुत ही पीड़ादायक रहता है | उससे भी अधिक उसे अपने परिवार द्वारा बार-बार अपमानित किया जाना ज्यादा ही कष्ट देता है | पिता और माँ के मृत्यु की जानकारी तक उसे नहीं दी जाती |  अपनी माँ को याद कर वह सोचती है-

“प्रत्येक किन्नर अभिशप्त है, अपने परिवार से बिछुड़ने के दंश से | समाज का पहला घाट यहीं से शुरू होता है | अपने ही परिवार से, अपने ही लोगों द्वारा उसे अपनों से दूर किया जाता है | परिवार से विस्थापन का दंश सर्वप्रथम उन्हें ही भुगतना होता है |”  

महेंद्र भीष्म – किन्नर कथा

मनीष जो उसके भाई का छोटा पुत्र है, चंदा की वजह से उसके समीप आती है और उसे उससे पुत्रतुल्य प्रेम और सम्मान प्राप्त होता है | मृत्युपरांत तारा को मनीष से मुखाग्नि प्राप्त होती है |

यह रचना इस समुदाय से जुडी परम्पराओं, धार्मिक मान्यताओं और उनसे जुड़ी लोक कथाओं को भी सामने लेकर आती है जिससे एक सामान्य व्यक्ति अनभिज्ञ रहता है | यह समुदाय भी कई धार्मिक मान्यताओं का अनुसरण करता है | वे लोग माँ बहुचर देवी की भांति कृष्ण और शिव की आराधना करते हैं | मृत्युपरांत उन्हें सामान्य तौर पर दफनाया जाता है, क्योंकि हिन्दू धर्म में ऐसा माना जाता है कि उनमें  दैवीय आभा विद्यमान रहती है | तारा कलेक्टर आयुष द्वारा जिज्ञासावश पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए कहती है –

“इस्लाम धर्म की अपेक्षा हिन्दू धर्म व उसके सहयोगी धर्म यथा- बौद्ध, सिख, जैन धर्मों में हम लोगों को काफी सम्मान प्राप्त है | वे हमें इश्वर की संतान मानते हैं, हमारा आशीर्वाद व मंगलकामना पाने की आकांक्षा रखते हैं; उनका विश्वास है कि हम लोगों को कुछ ईश्वरीय शक्तियां प्राप्त होती हैं और हम लोगों के चारों ओर एक दैवीय आभा-मंडल व्याप्त रहता है |”

महेंद्र भीष्म – किन्नर कथा

यह समुदाय अपनी उपस्थिति को वैदिक काल से जोड़कर देखता है | उनका मानना है कि जब रामचंद्र जी को मनाकर वन से लौटा लाने के लिए समग्र अयोध्यावासी भरत के साथ वन में गए थे तब किन्नर भी उनके साथ थे  | भरत की प्रार्थना को अस्वीकार कर रामचन्द्र जी सभी नर और नारी को लौट जाने के लिए कहते हैं, अतः हिजड़े चौदह वर्ष तक उनकी आज्ञा की प्रतीक्षा में वहीं रहते हैं | वापस लौटने पर रामचंद्र जी उनके प्रेम से गदगद हो कलितुग में राज्य करने का आशीष देते हैं |

महाभारत की एक कथा के अनुसार, पांडवों की जीत सुनिश्चित करने हेतु अर्जुन पुत्र अरवाण ने अपने शरीर की एक-एक बूंद युद्ध की देवी माँ काली को अर्पित किया था | अरवाण की इच्छा थी कि बलि से  पूर्व उसका विवाह हो जिसकी पूर्ति हेतु भगवान कृष्ण ने मोहिनी रूप धारण कर उससे एक दिन के लिए विवाह किया और मृत्यु के उपरांत विधवा की तरह विलाप किया था | चूँकि मोहिनी रूप में कृष्ण स्त्री रूप में एक पुरुष थे, अतः हिजड़े स्वयं को उन्हीं के वंशज मानते हैं | हर वर्ष तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले के कुवागम गाँव  में हिजड़ों का मेला लगता है जो लगभग १८ दिनों तक चलता है | कुवागम के कुथान्दावार मंदिर में पूजा-अर्चना होती है | यहाँ आये सभी हिजड़े एक दिन के लिए अरवाण से विवाह करते हैं और बाद में विधवा होकर विलाप करते हैं | इसी तरह केरल में आयप्पा और चामय्या- बिल्कू उत्सव, कर्णाटक में येल्लामा देवी उत्सव एवं गुजरात में माँ बहुचर देवी के मंदिर में नवरात्र भर गरबा और डांडिया नृत्य का आयोजन किया जाता है जिसमें सभी हिजड़े बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं |

