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स्त्री जीवन की विडम्बनाएं : देह की कीमत | ‘Deh ki Keemat’ kahani sangrah by : Tejendra Sharma

देह की कीमत- तेजेंद्र शर्मा

तेजेंद्र शर्मा का नाम हिंदी के प्रवासी भारतीय साहित्यकारों में विशेष उल्लेखनीय है | २१ अक्टूबर १९५२ में पंजाब के जगरांव में जन्मे तेजेंद्र जी ने अपनी कविताओं, नाटकों और कहानियों के माध्यम से बहुत कम समय में ही हिंदी साहित्य जगत में अपना एक विशेष स्थान बना लिया है | अब तक उनके कुल ग्यारह कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं | ‘काला सागर’, ’ढिबरी टाईट’, ’देह की कीमत’ आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं | तेजेंद्र जी भले ही विदेशी परिवेश में रहते हों परन्तु उनकी रचनाओं में भारतीयता की सौंधी खुशबु समाये रहती है |

हिंदी साहित्य और समय-समय पर इससे जुड़े कई अग्रणी लेखकों ने स्त्री जीवन की समस्याओं, उसकी सामाजिक दशा, पीड़ा आदि को अपनी लेखनी में स्थान दिया है | कुछ रचनायें समाज के समक्ष नारी की वास्तविक दशा को उजागर कर उसमें बदलाव लाने की दिशा में मील का पत्थर तक साबित हुयी हैं | तेजेंद्र जी की भी काफी रचनाएँ ऐसी हैं जिसमें नारी जीवन और उनसे जुड़ी समस्याओं आदि को उचित स्थान प्रदान किया गया है |

सन २००१ में प्रकाशित ‘देह की कीमत’ कहानी संग्रह में उन्होंने मानवीय जीवन की संवेदनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति की है | खासतौर पर स्त्री-जीवन की विडम्बनाओं के प्रति लेखक की दृष्टि अति संवेदनशील रही है | इस संग्रह की अधिकतर कहानियों में स्त्री जीवन के संत्राश, पीड़ा, उनके सुख-दुःख के साथ-साथ सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उत्पन्न होने वाले मानसिक दबाव, द्वन्द आदि का चित्रण किया गया है |

देह की कीमत

इस संग्रह की प्रथम कहानी ‘देह की कीमत’ में स्त्री जीवन के सुख-दुःख, आशा-निराशा के साथ ही अपनों के साथ रहते हुए भी अकेलेपन में जीवन जीने को विवश पम्पी नामक स्त्री की कहानी कही गयी है | पम्मी का विवाह हरदीप के साथ होता है | विवाह के कुछ वर्षों बाद ही हरदीप की विदेश में मौत हो जाती है | पति की मृत्यु के बाद पम्मी के जीवन में एक ऐसा कठिन समय आता है जहाँ परिस्थितियाँ उसे यह सोचने के लिए विवश कर देती हैं कि उसके लिए पैसा ज्यादा महत्वपूर्ण है या उसके पति का मृतप्राय शरीर |

अंग्रेजी साहित्य से एम्.ए. करने वाली पम्मी अपने माता-पिता की लाडली बेटी थी जिसे किसी भी प्रकार के दान-दहेज़ में विश्वास नहीं था | नारी स्वतंत्रता की पक्षधर पम्मी को इतना भी अधिकार नहीं है कि वह माँ-बाप द्वारा अपनी बेटी का कन्यादान करने की परंपरा का विरोध कर सके | वह दान की वस्तु नहीं बनना चाहती थी इसीलिए वह अपना विवाह कचहरी में करना चाहती है | किन्तु परंपरा के अनुसार चूँकि “शादी विवाह के मामले में लड़कियों को नहीं बोलना चाहिए ” संभवत: परमजीत इसी कारणवश कुछ भी नहीं बोल पाती |

वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी को एक दूसरे पर विश्वास के साथ-साथ दोनों को ही एक दूसरे की भावनाओं की क़द्र होनी चाहिए | विपरीत इसके पम्मी का पति उसे मात्र एक ऐसी स्त्री मानता था जिसका कार्य घर के चूल्हे-चौके तक ही सीमित है | अत: पम्मी अपने पति की इस संकीर्ण मानसिकता से आहत होती है | शिक्षित पम्मी हर तरह से अपने पति के जीवन और अपनी गृहस्थी को संवारना चाहती थी तथा पति के हर एक कार्य में उसका भागीदार बनना चाहती थी | लेकिन वह कुछ नहीं कर पाती है | उसके पति की मृत्यु उसके समूचे जीवन को तहस-नहस कर देता है | जीने की कोई वजह  न होने पर भी वह जीवित होने को विवश है | वह सोचती है- 

