आज हिंदी साहित्य में नारी ,दलित,आदिवासी एवं किन्नर साहित्य भी भांति ही प्रवासी साहित्य की अपनी जड़े मजबूत करते हुए हिंदी साहित्य को समृद्ध कर रहा है | रोजी-रोटी की तलाश में विदेश जाने वाले लोगों में कुछ लोगों ने विदेशी धरती पर रहते हुए अपने अनुभवक, अपनी संवेदना को तथा भारत भूमि के प्रति के अपने ममत्व,पीड़ा आदि को शब्दबद्ध किया है | प्रवासी भारतीय महिला साहित्यकारों में उषा प्रियंवदा का नाम विशेष उल्लेखनीय है | उषा जी की रचनाओं में विशेष रूप से आधुनिक जीवन की आपधापी, संत्रास, पारिवारिक संबंधों में दरार, नारी जीवन की पीड़ा आदि का निरूपण किया गया है | उषा प्रियंवदा कृत नदी उपन्यास उषा प्रियंवदा की रचनाओं में से एक है |
उपन्यास का नाम (Novel Name) | नदी (Nadi) |
लेखक (Author) | उषा प्रियंवदा (Usha Privyamvada) |
भाषा (Language) | हिन्दी (Hindi) |
प्रकार (Type) | स्त्री विमर्श (Stree Vimarsh) |
प्रकाशन वर्ष (Year of Publication) | 2017 |
साहित्य उस अथाह सागर के सामान है जिसकी सीमा और गहराई का निर्धारण करना कोई मामूली काम नहीं है | इसी प्रकार हिंदी साहित्य भी उस अथाह सागर के समान है जिसकी विशालता का निर्धारण नहीं किया जा सकता है | प्रत्येक क्षण सागर रूपी इस साहित्य की विशालता बढ़ती ही जा रही है | ‘नारी तू नारायणी’ जहाँ हमारे शास्त्रों में नारी को देवी का रूप मान कर उसे पूजने योग्य माना गया है वहीँ आज नारी की यह स्थिति है कि कुछ लोग उसे देवी मानना तो दूर एक स्त्री होने का सम्मान भी नहीं देना चाहते | आदि-अनादि काल से ही नारी का शोषण होता चला आ रहा है | साथ ही नारी का स्वयं पर हो रहे शोषण के खिलाफ संघर्ष भी निरंतर चलता रहता है | स्वयं के प्रति हो रहे अत्याचार के खिलाफ संघर्ष करना किसी भी नारी की सबसे बड़ी जीत है क्योंकि जब तक आवाज नहीं उठेगी तब तक स्त्री के प्रति देखने का नजरिया नहीं बदला जा सकेगा और नाही स्त्री पर हो रहे अन्याय को ही ख़त्म किया जा सकता है |
नदी उपन्यास की नायिका गंगा के पति डॉ.गगनेन्द्र सिन्हा एक तुनुक मिजाज और बेहद सकी किस्म के इन्सान थे | उन्हें अपनी सुन्दर एवं वाचाल पत्नी का किसी से मिलना-जुलना पसंद नहीं था | विदेश में रहते हुए गंगा अपनी दोनों बेटियों झरना और सपना के साथ खुश थी | बेटे के जन्म के बाद तो गंगा की खुशियाँ दोगुनी हो जाती है | वह स्वयं उसका नाम ‘भविष्य’ रखती है किंतु उसके पांच वर्षीय बेटे की मृत्यु हो जाती है जिसका सारा दोष डॉ.सिन्हा गंगा के सिर मढ़ देते हैं | और गंगा जब अपनी सौतेली बहन से मिलने वासिंगटन जाती है तब डॉ. सिन्हा घर बेच कर बेटियों सहित भारत आ जाते हैं | पति और बच्चों के बिना अकेली और असहाय बनी गंगा का विदेशी धरती पर अकेली गुजर करना आसान न था |