इस उपन्यास में भीष्म जी ने इस समुदाय से जुडी अनेकों समस्याओं जैसे सामाजिक तिरस्कार और भेद-भाव, प्रशासनिक भेद-भाव, वैश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति आदि का चित्रण किया है | परिवार से विस्थापन की पीड़ा उन्हें जीवन के उस समय तक ही  सालती है जब तक उसकी यादें उनके मानस में धूमिल न हो जाएँ, परन्तु कदम-कदम पर हम जैसों द्वारा किया जाने वाला भेदभाव, उपेक्षा एवं अपमान उन्हें जीवन पर्यंत पीड़ा पहुंचाता रहता है | ऊपर से सरकारी तंत्र की उदासीनता,

“शिक्षा और संचार की कमी, अन्य व्यवसाय में जुड़ने के सीमित अवसर, आर्थिक तंगी व परिवार का भावनात्मक लगाव न होना ही अधिकांश किन्नरों को यौन कर्म की ओर ले जाता है |”

महेंद्र भीष्म – किन्नर कथा

कुछेक तो आपराधिक प्रवृत्तियों में भी लिप्त हो जाते हैं | प्रजनन की अक्षमता का बौद्धिक क्षमता से सम्बन्ध हो सकता है क्या ? कतई नहीं | कौन जानता है कि यदि इन्हें समुचित अवसर प्रदान किया जाय तो वे अपने जीवन के साथ कुछ अच्छा करने के साथ-साथ समाज और देश हित में योगदान दे सकते हैं, परन्तु इसके विपरीत वे जीवन भर ताली बजाकर नाचने-गाने के लिए विवश हैं |

बेरोजगारी और अर्थ के अभाव में कई पुरुष भी साड़ी पहन कर, किन्नरों का स्वांग करते हैं तथा लोगों से भिक्षा मांगते हैं | किन्नर समुदाय को लेकर हमारे समाज में जो वर्षों से भ्रांतियां विद्यमान हैं, ऐसे तत्व उसी भय का नाजायज फायदा उठाते हैं | उनके द्वारा किया जाने वाला दुर्व्यवहार वास्तविक हिजड़ों और समाज के  लोगों के बीच की दूरियों को और बढ़ा देता है | लम्बू नामक एक ऐसा ही नकली हिजड़ा, समाज के अन्य रसूखदार लोगों की सह पाकर, तारा के डेरे के समकक्ष अपना अलग डेरा बना उसका गुरु बन बैठता है | नकली हिजड़ों की जमात खड़ी कर उन्हें भिक्षावृत्ति और वैश्यावृत्ति के धंधे में धकेल देता है | तारा और लम्बू के लोगों के बीच हाथापाई होने पर तारा कलेक्टर के ऑफिस में जाकर शिकायत दर्ज करवाती है जिसका वे संज्ञान लेने का आश्वासंन देते हैं | हालाँकि कलेक्टर पुलिस महकमें में इस प्रश्न को उठाता भी है परन्तु समय रहते, ठोस कदम के अभाव में बात यहाँ तक पहुँच जाती है कि लम्बू साजिश कर तारा की हत्य करवा देता है | यह एक उदहारण प्रस्तुत करता है कि किस प्रकार हमारी कानून व्यवस्था इस समुदाय और उनसे जुडी समस्याओं के प्रति उदासीन और गैरजिम्मेदार है |

महेंद्र भीष्म का यह उपन्यास किन्नर जीवन की त्रासदी का चित्रण मात्र नहीं करती, बल्कि इस समुदाय से जुड़ी समस्याओं के संभावित हल का सुझाव भी देता है | कथा का एक सुखद अंत तीसरी योनी के लोगों को आशान्वित करने का तथा समाज की मुख्य धारा के लोगों के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत करने का प्रयास है | इस प्रकार की साहित्यिक रचना को एक सराहनीय प्रयास  माना जाना चाहिए क्योंकि इस प्रकार की चर्चा व्यवहारिक तौर पर किन्नरों की सहायता भले ही न कर पाए, किन्तु समाज में उनकी सहज स्वीकार्यता हेतु भूमिका तैयार करने का कार्य अवश्य करेगी |


Dr. Anu Pandey

Assistant Professor (Hindi) Phd (Hindi), GSET, MEd., MPhil. 4 Books as Author, 1 as Editor, More than 30 Research papers published.

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