एक ही घटना आपके समूचे जीवन को कैसे तहस-नहस कर देती है | जिजीविषा बहुत ही निर्दयी वस्तु होती है | इन्सान को जीवित रहने के लिये मजबूर करती रहती है | वरना क्या आज पम्मी के पास जीने का कोई बहाना है |” 

तेजेंद्र शर्मा – देह की कीमत, देह की कीमत पृ. ११

इस प्रकार पति की मृत्यु पम्मी के जीवन को अनेक समस्याओं से भर देता है | भरा-पूरा परिवार होते हुए भी वह ससुराल में स्वयं को अकेला, असहाय और अजनबी महसूस करती है |

मलबे की मालकिन

हमारे भारतीय समाज का यह दोहरा मापदंड ही है की जहाँ एक ओर स्त्री को देवियों के रूप में पूजा जाता है , वहीँ दूसरी ओर उसे शोषित और प्रताड़ित किया जाता है | यहाँ तक कि कई रुढ़िवादी और संकीर्ण मानसिकता से ग्रसित परिवारों में तो एक स्त्री के जन्म की स्वीकार्यता ही बड़ी असहज होती है | कन्या जन्म किस प्रकार एक स्त्री के जीवन में अभिशाप बन जाता है , इसका चित्रण ‘मलबे की मालकिन’ कहानी में हुआ है |

इस कहानी की नायिका एक ऐसे परिवार में जन्म लेती है जहाँ कन्या जन्म एक स्त्री के जीवन का अभिशाप माना जाता है | माता-पिता की गरीबी के कारण अमिता उनकी नजरों में घृणा का पात्र बनती है और इसी वजह से मात्र सत्रह वर्ष के होते ही उसका विवाह रामखिलावन यादव के साथ कर दिया जाता है | विवाह जहाँ एक स्त्री के जीवन को अनेक खुशियों, सुखों और नयी आशाओं से भर देता है , वहीं अमिता के जीवन में विवाह उसे उस नरक में धकेल देता है जहाँ उसे पल-पल यही एहसास दिलाया जाता है की वह जिस खानदान में आयी है, वहां उसका काम मात्र बच्चे पैदा करना, खासतौर पर पुत्र संतान को ही जन्म देना और घर के कामों में ही लगे रहना है |

विवाह के बाद अमिता एक अनजान परिवार में जाती है किन्तु प्रथम रात्रि में ही उसके पति द्वारा किये गए वहसी व्यवहार के कारण उसे अपने आने वाले नारकीय जीवन का खाका उसकी आँखों में तैरने लगता है | वह यह जान गयी थी कि – 

“अमिता यादव बने रहने के लिए, जीवन भर क्या-क्या सहना पड़ेगा | . . . . . जैसे एक भेड़िया टूट पड़ा था अपने शिकार पर | निरीह मेमने की तरह बेबस-सी पड़ी थी मैं | …..चेहरे पर विजयी मुस्कान लिये वोह ! ……जो मेरा रखवाला था, स्वयं ही मुझे जख्मी और आहत छोड़कर आराम की नींद सो रहा था |” 

तेजेंद्र शर्मा – देह की कीमत, मलबे की मालकिन, पृ. २२

पति की तरफ से न ही कोई अपनापन और न ही ससुराल वालों के तरफ से किसी प्रकार का मान-सम्मान, फिर भी एक औरत और एक पत्नी होने के कारण अमिता सब कुछ सहकर भी उस परिवार में रहने को विवश है | अमिता का परिवार द्वारा वास्तविक शोषण तो तब प्रारम्भ होता है जब वह एक कन्या को जन्म देती है | कन्या जन्म से उसके परिवार में भूचाल सा आ जाता है – 

लक्ष्मी के पुजारी, यादव परिवार वाले लक्ष्मी के आगमन पर भौंचक रह गये थे | …..मेरी सास के आंसू वर्षा ऋतु के बरसाती नालों को मात देने में व्यस्त थे | …..मेरा अपना पति तो पुत्री-जन्म के दो दिन बाद घर लौटा” 

तेजेंद्र शर्मा – देह की कीमत, मलबे की मालकिन, पृ. २४

इस प्रकार एक बेटी की माँ बनने के कारण अमिता के ससुराल वाले उसका जीवन नर्क बना देते हैं | उसे बेटी समेत घर से बाहर निकल दिया जाता है | बेघर , बेसहारा अमिता को उसके एक अध्यापक सहारा देते हैं जहाँ वह किसी तरह अपनी बेटी का पालन-पोषण करती है | अपने ही पति से मिली यातनाओं से आहत अमिता को पुरुष जात से नफरत हो जाती है |