अक्सर विवाहित स्त्रियाँ घर, गृहस्ती और परिवार की देख भाल करने में स्वयं के लिए समय ही नहीं निकाल पाती | बहन के पास रहते हुए गंगा महसूस करती है कि कितना कुछ है संसार में देखने के लिए, जानने के लिए वह अपने को स्वतंत्र महसूस करती है किंतु पति ,बच्चे और गृहस्थी से उसे कभी अपने बारे में कुछ भी सोचने का मौका ही नहीं मिलता था | एक हफ्ते बाद अपने घर पहुँचने पर उसे लगता है मानों उसके पैरों तले की जमीन ही खिसक गई हो पूरा घर खाली और बिक चुका था | घर की चाभियां उसके पास होने से वह दरवाजा खोलती है और एक रात इसी घर में रहने का निर्णय करती है | इस खाली घर में उसके मृत बेटे की स्मृतियाँ ताज़ी हो जाती है
“इस क्षण में वह अकेली थी ,एक दुखी माँ- जिसने बेटे का नाम भविष्य रखा था-नियति का कितना क्रूर परिहास था…उसका तो भविष्य था ही नहीं,एक हाथ की ऊँगलियों पर ही उसकी जीवन-अवधि गिनी जा सकी थी |”
उषा प्रियंवदा : नदी
औरयहाँ से शुरू होता है गंगा के संघर्ष का सफ़र | गंगा का मकान अर्जुन सिंह खरीद लेते हैं औए जब उन्हें पता चलता है कि डॉ.सिन्हा बिना गंगा को साथ लिए ही भारत चले गए हैं तब वह गंगा को भी भारत लौट जाने की सलाह देते हैं ,लेकिन जब उन्हें मालूम चलता है कि डॉ सिन्हा गंगा का पासपोर्ट,वीजा भी अपने साथ ले गए हैं तब वे गंगा को समझाते है कि जल्द ही डॉ.सिन्हा को अपनी गलती का एहसास हो जायेगा तब गंगा सोचती है –
“डॉ. सिन्हा का यह निर्णय उसको सजा देने के लिए किया गया है –क्योंकि उनके अनुसार भविष्य की मौत की वही जिम्मेदार है; जैसे वह भविष्य की माँ नहीं है,कि भविष्य की बीमारी और मृत्यु उसे टुकड़े-टुकड़े विदीर्ण नहीं कर गई है पर यह दूसरों से कहने से क्या फ़ायदा ? वही इसे झेलेगी |”
उषा प्रियंवदा : नदी
किंतु गंगा उनसे कुछ नहीं कहती है | पारिस्थिवश गंगा अर्जुन सिंह की सहायता लेती है किंतु अपनी मर्जी और अपनी शर्तों पर | गंगा एक अस्पताल में नौकरी के लिए आवेदन देती है जहाँ उसकी मुलाकात एरिक एरिकस से होती है | एरिक ने ही उसके बेटे भविष्य का इलाज किया था किंतु बाल ल्यूकीमिया ग्रस्त भविष्य को वह नहीं बचा सका था | एरिक अपना सम्पूर्ण जीवन कैंसर रिसर्च और उपचार में अर्पित करना चाहता है | अर्जुन सिंह अनेक प्रकार के प्रलोभनों द्वारा गंगा को बांधे रखना चाहते हैं ले लेकिन वह भूल जाते है कि गंगा का अर्थ ही है मुक्त विचरण करना | गंगा अर्जुन सिंह के साथ रहते हुए भी अपना निर्णय लेने के लिए मुक्त थी
“वह जानती थी यह उसकी मजबूरी नहीं थी ,वह बंदी नहीं थी,किसी भी दिन दरवाजा खोलकर होटल के बाहर जा सकती थी”
उषा प्रियंवदा : नदी
गंगा कुछ समय तो अर्जुन सिंह के साथ रहती है लेकिन अर्जुन सिंह के अवैध कारनामे का पता चलते ही पहले तो वह स्तब्ध रह जाती है किंतु जल्द ही वह अपना सामान समेट होटल से निकल जाती है | गंगा प्रवीण बहन के घर जाती है किंतु दरवाजे पर ताला होने से वहीं बाहर ही बैठ जाती है और तब उसे एहसास होता है अपनी स्वतंत्रता का वह महसूस करती है –
