‘जूते का जोड़ गोभी का तोड़’ नामक कहानी संग्रह वर्ष 2006 में प्रकाशित हुआ था | इस कहानी संग्रह में कुल पन्द्रह कहानियाँ शामिल हैं। उनमें से ‘जूते का जोड़ गोभी का तोड़’ नामक कहानी नई है। बाकी सभी कहानियाँ पूर्व-प्रकाशित संग्रहों में शामिल की जा चुकी हैं। अतः यहाँ मात्र जूते का जोड़ गोभी का तोड़ कहानी का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है।
कहानी संग्रह का नाम | जूते का जोड़ गोभी का तोड़ (Joote ka jod gobi ka tod) |
लेखक (Author) | मृदुला गर्ग (Mridula Garg) |
भाषा (Language) | हिन्दी (Hindi) |
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication) | 2006 |
जूते का जोड़ गोभी का तोड़ कहानी का कथानक
‘जूते का जोड़ गोभी का तोड़’ कहानी समाज के दो अलग-अलग वर्गों से ताल्लुक रखने वाले लोगों के मध्य अत्यन्त ही प्रगाढ़ आत्मीय सम्बन्ध की कहानी है। इस कहानी का ‘मोची’ हरिजन जाति से ताल्लुक रखता है। दूसरी ओर ‘लाला’ बनिया जाति का है जो सवर्णों का प्रतिनिधित्व करता है। लाला अक्सर अपने जूते सिलवाने मोची के पास जाया करता था। पिछले दस वर्षों से चल रहे इसी क्रम से ऊबकर मोची उलाहना देते हुए लाला से कहता है कि तुम तो मुंशीगिरी से कई वर्षों पहले ही रिटायर हो गये अब- “इस जूते को कै बरस में रिटायर करोगे?’
हालांकि मोची भी यह बात अच्छी तरह जानता है कि ऐसा नहीं कि लाला जूते खरीदने में सक्षम नहीं है । दरअसल वह तो इतने वर्षों के बाद अनायास ही हो गई उनके बीच मित्रता से खिंचा चला आता है । मोची तथा लाला के मध्य होने वाले संवाद समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद-भाव, कटाक्ष तथा उनके प्रति प्रतिकार को दर्शाते हैं। साथ ही एक वर्ग के व्यक्ति का दूसरे वर्ग के द्वारा सहजता से अपनाये जाने अथवा न अपनाये जाने का चित्रण किया है । जब लाला मोची से कहता है कि यदि लाला मोची के अलाव पर आया तो क्या उसकी जात वालों को बुरा नहीं लगेगा, तब मोची जवाब देता है-
“ना लाला, यही तो अन्याय है। तुम्हें हमें अपनी महफिलों में बुलाने में एतराज है, हमें तुम्हें बुलाने में नहीं।”
जूते का जोड़ गोभी का तोड़ – मृदुला गर्ग
उपर्युक्त कथन के माध्यम से इस कहानी में जात-पात के कारण समाज में वर्ग-भेद की स्थिति का चित्रण है।
लाला और मोची दोनों ही अपने-अपने स्तर पर स्वाभिमानी हैं। दोनों के ही बेटे शहर में अफसर हैं, परन्तु दोनों ही उन पर आश्रित न होकर स्वयं ही कमाकर अपना भरण-पोषण करते हैं। लाला सब्जियां उगाने का काम करता है। वह पहले सबसे बड़ी गोभी और फिर बाद में सबसे बड़ी लौकी उगाकर पाँच-पाँच सौ रुपये का इनाम जीतता है। इनाम में मिले रुपयों से वह मोची के लिए खेस’ खरीदता तथा उसी लौकी से मिष्ठान बना मोची के पास पहुँचता है। वहां पहुँचकर वह देखता है कि मोची नीचे लेटे हुए खांस रहा है। वह उसे उठाकर अपनी कोठरी में लाता है तथा उसे गरमा-गरम लौकी का मिष्ठान खिलाता है जिससे उसकी खांसी रुक जाती है। प्रातः उठकर लाला देखता है कि मोची की मृत्यु हो गई है।
इस प्रकार प्रस्तुत कहानी में समाज में फैले जाति-पाति के भेद-भाव, ऊँच-नीच, गरीबी-अमीरी के साथ-साथ लाला एवं मोची के स्वाभिमान तथा लाला का दूसरों के प्रति दयाभाव आदि का चित्रण हुआ है।
जूते का जोड़ गोभी का तोड़ कहानी के पात्र
इस कहानी में मुख्यतः दो पात्र ही हैं, ‘लाला’ और मोची। लाला रिटायर होकर सब्जी उगाने का कार्य करता है। उससे होने वाली आमदनी से ही अपना घर चलाता है, अपने अफसर बेटे पर आश्रित नहीं रहता। स्वावलंबी लाला उच्च जाति का होते हुए भी हरिजन जाति के मोची से मित्रता कर उसके प्रति लगाव रखता है जो उसके चरित्र की विशेषता है। मोची एक गरीब किन्तु स्वावलंबी तथा स्वाभिमानी व्यक्ति है। बूढ़ा होकर भी जूते गांठ स्वयं के बूते जीता है। वह भी लाला की ही तरह अपने अफसर बेटे से एक पैसा भी नहीं लेता।
प्रस्तुत कहानी के छोटे, चुटीले, रोमांचक संवाद पात्रों के मनः स्थिति, आपसी लगाव, व्यंग्य आदि को उद्घाटित करते हैं। लाला के गोभी पर इनाम की बात सुनकर मोची लाला से गोभी कितने दिन बनाई खाई की बात पूछता है। फिर उसके बनिया होने पर व्यंग्य करता हुआ कहता है
“इसी दम पर बनिया बनो हो फोटू में खुश
“ठेठ बनिया होते तो नकदी भी लेते, गोभी भी मोहल्ले में
बांटते, सुनाम होता
जूते का जोड़ गोभी का तोड़ – मृदुला गर्ग
कहानी के संवाद और परिवेश
इस कहानी के संवाद छोटे होते हुए भी पात्रों की मनःस्थिति को उजागर करने में सक्षम हैं। इस कहानी के पात्रों की भाषा में गवई शब्दों की भरमार है। उदाहरण के तौर पर मोची लाला से पूछता है- “कित्ति रात सुनाए किस्से? 10 प्रस्तुत कहानी में गरीबी, जाति-पाति का भेद, मदिरापान आदि समस्याओं का अंकन हुआ है। इस प्रकार इस कहानी का कथ्य बेहद व्यंग्यात्मक तथा रोचक है। भाषा पात्रानुकूल एवं परिवेश ग्रामीण है।