वह मात्र अपनी बेटी के लिए जीवन जीती है, उसे पढ़ाती-लिखाती है ताकि उसे वह सब कुछ न सहना पड़े जिसे उसने स्वयं भोगा | विडंबनायें यहाँ भी अमिता का पीछा नहीं छोड़ती | वह जिस लड़के से अपनी बेटी नीलिमा का विवाह करना चाहती है, विवाह के प्रस्ताव पर समीर स्वयं नीलिमा की बजाय अमिता से विवाह की इच्छा जाहिर करता है | यह सुनकर अमिता पर मानो पहाड़ ही टूट पड़ा हो | उसे लगता है मानो उसका जीवन उसकी गृहस्ती के धव्स्त मलबों के रूप में उसके सामने पटा पड़ा है और वह उसे समेटने का निरर्थक प्रयास कर रही है |

कैंसर

पति-पत्नी के आपसी प्रेम, अपनत्व, सु:ख-दुःख तथा पत्नी की बीमारी से दोनों के जीवन में उत्पन्न मानसिक द्वंद्व की अभिव्यक्ति ‘कैंसर’ नामक कहानी में हुआ है | पूनम का प्रेम विवाह नरेन से होता है | दस वर्ष के सुखद वैवाहिक जीवन के बाद अचानक ही पूनम की कैंसर की बीमारी उनके जीवन को तनाव से भर देती है |

तैंतीस वर्षीय पूनम को ब्रेस्ट कैंसर हो जाता है जिसकी जानकारी होने पर वह पति के सामने तो सहज रहती है किंतु उसका मानसिक द्वद्व लगातार बढ़ता ही जाता है | अन्दर ही अन्दर वह सोचती है कि क्या ऑपरेसन के बाद उसका वैवाहिक जीवन सहज रह पायेगा | वह जानती है इलाज के बाद वह खुद तो कैंसर मुक्त हो जाएगी लेकिन उसका पति जो किसी भी प्रकार के चमत्कार या भगवान में विश्वास न होने पर भी पत्नी को बचाने के लिए उसे ताबीज बांधता है ,भगवान के सामने सर झुकाता है, क्या उसके पति को जिस कैंसर ने घेर रखा है, वह उससे मुक्त हो पायेगा ? बिस्तर पर पड़ी पूनम सोचती है- 

“मेरा पति मेरे कैंसर का इलाज तो दवा से करवाने की कोशिस कर सकता है …….मगर जिस कैंसर ने उसे चारो ओर से जकड़ रखा है ……क्या उस कैंसर का भी कोई इलाज है ?” 

तेजेंद्र शर्मा – देह की कीमत, कैंसर, पृ. ४२

मुझे मुक्ति दो

नारी शोषण हमारे समाज की बहुत बड़ी समस्या है | अक्सर समाज में देखा जाता है की नारी का सबसे अधिक शोषण यदि कहीं होता है तो वह उसके परिवार एवं अपनों द्वारा ही होता है | पति द्वारा अपनी पत्नी के शोषण का चित्रण ‘मुझे मुक्ति दो’ नामक कहानी में हुआ है |

लता का विवाह एक उच्चकोटि के लेखक रमेशनाथ से होता है | साहित्य में उच्चकोटि का लेखन करने वाला लता का पति अपनी पत्नी को लेकर बेहद निम्न विचार रखता है | एक पत्नी के रूप में पति के जीवन में लता को मात्र इतना ही अधिकार है की वह पति द्वारा मिली यातनाओं और दुखों को वेआवाज सहती रहे | पति के व्यविचारी आचरण की जानकारी होने पर भी वह कुछ नहीं बोल पाती | पति के घर में उसका एक मात्र अधिकार था – 

अपने आप को अभावों के जीवन का अभ्यस्त बनाना | रमेशनाथ की पगार का एक बड़ा हिस्सा तो प्रेस क्लब के शराब के बिल में चला जाता है | बच्चों के लिए दूध, उनके स्कूल की फीस, किताबें, कपड़े सब दोयम दर्जे की आवश्यकताएँ थीं |” 

तेजेंद्र शर्मा – देह की कीमत, मुझे मुक्ति दो, पृ. ४४

वह एक पत्नी और दो बच्चों की माँ लता प्रत्येक रात अपने पति की गालियां सहकर भी उसी के साथ रहने को विवश है |