“खुले में बैठ कर कितना अच्छा लग रहा है,-वह मुक्त है,स्वतंत्र-मन में ढेर सी शांति भर उठी है,न पीछे का दुःख- न आगे का भय |”
उषा प्रियंवदा : नदी
गंगा को डॉ.सिन्हा अपने हाथों की कठपुतली मान बैठे थे, हर काम में पाबन्दी,जो करो सब डॉ. सिन्हा की मर्जी का क्योंकि वे पति हैं | फैशन इंस्टीट्यूट से ग्रेजुएशन करने वाली गंगा का जीवन मात्र पति,बच्चों और घर की देखभाल तक ही सीमित हो गया था | गंगा प्रवीण बहन के घर ताला होने से किसी होटल में जाने के लिए टेक्सी करती है किंतु होटल जाने की बजाय अपने पुराने घर जाती है और संयोगवश ताला खुल जाता है वहीँ रात बिताती है सुबह होने पर घर से निकलते समय वह डाक का डब्बा देखती है और उसे उसका ग्रीनकार्ड मिलता है,हर्ष की एक लहर उसके पूरे शरीर को झकझोर जाती है |
गंगा ना तो भारत जाती है नाही अर्जुन सिंह के पास ही जाना चाहती है इसलिए वह अपनी पड़ोसन मार्था से किराए के मकान के लिए बात करती है और मार्था उसे एक फ्लैट दिलवाती है | जहाँ रूम मेट के रूप में गंगा की एरिक से मुलाकात होती है | गंगा और एरिक कुछ दिनों साथ रहते हुए एक दूसरे के बहुत करीब आ जाते हैं | और गंगा सोचती है कि एरिक के साथ की अंतरंगता डॉ.सिन्हा और अर्जुन सिंह की हवस से कितनी भिन्न है | एरिक गंगा को भारत लौट जाने और डॉ.सिन्हा से समझौता करने की सलाह देता है | और तब स्वाभिमानी गंगा एरिक से कहती है –
“नहीं एरिक-कुछ भी हो,मैं उनसे समझौता नहीं करूँगी | उन्होंने मुझे बहुत रौदा,बहुत कुचला और अंत में फटे चीथड़े की तरह,कूड़े –कचरे की तरह घर से निकाल कर फेंक दिया | मैं सम्मान से जीना चाहती हूँ भले ही मुझे झाड़ू लगाने का काम करना पड़े |”
उषा प्रियंवदा : नदी
गंगा त्रासदी से भरे अपने जीवन से मुक्ति चाहती है पति द्वारा मिली प्रताड़ना एवं अर्जुन सिंह के धोखे से उसका जीवन बर्बादी की कगार पर आ जाता है और ऐसे में एक मात्र एरिक ही था जिससे उसे सच्चा प्रेम मिला था | गंगा और एरिक साथ तो रहना चाहते हैं किंतु रह नहीं पाते क्योंकि एरिक के जीवन का एक मात्र लक्ष्य बाल कैंसर का उपचार खोजना था | एरिक और गंगा एक साथ अपने-अपने देश के लिए निकलते है किंतु गंगा एरिक का पता नहीं ले पाती है | भारत यात्रा के दौरान गंगा के मन में अनेक प्रश्न उठते हैं –
“यदि जिन्दगी एक पुस्तक होती,तो यह भी एक अध्याय होता,जो समाप्त हो गया | वह अमेरिका और भारत के बीच यात्रा में है-अब क्या न्य अध्याय खुलेगा,दुखद या सुखद-पर-वह स्वयं नहीं जनती | बस,एक उत्कंठा है-बेटियों को ह्रदय से लगाने की ”
उषा प्रियंवदा : नदी
गंगा के भारत आने पर उसके सास-ससुर एवं बेटियाँ बहुत खुश होतें हैं| गंगा पूरी तरह से अपने परिवार में रम जाती है | किंतु डॉ.सिन्हा उसे हमेंशा के लिए अपनी जिन्दगी से निकाल चुके थे | ऐसे में गंगा को याद आता है अपनी बाल विधवा बुआ की वह बात जो उन्होंने गंगा की विदाई के समय कही थी –
“जिन्दगी में धीरज रखना,धीरज और क्षमा-स्त्री के यही दो गहने होता हैं”
उषा प्रियंवदा : नदी
गंगा सोचती है क्या धीरज और क्षमा शब्द मात्र स्त्री पर ही लागू होते हैं | गंगा के सास की मान्यता थी कि प्रत्येक स्त्री के पास गहने अवश्य होने चाहिए जो उसके भविष्य के लिय एक इन्वेस्टमेंट होता है किंतु गंगा के अनुसार औरत का इन्वेस्टमेंट उसकी शिक्षा एवं आत्मनिर्भरता ही है | कुछ दिनों बाद गंगा को अपने गर्भवती होने का पता चलता है, उसे यह भी विश्वास था कि यह बच्चा एरिक का है | साथ ही उसे यह भी मालूम चलता है कि डॉ.सिन्हा का अपने किसी सहयोगिनी के साथ विवाह करना चाहते हैं | गंगा अपनी दोनों बेटियों को सास-ससुर के पास छोड़ कैलीफोर्निया प्रवीण बहन के घर चली जाती है | जहाँ वह प्रवीण दम्पति की सेवा करती है | गंगा के गर्भवती होने की बात जान कर प्रवीण बहन उसे अपना बच्चा निसंतान कैथरिन बसबी को देने की सलाह देती है | गंगा अपने बच्चे के अच्छे भविष्य की आश में ऐसा ही करती है |
प्रवीण बहन की मृत्यु के बाद प्रवीण जी से समझौता कर गंगा उनकी सेवा करती रहती है | प्रवीण जी अपना सब कुछ अपने बेटे यशवंत के नाम कर देते है और खेत का एक टुकड़ा मात्र ही गंगा को मिलता है | गंगा उसी खेती की आय से अपना गुजर करती है | अंततः इस उपन्यास में एक नया मोड़ आता है और इस मोड़ पर गंगा की अबतक भुगती सभी यातनाओं ,तनाव ,दुःख दर्द का अंत हो जाता है उसे मिलता है उसका और एरिक का पुत्र स्टीवेनस्त\स्तव्य | स्टीवेन अचानक ही एक दिन गंगा के पास आता और उसे माँ कहकर बुलाता है | वह एक रात अपनी माँ गंगा के पास रहता है और दोनों एक दूसरे से अपना दुःख-सुख साझा करते हैं | और स्टीवेन अपने कैंसर के बारे में बताता है कि उसे भी ल्यूकीमिया हो गया था किंतु उसे उसके पिता एरिकसन ने बचा लिया और अब वह बिलकुल स्वस्थ है | स्टीवेन द्वारा गंगा के बारे में पूछे जाने पर गंगा अपने उलझन भरे त्रासद जीवन के बारे में बताती है कि उसे जीवन भर केवल धोखा ही मिला –
“मुझे तो सभी रिस्तो में घटा ही हुआ | गगन बिहारी ने भी छोड़ दिया,बेटियाँ अलग कर दीं,और प्रवीण जी? फले उनकी पत्नी की सेवा की,और फिर बर्षों उनकी |पत्नी को कैंसर था,और उन्हें स्वयं लकवा लग गया था | न पहले पति से कुछ मिला,न प्रवीण जी से | उन्होंने अपना न्य बिल बनवाया ही नहीं |”
उषा प्रियंवदा : नदी
इस प्रकार नदी उपन्यास की नायिका आकाशगंगा का समस्त जीवन उलझन भरा ही रहता है | उसे ना अपनों का प्यार मिला ना ही साथ | किंतु उसके समस्त दुखो,पीड़ाओ का अंत तब हो जाता है जब उसे उसका पुत्र स्तव्य मिलता है |