रेत का घरौंदा

तलाक और पुनर्विवाह के बाद एक स्त्री के मानसिक संघर्ष की अभिव्यक्ति ‘रेत का घरौंदा’ नामक कहानी में हुआ है | भारतीय मूल की दीपा का प्रेम विवाह ब्रिटिश मूल के नेल्सन से होता है | किंतु नेल्सन की माँ जो की रंग-भेद की मानसिकता से ग्रसित है, कभी भी दीपा को अपने परिवार के हिस्से के रूप में स्वीकार नहीं कर पाती है | वह यही सोचती है कि एक ऐसे मूल की लड़की जो सदियों से उन लोगों की गुलामी करते रहे हैं, उसके खानदान की बहू कैसे हो सकती है |

दीपा कुछ वर्षो बाद नेल्सन से तलाक ले लेती है और धीरे-धीरे नरेन के प्रति आकर्षित होती है | नरेन भी विवाहित और दो संतानों का पिता है | नरेन की प्रथम पत्नी शिवांगी जो कैंसरग्रस्त है और नरेन को किसी प्रकार का सुख देने में असमर्थ है, वह स्वयं चाहती है कि नरेन और दीपा का विवाह हो जाये | उसकी मृत्यु के बाद दीपा और नरेन का विवाह हो जाता है लेकिन नरेन यह विवाह दीपा के प्रति किसी आकर्षण से नहीं बल्कि अपनी पत्नी की इच्छा और बच्चों के लिए करता है |

दीपा पूर्ण रूप से नरेन के प्रति समर्पित है | वह चाहती है कि  जिस प्रकार नरेन अपनी प्रथम पत्नी को प्रेम करता था, वैसा ही प्रेम वह उससे भी करे | किंतु नरेन दीपा को वह प्रेम और अधिकार नहीं दे पाता जो उसने शिवांगी को दिया था | नरेन दीपा से स्पष्ट शब्दों में कह देता है की उसके पास जितना भी प्रेम था, वह सब शिवांगी पर पहले ही खर्च कर चुका है | अब उसके पास कुछ भी शेष नहीं बचा है | वह दीपा की प्रत्येक इच्छा को अपनी तर्कशक्ति से दबा देता है | दीपा कहती है-  

“ अपनी तर्क शक्ति से मेरी हर ख्वाहिश का गला घोंट देता है | मैं सोचती हूँ शिवांगी मरी है, मैं जिन्दा हूँ | मुझे क्यों जिन्दा मार देना चाहते हो |” 

तेजेंद्र शर्मा – देह की कीमत, रेत का घरौंदा, पृ. ५७-५८

दीपा सदैव इसी पीड़ा में जीती है की उसके दो-दो पति जीवित हैं, फिर भी वह अकेली है जबकि शिवांगी इस दुनिया में नहीं है, फिर भी उसका पति आज भी उसी का बना हुआ है |

वह एक दिन

‘वह एक दिन’ कहानी में एक तरफ़ा प्रेम की समस्या का चित्रण किया गया है | कहानी की नायिका जिससे प्रेम करती है वह सदा ही उसे अपमानित करता रहता है | किंतु प्रेम में विवश नायिका उससे दूर नहीं जा पाती और इसी का फायदा उठाकर उसका प्रेमी अभिनव उसे बार-बार अपमानित करता रहता है | ‘कोष्टक’ कहानी की कामिनी भी इसी प्रेम के वशीभूत होकर अपने से दोगुने बड़े और विवाहित नरेन को अपना सबकुछ समर्पित कर देती है | कामिनी जिसे प्रेम समझती है, वह मात्र उसका भ्रम रहता है | नरेन तो मात्र उसका उपयोग भर करता है और अपना स्वार्थ सिद्ध करता है |

तेजेंद्र जी के इस कहानी संग्रह की अधिकतर कहानियाँ स्त्री को केंद्र में रखकर अपनी बात कहती हैं | उनकी कहानियों में कहीं वैवाहिक जीवन की जटिलता, उसकी असफलता और जीवन साथी द्वारा दी जाने वाली पीड़ा, अपमान, अत्याचार आदि का उल्लेख है तो कहीं परिवार द्वारा एक बहू के प्रति किये जाने वाले बुरे बर्ताव का चित्रण किया गया है | बेटी को जन्म देने के कारण उसकी माँ के प्रति किये जाने वाले दुर्व्यवहार के चित्रण आदि से समाज का नारी के प्रति संकीर्ण सोच को भी उजागर किया है |

( Published in साहित्य-वीथिका, जून २०१८)


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